संभल: कार्तिकेय महादेव मंदिर में पहली बार हुआ रुद्राभिषेक, 1978 के दंगे में बंद हुआ था; 7 महीने पहले खुला
संभल के कार्तिकेय महादेव मंदिर में 46 वर्षों बाद रुद्राभिषेक हुआ. यह मंदिर 1978 के दंगों के दौरान ही बंद हो गया था. करीब सात महीने पहले जिला प्रशासन ने इस मंदिर को मुक्त कराया था. वहीं इस बार सावन के पहले सोमवार को इस मंदिर में पहली बार भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया गया.

संभल में 46 साल बाद खुले कार्तिकेय महादेव मंदिर में पहली बार सावन के पहले सोमवार को भगवान शिव का रुद्राभिषेक हुआ. इस मौके पर मंदिर में भजन कीर्तन, पूजा पाठ और भव्य भंडारे का आयोजन किया गया. सपा सांसद जियाउर रहमान के घर से महज 200 मीटर दूर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र स्थित इस मंदिर में बड़ी संख्या में शिव भक्त मौजूद रहे. इस दौरान मंदिर के आसपास पर्याप्त संख्या में पुलिस बल की भी तैनाती की गई थी.
बता दें कि संभल जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर हुए बवाल के बाद जिला प्रशासन ने संभल की पहचान के तौर पर पौराणिक ग्रंथों में बताए गए कुओं और तीर्थ स्थलों की तलाश शुरू की थी. यह कार्तिकेय मंदिर और इसके पास एक कुएं को सबसे पहले मुक्त कराया गया था. यह मंदिर और कुआं 46 सालों से बंद था और उसके चारो ओर अतिक्रमण हो गया था. इस मंदिर और कुएं के मिलने के बाद प्रशासन ने अभियान चलाकर जिले में अन्य कुएं और तीर्थस्थलों की खोज की और सभी को अतिक्रमण मुक्त कराया.
मंदिर की सुरक्षा के लिए किए पुख्ता इंतजाम
वैसे तो सावन के पहले सोमवार को जिले के सभी शिव मंदिरों में बड़ी संख्या में शिव भक्त उमड़े थे, लेकिन 46 साल बाद अतिक्रमण मुक्त होकर सनातनियों के लिए खुले इस मंदिर की स्थिति कुछ अलग ही थी. जिले के अन्य मंदिरों की अपेक्षा इस मंदिर में कुछ ज्यादा ही शिवभक्त पहुंचे और रुद्राभिषेक में हिस्सा लिया. इस दौरान मंदिर में आयोजित भंडारे का भी शिव भक्तों ने खूब आनंद लिया. इस मौके पर मंदिर की सुरक्षा के लिए जगह जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे. वहीं पर्याप्त संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई थी.
1978 दंगे में बंद हुआ था मंदिर
जानकारी के मुताबिक संभल में साल 1978 में दंगा हुआ था. इस दंगे के दौरान ही अराजक तत्वों ने इस मंदिर पर ना केवल कब्जा कर लिया, बल्कि शिव भक्तों को भी यहां आने से रोक दिया था. मुस्लिम बाहुल्य खग्गू सराय स्थित इस प्राचीन कार्तिकेय महादेव मंदिर की खोज दिसंबर 2024 में जिला प्रशासन ने की और 46 वर्षों बाद इसे अतिक्रमण मुक्त कर श्रद्धालुओं के लिए फिर से खोला गया.



