मथुरा में कटरा केशवदेव की कहानी, 22 बार टूटने के बाद भी खड़ा है भव्य मंदिर; जानें क्या है जन्मभूमि का विवाद?

मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह का विवाद अदालत में है. क्या आप जानते हैं भगवान की जन्मभूमि पर बना मंदिर 22 बार तोड़ा गया, लेकिन हर बार और ज्यादा वैभव के साथ खड़ा हुआ. अयोध्या की तरह ही, इस मंदिर का विवाद भी अब कोर्ट में उलझकर रह गया है. ताजा विवाद 1968 में हुए एक समझौते को लेकर है. इस प्रसंग में हम उसी विवाद का जिक्र करेंगे और इस मंदिर की पूरी कहानी बताएंगे.

मथुरा में कटरा केशव देव मंदिर

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर बन चुका है. इसी तर्ज पर भगवान कृष्ण के भक्त भी मथुरा स्थित उनकी जन्मस्थली पर भव्य मंदिर बनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन यहां भी राम जन्मभूमि की तरह ही दिक्कत है. श्रीकृष्ण जन्मभूमि से सटे हुए शाही मस्जिद है. मुस्लिम पक्ष का दावा है कि मस्जिद वक्फ की जमीन पर है. जबकि हिन्दू पक्ष का कहना है कि द्वापर युग में यहां कंस का कारागार था, जहां भगवान श्रीकृष्ण अपने चतुर्भुज स्वरूप में अवतार लिए थे.

दोनों पक्ष अपने अपने दावे के साथ कोर्ट में हैं और लगातार सुनवाई चल रही है. आइए, आज कुछ ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्यों के आधार पर इस विवाद को समझने की कोशिश करते हैं. आगे बढ़ने से पहले मौजूदा विवाद को समझ लेते हैं. दरअसल, अंग्रेजों के शासनकाल में ही यह विवाद कोर्ट पहुंच गया था. मामले की सुनवाई आजादी के बाद भी जारी रही. इसी बीच साल 1968 में अचानक श्रीकृष्ण सेवा संस्थान नाम की एक संस्था ने हिंदू पक्ष की ओर मुस्लिम पक्ष से समझौता कर लिया था.

समझौते पर विवाद

इस समझौते में संस्था ने मूल मांग से हटकर कुल साढ़े 13 एकड़ विवादित जमीन में से 11 एकड़ हिंदू पक्ष को देने पर सहमति दे दी. यही नहीं, समस्त हिंदू समाज की ओर से ढाई एकड़ जमीन मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए छोड़ दिया था. इस जमीन के पक्ष में इस समय मुस्लिम पक्ष के पास यही दस्तावेज है और इसी समझौते के आधार पर मुस्लिम पक्ष कोर्ट पहुंचा है. वहीं हिंदू पक्ष का दावा है कि उनकी ओर से ऐसी किसी संस्था ने समझौता नहीं कयिा है. यदि कोई समझौता हुआ भी है तो वह अवैध है. उसे तत्काल खारिज करना चाहिए.

1815 में हुआ पहला विवाद

भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि यानी कटरा केशव देव मंदिर का विवाद पहली बार 1815 में कानूनी विवाद बना. उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी ने मंदिर की जमीन को नीलाम किया था. सबसे ऊंची बोली लगाकर बनारस नरेश पटनीमल ने यह जमीन खरीद तो लिया, लेकिन मुस्लिम पक्ष के विरोध की वजह से यहां मंदिर नहीं बना पाए. इसके बाद यह विवाद साल 1944 तक चलता रहा और फिर पंडित मदन मोहन मालवीय के हस्तक्षेप से काशी नरेश से जमीन का मालिकाना हक जेके बिड़ला ट्रस्ट को सौंप दिया. फिर जेके बिड़ला ट्रस्ट ने इस जमीन पर साल 1965 में यहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया.

