ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में अनियमितताओं का खुलासा: सीएजी रिपोर्ट में 32,000 करोड़ के नुकसान का दावा
विकास का विजन उत्तर प्रदेश में लेकर आया ग्रेटर नोएडा औद्योगिक प्राधिकरण खुद ही अपने लक्ष्य से भटक गया. इसका खुलासा सीएजी की 2023 रिपोर्ट से हुआ है. सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक, प्राधिकरण को 32000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. इसमें अधिकारियों की लापरवाही और गड़बड़ी सामने आई है. रिपोर्ट में सामने आया है कि यहां पर आवंटन में मनमानी की गई थी, इस वजह से राजस्व में नुकसान देखने को मिला है.

उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण में अनियमितताओं की खबर सामने आई है. इसे 34 साल पहले औद्योगिक विकास के लिए गठित किया गया था. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, प्राधिकरण के अधिकारियों की लापरवाही और बिल्डरों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया है. इसी की वजह से प्राधिकरण को 32,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है, इसमें 19,500 करोड़ रुपये का बकाया अभी भी वसूल नहीं हो सका है.
सीएजी की रिपोर्ट में क्या है?
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में प्राधिकरण के नियोजन, भूमि अर्जन, परिसंपत्तियों के मूल्य निर्धारण और आवंटन प्रक्रियाओं में गंभीर खामियां जाहिर की हैं. प्राधिकरण के बोर्ड, प्रबंधन और अधिकारियों की विफलता ने नियमों को ताक पर रखकर किसानों के अधिकारों की अनदेखी की और बिल्डरों को फायदा पहुंचाया.
आवंटन में मनमानी
आवंटन की शर्तों में मनमाफिक बदलाव, भूखंडों की कम कीमत तय करना और बकाया होने के बावजूद बिल्डरों को बंधक संपत्तियों की अनुमति देना नियमों का खुला उल्लंघन था.
औद्योगिक विकास में नाकामी
प्राधिकरण का मूल उद्देश्य औद्योगिक विकास था, लेकिन 48 प्रतिशत की औद्योगिक परियोजनाएं अधूरी रह गईं. इसके बजाय,ग्रेटर नोएडा को आवासीय टाउनशिप के रूप में विकसित करने पर जोर दिया गया.
राजस्व में नुकसान
प्राधिकरण को 13,362 करोड़ रुपये की राजस्व हानि हुई, इसमें भूमि प्रीमियम, पट्टा किराया और ब्याज में चूक शामिल है. अप्रैल 2021 तक 19,500 करोड़ रुपये का बकाया बिल्डरों और आवंटियों पर था.
औद्योगिक इकाइयों की बदहाली
रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी 1991 से मार्च 2021 तक प्राधिकरण ने 2,580 औद्योगिक भूखंड आवंटित किए, लेकिन केवल 1,341 भूखंडों (52%) पर ही औद्योगिक इकाइयों पर ही काम किया जा सका. इनमें से 1,194 इकाइयों को शुरू होने में 19 साल की देरी हुई. अप्रैल 2021 तक 972 आवंटियों पर 630 करोड़ रुपये का बकाया था. इसके बावजूद, प्राधिकरण ने बिल्डरों और आवंटियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की. इससे लोगों का भरोसा और उठता चला गया.
आवासीय विकास पर जोर, औद्योगिक लक्ष्य अधूरे
सीएजी ने पाया कि प्राधिकरण के गठन के 28 साल बाद भी नियोजित औद्योगिक क्षेत्र का केवल 67.47% विकसित हुआ, जबकि आवासीय क्षेत्र का विकास 104.04% तक पहुंच गया. बिल्डरों को दी गई जमीन में से केवल 14.52% पर ही परियोजनाएं पूरी हो सकीं. नियमों के उल्लंघन के बावजूद दोषियों पर कार्रवाई ठीक तरह से नहीं किया गया.
रिपोर्ट में यह भी उजागर हुआ कि भूमि अर्जन और आवंटन प्रक्रिया में किसानों के अधिकारों को दरकिनार किया गया. नियमों को ताक पर रखकर बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए प्राधिकरण ने मनमाने तरीके से नीतियों में बदलाव किए.



