बोधगया से पहले यहां शुरू हुई थी पिंडदान की परंपरा…कानपुर की ‘छोटी गया’ में भगवान विष्णु स्वयं है विराजमान

उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात में स्थित देवयानी सरोवर, जिसे श्रद्धा और आस्था में डूबी हुई "छोटी गया" के नाम से जाना जाता है, पितृ पक्ष के अवसर पर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन जाता है. मान्यता है कि यहां विधिपूर्वक पिंडदान और तर्पण करने से वही पुण्यफल प्राप्त होता है जो बिहार के गया जी में पिंडदान से मिलता है. यहीं नहीं, कई मान्यताओं के अनुसार बोधगया से पहले पिंडदान की परंपरा यहीं से शुरू हुई थी.

कानपुर में छोटी गया (फाइल फोटो) Image Credit:

वैसे तो गया में पिंडदान करने की जो मान्यता है उसे पितरों को मोक्ष प्राप्ति होती है. हम पितृ ऋण से मुक्त हो जाते हैं. गया में पितरों का पिंडदान करने से उनकी आत्माओं को शांति मिलती है और वह स्वर्ग की प्राप्ति करते हैं. मान्यता यह भी है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में विराजमान हैं. उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक छोटी गया मौजूद है. जहां साल में एक बार आने वाले पितृ पक्ष में हजारों लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं.

यहां पर विधि-विधान से श्रद्धालु पहुंचकर अपने पितरों का श्राद्ध तर्पण पिंडदान करते हैं. यहां के बारे में प्रचलित कहानी और ऐतिहासिक मान्यता को मानते हुए लोगों का कहना है कि बोधगया से पहले छोटी गया में प्रथम पिंडदान की बड़ी मान्यता है. कानपुर देहात के मूसानगर स्थित देवयानी सरोवर की पितृपक्ष में विशेष मान्यता है.

ऐसा कहा जाता है कि अगर यहां पर स्नान शुद्धिकरण के बाद पितरों का पिंडदान किया जाए तो यही फल मिलता है जो गया जाने पर मिलता है. कानपुर देहात के भोगनीपुर से करीब 19 किलोमीटर दूर मूसानगर कस्बे में यह सरोवर स्थित है. यहां से करीब 2 किलोमीटर दूर यमुना जी दक्षिण दिशा में गुजर रही है. उत्तरयमुना गामिनी होने के चलते इसका ज्यादा महत्व माना जाता है.

क्या है यहां की मान्यता?

बिहार के गया से पहले यहां पर प्रथम पिंडदान की मान्यता और इसके बाद गया पिंडदान कर संपूर्ण गया माना जाता है. पितृ विसर्जन की अमावस्या पर यहां पर पिंडदान के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. पितृ विसर्जन की अमावस को ज्यादातर लोग पितरों को तर्पण श्राद्ध पिंडदान करते हैं. अमावस को यहां पर वे लोग जरूर पहुंचते हैं, जिन्हें अपने पितरों की मृत्यु की डेट हिंदू तिथि के अनुसार ज्ञात नहीं होती है. यमुना नदी के किनारे उत्तरगामी धारा में पिंडदान करने को सबसे अच्छा पूर्वजों का तर्पण माना जाता है.


इस सरोवर से जुड़ी पौराणिक कथा भी प्रचलित है जिसमें बताया जाता है कि दैत्य राज वृष परवा की पुत्री शर्मिष्ठा और दैत्य गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी यहां के जंगल कभी घूमने आई थी. वहां सरोवर देखकर स्नान करने लगी थी. भगवान शिव को आते देख देवयानी ने जल्दी से शर्मिष्ठा के कपड़े धारण कर लिए थे. इस पर गुस्से में शर्मिष्ठा ने उसे वहीं पर मौजूद कुएं में धकेल दिया था. उसी समय कानपुर के पास स्थित जाजमऊ के राजा ययाति गुजरे और उन्होंने कुएं से देवयानी को बाहर निकाल था. इससे खुश होकर गुरु शुक्राचार्य ने पुत्री देवयानी का विवाह राजा की याद से कर दिया था. राजा ययाति से विवाह के कुछ समय बाद यह याद तुम्हें इस सरोवर को यादगार के रूप में भव्य स्वरूप प्रदान किया. तभी से इसे देवयानी सरोवर के नाम से जाना जाने लगा.