यूपी में है दुनिया का सबसे ऊंचा शिवलिंग, बकासुर वध के बाद भीम ने की थी स्थापना; रोचक है रहस्य

यह विश्व का सबसे ऊंचा शिवलिंग होने के साथ एक ऐतिहासिक धरोहर भी है. महाभारत काल में भीम ने राक्षस बकासुर के वध के बाद इस शिवलिंग की स्थापना की थी. इसके बाद 19वीं सदी में इसकी खोज पृथ्वी सिंह के सपने के बाद हुई थी. मंदिर का पौराणिक महत्व इसे आस्था का केंद्र बनाते हैं.

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भीम द्वारा स्थापित, यह विशाल शिवलिंग विश्व का सबसे ऊंचा माना जाता है. इसकी खोज पृथ्वी सिंह के सपने के बाद हुई थी. मंदिर की वास्तुकला और पौराणिक महत्व इसे आस्था का केंद्र बनाते हैं, जहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. यह इतिहास, आस्था और चमत्कार का अद्भुत संगम है.
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भगवान शिव को समर्पित ये पौराणिक मंदिर उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में खरगूपुर क्षेत्र में स्थित है, जिसे पृथ्वीनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है. यह मंदिर महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, जिसकी स्थापना पांडवों के अज्ञातवास के दौरान भीम ने की थी. इस मंदिर का इतिहास इसे एक विशेष स्थान प्रदान करती हैं.
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पृथ्वीनाथ मंदिर की कहानी महाभारत के उस दौर से शुरू होती है, जब पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान एक वर्ष तक गुप्त रूप से जीवन यापन कर रहे थे. महाभारत के ‘वनपर्व’ के अनुसार, कौरवों के साथ जुए में हारने के बाद पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास भुगतना पड़ा था.
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अज्ञातवास के दौरान पांडव अपनी माता कुंती के साथ कौशल राज्य के पंचारण्य क्षेत्र में पहुंचे, जिसे आज गोंडा और आसपास के क्षेत्र के रूप में जाना जाता है. उस समय इसे चक्रनगरी या एकचक्रा नगरी कहा जाता था. उस समय इलाकों में एक भयानक राक्षस बकासुर का आतंक था.
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बकासुर प्रतिदिन नगरवासियों से एक बैलगाड़ी पकवान और एक व्यक्ति की मांग करता था, जिसे वह भक्षण कर लेता था. एक दिन एक विधवा ब्राह्मणी के इकलौते पुत्र की बारी आई. पांडव उस समय उसी ब्राह्मणी के घर ठहरे हुए थे. माता कुंती ने उसकी पीड़ा देखकर अपने पुत्र भीम को बकासुर का वध करने के लिए भेजा.
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भीम ने अपनी गदा से बकासुर का वध कर क्षेत्रवासियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई. लेकिन बकासुर एक ब्राह्मण राक्षस था, जिसके वध के कारण भीम पर ब्रह्महत्या का पाप लगा. इस पाप से मुक्ति पाने के लिए भीम ने भगवान शिव की तपस्या की और खरगूपुर क्षेत्र में एक विशाल शिवलिंग की स्थापना की.
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यह शिवलिंग काले कसौटी पत्थरों से निर्मित है, जो लगभग साढ़े पांच फीट ऊंचा है और कहा जाता है कि इसका 64 फीट हिस्सा जमीन के नीचे है. पुरातत्व विभाग की जांच के अनुसार, यह शिवलिंग करीब 5000 से 6500 वर्ष पुराना है. लेकिन समय के साथ यह शिवलिंग धीरे-धीरे जमीन में समा गया.
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19वीं सदी में, गोंडा नरेश की सेना के एक सेवानिवृत्त सैनिक पृथ्वी सिंह ने खरगूपुर में अपना मकान बनाने के लिए एक टीले पर खुदाई शुरू की. इस दौरान एक स्थान से खून का फव्वारा निकलने लगा, जिससे घबराकर काम रोक दिया गया. उसी रात पृथ्वी सिंह को जमीन के नीचे एक सात खंडों का शिवलिंग दबा होने का सपना आया.
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पृथ्वी सिंह ने अगले दिन खुदाई करवाई, और वहां से विशाल शिवलिंग प्रकट हुआ. जिसके बाद मंदिर का निर्माण करवाया गया. मान्यता है कि सच्चे मन से भगवान शिव की आराधना करने वाले भक्तों को मनवांछित फल प्राप्त होता है. सावन माह में, विशेष रूप से सोमवार और शुक्रवार को, मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है.
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