आज फिर टूटे जेल के ताले, कलक्ट्रेट पर लहराया तिरंगा; जानें देश की आजादी से 5 साल पहले कैसे आजाद हुआ बलिया
आज बलिया क्रांति दिवस है. आज ही के दिन 19 अगस्त 1942 को भारत की आज़ादी से पांच वर्ष पूर्व बलिया आजाद हुआ था. महान क्रांतिकारी चित्तू पांडेय के नेतृत्व में बागियों ने कलेक्टर जगदीश्वर निगम को परास्त कर कलेक्ट्रेट पर तिरंगा फहराया. यह क्रांति महात्मा गांधी के 'करो या मरो' आंदोलन से प्रेरित थी और बलिया की जनता के साहस का प्रमाण है. यह दिवस आज भी गर्व और स्मृति से मनाया जाता है.

आज बलिया क्रांति दिवस यानी बलिया बलिदान दिवस है. बलिया के बागियों ने आज ही के दिन बरतानिया हुकूमत को धूल चटाई थी. बलिया के तत्कालीन कलेक्टर जगदीश्वर निगम को कुर्सी के नीचे छिपकर जान बचानी पड़ी और महान क्रांतिकारी चित्तू पांडेय के सामने सरेंडर करना पड़ा था. इस प्रकार 19 अगस्त 1942 को बलिया ने अपनी आजादी का ऐलान किया था. बलिया में आज भी वह गौरव कायम है और उसी क्रांति के नाम पर हमेशा की तरह इस साल भी बलिया में क्रांति दिवस का आयोजन किया जा रहा है.
इस आयोजन के तहत बलिया जेल के बाहर बागियों का जुटान शुरू हो गया है. साढ़े आठ बजे एक बार फिर बागी जेल पर धावा बोलकर ताले तोड़ेंगे और जेल में बंदर 100 से अधिक बागियों (सांकेतिक कैदी) को रिहा कराकर कलक्ट्रेट पर धावा बोलेंगे. इस बार भी पूरे आन-बान और शान से तिरंगा कलेक्ट्रेट पर लहराएगा. इस बार चित्तू पांडेय की जगह बागियों का नेतृत्व बुजुर्ग सेनानी राम विचार पांडेय करेंगे. वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन के प्रतिनिधि भी मौजूद रहेंगे.

10 अगस्त को हुई थी बगावत
बलिया की बगावत को कौन नहीं जानता. 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने बंबई में करो या मरो का नारा दिया था. बलिया के लोग इसका मतलब ही नहीं समझ पाए. इसी बीच 9 अगस्त को खबर आई कि बंबई में गांधी, नेहरु एवं पटेल समेत पचास से अधिक लोगों की गिरफ्तारी हो गई. यह खबर सुनते ही बलिया के लोग आक्रोश से भर गए. जैसे तैसे अगली सुबह हुई और 10 अगस्त की तड़के बलिया ने बगावत का ऐलान किया और जिले भर में जनांदोलन शुरू हो गया. वहीं 11 अगस्त की सुबह बड़ी संख्या में लोग जुलूश लेकर कलक्ट्रेट पहुंच गए. उस समय इस भीड़ को देखकर तत्कालीन कलेक्टर जगदीश्वर निगम की पतलून गिली हो गई. उन्होंने अंग्रेज सरकार को लिखा कि बलिया तो बागी हो गया.
कलेक्टर के बेटे ने भी की बगावत
कलेक्टर की चिट्ठी पर वायसराय ने बागियों को अरेस्ट करने का हुकुम दिया. लेकिन अगले दिन यानी 12 अगस्त को बगावत चरम पर पहुंच गई. कोई नेता नहीं, कोई कार्यकर्ता नहीं, लेकिन चार किमी से भी लंबा जुलूस कलक्ट्रेट पहुंच गया. इस जुलूश में कलेक्टर जगदीश्वर निगम के बेटे शैलेश निगम भी शामिल थे. इसी दौरान उनके पिता के आदेश पर पुलिस ने जुलूस में से 30 छात्रों को पकड़ लिया और बुरी तरह प्रताड़ित किया. इससे आक्रोश और बढ़ा तथा 13 अगस्त को बागियों ने रेलवे स्टेशन और कचहरी पर कब्जा कर लिया. आज जुलूस में आगे महिलाएं चल रही थीं. इहोंने कचहरी के मुंडेर पर तिरंगा फहराया. इतने में बागियों ने टाउन हाल पर कब्जा करते हुए अंग्रेजी झंडे को उखाड़ फेंका.
कोतवाल ने भीड़ पर दौड़ाए घोड़े
14 अगस्त की सुबह क्रांतिवीरों ने डाकघर पर हमलाकर सारा खजाना लूट लिया. उस समय शहर कोतवाल ने भीड़ के ऊपर घोड़े दौड़ाए, लेकिन भीड़ ने कोतवाल को ही घेर लिया तो वह हाथ जोड़ कर अपनी जान की भीख मांगता नजर आया. फिर 15 अगस् को बागियों ने थाने में आग लगा दी. वहीं 16 अगस् को रेलवे स्टेशन फूंक दिया. संयोग से उसी समय गाजीपुर से चलकर एक ट्रेन आ गई तो लोगों ने इस ट्रेन पर कब्जाकर इसे आजादी एक्सप्रेस के नाम से चला दिया. इसी बीच 18 अगस् को पुलिस और बागियों के बीच बैरिया में खूनी संघर्ष हुआ. इसमें 20 बागी शहीद हो गए थे. यह खबर मिलते ही एक बार फिर सभी बागी हाथों में लाठी-डंडे लेकर थाने पर पहुंचे और बैरिया के थानेदार समेत सभी पुलिसकर्मियों को उन्हीं के लॉकअप में बंद कर दिया.
19 अगस्त को हुई निर्णायक जंग
बलिया की आजादी का निर्णायक जंग 19 अगस्त को देखने को मिला. सुबह होने से पहले ही जिले भर से लोग कुदाल-फावड़ा, लाठी-डंडे और तीर तलवार लेकर कलक्ट्रेट पहुंच गए. आज की लड़ाई के लिए महिलाएं भी बेलन, मूसल और चइला (चूल्हे की अधजली लकड़ी) लेकर आई थीं. भीड़ का रौद्र रूप देखकर कलेक्टर जगदीश्वर निगम कुर्सी के नीचे छिप गए. इतने में चित्तू पांडेय के नेतृत्व में बागियों ने जेल के ताले तोड़ कर अपने साथियों को आजाद करा लिया. जगदीश्वर निगम ने जब चित्तूपांडे के साथ भीड़ को कलक्ट्रेट की ओर बढ़ते देखा तो उन्होंने दौड़ कर पैर पकड़ लिए और जान की भीख मांगते हुए डीएम की कुर्सी छोड़ दी. इसके बाद बलिया कलक्ट्रेट पर तिरंगा फहराने के बद 19 अगस्त 1942 को चित्तू पांडेय ने बलिया को आजाद घोषित किया.



