रुतबा तो विधायक जैसा, लेकिन वेतन चपरासी से भी कम; जानें यूपी में ग्राम प्रधान की क्या होती है हैसियत

उत्तर प्रदेश में ग्राम प्रधान का पद पंचायती राज व्यवस्था की सबसे अहम कड़ी है. उनका रुतबा विधायक जैसा होते हुए भी वेतन चपरासी से भी कम है. आइए, हम बताते हैं कि यूपी में ग्राम प्रधान की क्या हैसियत होती है और कैसे चुनाव होता है. इसी के साथ हम बता रहे हैं कि उसकी क्या जिम्मेदारियां होती हैं और इसके बदले में उसे वेतन क्या मिलता है.

सांकेतिक तस्वीर. श्रोत मेटा AI

निर्वाचन आयोग ने भले ही उत्तर प्रदेश में अभी तक पंचायत चुनावों को ऐलान नहीं किया, लेकिन ग्राम प्रधान पद के दावेदारों ने अभी से रणभेरी फूंक दी है. संभावित उम्मीदवारों ने अभी से मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कवायद शुरू कर दी है. कई गांवों में तो अभी से कांटे की टक्कर भी नजर आने लगी है. ऐसे में यह जान लेना जरूरी है ग्राम प्रधान का चुनाव कैसे होता है और इस पंचायती राज व्यवस्था में उसकी क्या हैसियत होती है. इसी के साथ यह भी जान लेना चाहिए कि एक ग्राम प्रधान को वेतन कितना मिलता है.

पंचायती राज व्यवस्था में त्रिस्तरीय चुनाव कराए जाते हैं. पहला तो होता है जिला पंचायत. इसमें जिला पार्षदों का चुनाव जनता करती है और फिर ये पार्षद मिलकर चेयरमैन का चुनाव करते हैं. आमतौर पर जिला पार्षद का चुनाव किसी पार्टी बैनर तले नहीं होता, लेकिन चेयरमैन के चुनाव में सभी पार्टियां पूरी ताकत झोंक देती हैं. ठीक ऐसे ही ब्लाक पंचायत के भी चुनाव कराए जाते हैं. इस चुनाव में जनता बीडीसी सदस्यों को चुनती है और चुने हुए बीडीसी सदस्य ब्लाक प्रमुख चुनते हैं. इसमें भी बीडीसी सदस्य तो किसी पार्टी के नहीं होते, लेकिन ब्लाक प्रमुख आम तौर पर विभिन्न पार्टियों के बैनर तले मैदान में उतरते हैं.

पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम प्रधान अहम

पंचायती राज व्यवस्था में सबसे अहम ग्राम पंचायत का चुनाव होता है. यह पंचायती राज व्यवस्था की सबसे छोटी लेकिन सबसे अहम इकाई होती है. इसमें ग्राम सभा सदस्य और ग्राम प्रधान दोनों का चुनाव सीधे जनता द्वारा होता है. इस चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल का आम तौर पर सीधा हस्तक्षेप नहीं होता. किसी भी गांव के विकास का खाका संबंधित ग्राम प्रधान ही खींचता है. प्रदेश ही नहीं, केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं को गांव में लागू करने की जिम्मेदारी भी ग्राम प्रधान की ही होती है.

5000 से अधिक आबादी पर होता है ग्राम सभा का गठन

उत्तर प्रदेश पंचायती राज व्यवस्था में किसी भी ग्राम पंचायत के गठन के लिए 5,000 से 10,000 की आबादी का होना अनिवार्य बताया गया है. पहले ग्राम प्रधानों को वेतन के तौर पर एक हजार रुपये मिलते थे, लेकिन साल 2021 में संशोधित मासिक वेतनमान के तहत ग्राम प्रधान को अब हर महीने 5,000 रुपये तनख्वाह मिलती है. इसके अलावा उन्हें हर महीने 15,000 रुपये यात्रा भत्ता भी दिया जाता है. इस प्रकार उन्हें अब कुल मासिक वेतन 20,000 रुपये मिलती है.

फिर इतना रूतबा कैसे?

ग्राम प्रधानों के रुतबे की वजह उनकी सैलरी नहीं होती, बल्कि जिनती पंचायती राज विभाग से गांवों के विकास के लिए आने वाली मोटी रकम होती है.आम तौर पर बाढ़ राहत से लेकर गांवों में साफ सफाई, चिकत्सा स्वास्थ्य से लेकर नाली खरंजा आदि के निर्माण के लिए हर साल करोड़ों रूपये की राशि जारी होती है. इसके अलावा नरेगा फंड से भी गांव में काफी पैसा होता है. इन पैसों का इस्तेमाल संबंधित ग्राम प्रधान के ही हस्ताक्षर से होता है.