UP में 10 गुना बढ़ी नगर आयुक्त की पॉवर, मेयर भी मंजूर कर सकेंगे 5 करोड़ के प्रोजेक्ट

उत्तर प्रदेश सरकार ने शहरों के विकास को गति देने के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है. इसमें नगर निगमों में कमिश्नर को 1 करोड़ और मेयर को 5 करोड़ रुपये तक के वित्तीय ताकत दी है. इस फैसले से नगरायुक्त और मेयर बड़े प्रोजेक्ट भी अपने स्तर पर स्वीकृत कर सकेंगे. इससे बड़े प्रोजेक्ट के लिए शासन से मंजूरी की जरूरत नहीं रहेगी.

नगरायुक्त व मेयर की बढ़ी वित्तीय पॉवर

उत्तर प्रदेश सरकार ने शहरों के विकास को गति देने के लिए बड़ा फैसला लिया है. इस फैसले के तहत प्रदेश के नगर निगमों में बड़े प्रोजेक्ट भी स्थानीय स्तर पर मंजूर किए जा सकेंगे. इसमें निगम कमिश्नर अपने स्तर पर जहां एक करोड़ के प्रोजेक्ट पास कर सकते हैं. वहीं मेयर के पास अब 5 करोड़ रुपये तक की वित्तीय पॉवर होगी. अभी तक नगरायुक्त के पास महज 10 लाख रुपये तक की पॉवर थी, जबकि मेयर 15 लाख तक के प्रोजेक्ट ही मंजूर कर पाते थे.

विभिन्न शहरों की लोकल लेबल पर जरूरतों और सरकार से अप्रूवल में देरी की वजह से होने वाली परेशानियों की वजह वित्तीय पॉवर में संशोधन का प्रस्ताव काफी पहले ही आ गया था. हालांकि अब सरकार ने इस प्रस्ताव के गुण-दोष की विवेचना के बाद मंजूरी दे दी है. सरकार के इस फैसले से नगरायुक्त और मेयर की वित्तीय पॉवर दस गुना से भी ज्यादा बढ़ जाएगी. इससे शहर में विकास के बड़े प्रोजेक्ट को भी स्थानीय स्तर पर मंजूर किया जा सकेगा. बड़ी बात यह कि इस तरह के प्रोजेक्ट के लिए स्थानीय निकाय को शासन की मंजूरी का इंतजार नहीं करना होगा.

धांधली पर भी लगेगा अंकुश

अधिकारियों के मुताबिक इस एक फैसले से सरकार ने कई शिकार किए हैं. इसमें एक तरफ मेयर की वित्तीय पॉवर बढ़ाकर उन्हें खुश किया है. इससे शहर के विकास में तेजी आएगी. इसी के साथ मैन्यूअल टेंडर में होने वाली धांधली पर भी अंकुश लगाने की कोशिश की है. दरअसल, अभी तक नगरायुक्त 10 लाख रुपये तक के प्रोजेक्ट को मंजूरी दे पाते थे. इससे बड़े प्रोजेक्ट यदि 20 लाख तक के हुए तो कार्यकारिणी और 30 लाख तक के हुए तो शासन से मंजूरी लेनी पड़ती थी.

आए दिन टकराव की नौबत

नगरायुक्त के सीमित अधिकार की वजह से फाइलें महापौर, पार्षदों और अधिकारियों के बीच अटक जाती हैं. इसकी वजह से अक्सर टकराव की भी नौबत आ जाती थी. ऐसे हालात में कार्यकारिणी और सदन की बैठकें देरी से होने पर छोटे-मोटे कार्य भी लंबित रहते थे. ऐसे में अधिकारी विकास कार्यों को जानबूझकर छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर मैनुअल टेंडर करते थे. इस प्रकार हर साल करीब 250 करोड़ रुपये के काम इसी तरह मैन्यूअल टेंडर से कराए जाते थे. इसमें धांधली होने की पूरी संभावना बनी रहती थी. लेकिन सरकार की नई व्यवस्था से इस गड़बड़ी पर रोक लगेगी.