‘…मैं अंदर तक हिल गई हूं’, कुलदीप सेंगर को SC से झटका, छोटी बेटी इशिता बोली- हम कहां जाएं?
उन्नाव रेप मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे कुलदीप सेंगर को बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी जिसमें सेंगर की दोषसिद्धी को सस्पेंड कर दिया गया था. अदालत से इस फैसले से कुलदीप सेंगर की छोटी बेटी काफी आहत है. उन्होंने इसको लेकर एक भावुक पोस्ट लिखा है.
सुप्रीम कोर्ट से सोमवार को कुलदीप सिंह सेंगर को तगड़ा झटका लगा है. अदालत ने उन्नाव रेप मामले में सेंगर की रिहाई पर रोक का आदेश जारी किया है. इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने सेंगर की दोषसिद्धि पर रोक लगाते हुए सशर्त जमानत दी गई थी. इस फैसले के खिलाफ सीबीआई ने शीर्ष अदालत में याचिका दी थी. अब इस फैसले पर सेंगर की छोटी बेटी इशिता सेंगर ने काफी भावुक पोस्ट किया है.
इशिता ने लिखा, ‘मैं यह लेटर एक ऐसी बेटी के तौर पर लिख रही हूं जो थकी हुई, डरी हुई है, और धीरे-धीरे भरोसा खो रही है, लेकिन फिर भी उम्मीद बनाए हुए है क्योंकि अब और कहीं जाने की जगह नहीं बची है. जो 8 साल से अपनी पहचान को नज़रअंदाज़ कर निष्पक्ष सुनवाई का इंतज़ार कर रही है. संस्थानों और कानून पर भरोसा किया, पर अब विश्वास टूट रहा है.’
MLA की बेटी होने से मेरी पहचान सिमट जाती है
इशिता ने कहा कि मेरे शब्द सुने जाने से पहले ही, मेरी पहचान सिमट जाती है. भाजपा विधायक की बेटी. मानो इससे मेरी इंसानियत ही मिट जाती है. इसी बात से निष्पक्षता, सम्मान या बोलने के अधिकार से भी वंचित हो जाती हूं. जिन लोगों ने मुझसे कभी मुलाकात नहीं की, दस्तावेज नहीं पढ़ा, अदालती रिकॉर्ड नहीं देखा, उन्होंने तय कर लिया है कि मेरे जीवन का कोई मूल्य नहीं है.
इतने सालों में, मुझे सोशल मीडिया पर अनगिनत बार कहा गया है कि मेरा बलात्कार किया जाना चाहिए, मार डाला जाना चाहिए या सिर्फ मेरे अस्तित्व के लिए दंडित किया जाना चाहिए. यह लगातार होती रहती है. और जब आपको एहसास होता है कि इतने सारे लोग मानते हैं कि आप जीने के लायक भी नहीं हैं, तो यह आपके अंदर कुछ तोड़ देती है.
8 साल तक हर दिन हमारे साथ बुरा बर्ताव हुआ
हमने चुप रहना इसलिए नहीं चुना क्योंकि हम ताकतवर थे, बल्कि इसलिए चुना क्योंकि हमें इंस्टीट्यूशन पर भरोसा था. हमने प्रोटेस्ट नहीं किए. हमने टेलीविज़न डिबेट में चिल्लाया नहीं. हमने पुतले नहीं जलाए या हैशटैग ट्रेंड नहीं किए. हमने इंतज़ार किया क्योंकि हमें यकीन था कि सच को तमाशे की ज़रूरत नहीं होती. उस चुप्पी की हमें क्या कीमत चुकानी पड़ी?
हमारी इज़्ज़त धीरे-धीरे छीन ली गई. आठ साल तक हर दिन हमारे साथ बुरा बर्ताव किया गया, हमारा मज़ाक उड़ाया गया और हमें इंसानियत से दूर रखा गया. हम ऑफिस भागते-दौड़ते, चिट्ठियां, कॉल करते हुए, अपनी बात कहने के लिए गिड़गिड़ाते हुए सब तरह से थक चुके थे. ऐसा कोई दरवाज़ा नहीं था जिसे हमने खटखटाया न हो, और फिर भी किसी ने नहीं सुना.
मैं अंदर तक हिल गई हूं, मेरे जैसा कोई कहां जाएगा?
इशिता ने कहा कि मेरी बातद इसलिए नहीं सुनी गई कि फैक्ट्स कमज़ोर थे, सबूतों की कमी थी. बल्कि इसलिए कि हमारी सच्चाई असुविधाजनक थी. लोग हमें “ताकतवर” कहते हैं. मैं आपसे पूछता हूं कि ऐसी कौन सी ताकत है जो आठ साल तक एक परिवार को बिना आवाज़ के छोड़ देती है? आप रोज़ाना अपने नाम पर कीचड़ उछालते हुए देखें
आज जो चीज़ मुझे डराती है, वह सिर्फ़ नाइंसाफ़ी नहीं है, यह डर है. एक ऐसा डर जो जानबूझकर बनाया गया है. जो इतना ज़ोरदार है कि जज, पत्रकार और आम नागरिक सभी चुप रहने के लिए दबाव में हैं. यह सब होते देखकर मैं अंदर तक हिल गया हूं. अगर सच को गुस्से और गलत जानकारी से इतनी आसानी से दबाया जा सकता है, तो मेरे जैसा कोई कहां जाएगा?