मंदिर पर 22 बार टूटा आक्रांताओं का कहर

मथुरा के कटरा केशव देव मंदिर पर कितनी बार विदेशी आक्रांताओं का कहर टूटा? इसकी कोई स्पष्ट गिनती तो नहीं है, लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्यों में साल 1017 के बाद 22 बार मंदिर के टूटने का विवरण मिलता है. उस समय महमूद गजनवी द्वारा मंदिर पर हमले का वर्णन मिलता है. गजनवी के साथ आए ईरानी इतिहासकार अल उतबी ने अपनी किताब तारीखे यामिनी में इस मंदिर पर हमले की कहानी बयां की है. उसने लिखा है कि उस समय मथुरा शहर के दोनों छोर पर हजारों घर थे, इनके मंदिर आपस में जुड़े थे. शहर के ठीक बीच में भव्य मंदिर था.

किताब में है भव्यता का वर्णन

अल उतबी के मुताबिक सैकड़ों हजारों दिनार खर्च करके भी ऐसा मंदिर परिसर का निर्माण सैकड़ों साल में भी नहीं किया जा सकता. इस इतिहासकार के मुताबिक इस मंदिर में 15 फीट ऊंची पांच मूर्तियां थीं. यहां पांचों मूर्तियां लाल सोने की थीं और इनमें से एक मूर्ति की आंखों में दो रुबी लगी थी. अल उतबी के मुताबिक महमूद गजनवी इस मंदिर का वैभव देखकर दंग रह गया. उसे ईर्ष्या होने लगी और जलन के मारे उसने अपनी आंखों के सामने पूरे मंदिर को ध्वस्त करा दिया और मूर्ति में लगी रूबी को अपने पास रख लिया था.

100 साल बाद दोबारा बना मंदिर

हालांकि सौ साल के अंदर ही इस भूमि पर दोबारा भव्य मंदिर बन गया तो उसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने तोड़ दिया. फिर मंदिर बना तो उसे सिकंदर लोदी ने 1489 में तोड़ दिया. यही नहीं, लोदी ने यहां कई मंदिरों में तोड़फोड़ करते हुए उन्हें सराय में तब्दील कर दिया था. वहीं इन मंदिरों में से मूर्तियां निकालकर कसाइयों को मांस तौलने के लिए दे दिया था. यह वर्णन मुगल शासक जहांगीर के समय के इतिहासकार अब्दुला ने अपनी किताब तारीखे दाउदी में किया है.

बुंदेलों ने बनवाई मंदिर

इस इतिहासकार के मुताबिक 16वीं सदी में मुख्य मंदिर के अलावा सभी मंदिर ध्वस्त हो चुके थे. हालांकि उसी दौर में बुंदेला शासक ने कटरा केशव देव मंदिर को पुर्ननिर्माण कराया. उस समय इस मंदिर का शिखर आगरा से नजर आता था. इस मंदिर के निर्माण में उस जमाने में 33 लाख रुपये की लागत आई थी. फिर आया औरंगजेब का शासन. उसने 1670 में इस मंदिर को तोड़कर एक हिस्से में मस्जिद बनवाई. इतिहासकार साकिर मुस्ताक खान की पुस्तक मासिरे आलमगिरी में वर्णन मिलता है कि मथुरा की सभी छोटी बड़ी मूर्तियों में हीरे जवाहरात लगे थे. औरंगजेब ने इन्हें आगरा में बेगम साहिब की मस्जिद की सीढ़ियों में चुनवा दिया था.

क्या है असली इतिहास?

कटरा केशव देव मंदिर का इतिहास महाभारत काल जितना पुराना है. विभिन्न पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक महाभारत युद्ध संपन्न होने के बाद भगवान कृष्ण भी अपने लोग चले गए थे. ऐसे में हस्तिनापुर नरेश युधिष्ठिर ने अपनी गद्दी तो महाराज परीक्षित को सौंपी, वहीं मथुरा में भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ का राज्याभिषेक किया.इसके बाद वह अपने चारों भाइयों को साथ लेकर स्वर्ग लोक को प्रस्थान कर गए. उस समय वज्रनाभ ने परीक्षित के सहयोग और महर्षि शांडिल्य की निगरानी में मथुरा राज्य को व्यवस्थित किया था. इसी क्रम में उन्होंने भगवान की जन्मस्थली यानी कंस के कारागार को तोड़कर कटरा केशव देव मंदिर का निर्माण कराया था. कहा जाता है कि इसके बाद सैंकड़ों बार यह मंदिर टूटा और हर बार पहले से अधिक वैभव के साथ खड़ा हुआ.