पूर्वजों की तलाश… गाजीपुर पहुंचे साउथ अफ्रीका के राजदूत, 1860 में परिवार ने छोड़ा था गांव

दक्षिण अफ्रीका के राजदूत प्रो. अनिल सुकलाल 165 साल बाद अपने परदादा के पैतृक गांव पहुंचे. वह करीब पांच साल से अपने पूर्वजों की तलाश में थे. गाजीपुर के नारायणपुर ककरहीं गांव में उनके पूर्वज रहते थे. गांव पहुंचने पर ग्रामीणों ने अनिल सुकलाल का भव्य स्वागत किया.

साउथ अफ्रीका के राजदूत प्रो. अनिल सुकलाल Image Credit:

करीब 165 साल पहले 1860 में परिवार की रोजी-रोटी की तलाश में राम लखन यादव का परिवार दक्षिण अफ्रीका गया और वही का होकर रह गया. लेकिन कहते हैं आप दुनिया में कहीं भी चले जाएं, लेकिन वतन की माटी की याद आ ही जाती है. ऐसा ही कुछ देखने को मिला जब राम लखन यादव की छठी पीढ़ी अपने गांव में पहुंचे.

दक्षिण अफ्रीका के राजदूत प्रो. अनिल सुकलाल, राम लखन यादव की छठी पीढ़ी के सदस्य हैं. वह पांच सालों से अपने गांव की खोज कर रहे थे. जैसे ही उनके आने की जानकारी ग्रामीणों को हुई सभी ने उनका भव्य स्वागत किया. प्रोफेसर अनिल सुकलाल नई दिल्ली स्थित दूतावास में दक्षिण अफ्रीका के राजदूत के रूप में कार्यरत है.

वतन की मिट्टी की खुशबू खींच ही लाती है

आप दुनिया में कहीं भी चले जाएं लेकिन वतन की मिट्टी की खुशबू लोगों को खींच ही लाती है. इसका प्रमाण सैदपुर तहसील के नारायणपुर ककरहीं में देखने को मिला. बात करीब 165 साल पहले की है, जब राम लखन यादव 25 वर्ष की अवस्था में ही हफ्तों का सफर तय करते हुए 1860 में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे थे.

तब आज की तरह हवाई सफर की व्यवस्था नहीं थी. तब पानी वाली जहाज से दुनिया के गैर मुल्कों तक का सफर किया जा रहा था. वर्तमान में उनके परिजन दक्षिण अफ्रीका की मूल निवासी के रूप में बस चुके हैं और उनकी छठी पुश्त के प्रो. अनिल सुकलाल जो नई दिल्ली स्थित दूतावास में दक्षिण अफ्रीका के राजदूत के रूप में तैनात हैं.

गांव की मिट्टी लेकर वापस रवाना हो गए

अनिल सुकलाल 6 पुश्तों के बाद अपनी पीढ़ियों की निशानियों को खोजते हुए अपनी पत्नी के साथ गांव नारायणपुर ककरही पहुंचे. जहां ग्रामीणों ने गुलदस्ता देकर और माल्यार्पण कर उनका भव्य स्वागत किया. 165 साल के बाद उनकी पीढ़ी से किसी के गांव पहुंचने पर ग्रामीण बेहद खुश हो गए. साथ ही उन्हें डीह बाबा के दर्शन कराएं.

उन्होंने बताया कि 165 साल पहले 1860 में उनके पूर्वज रहे रामलखन यादव दक्षिण अफ्रीका चले गए थे. तभी से वहीं बस गए. अब हम सभी अपने पूर्वजों की जन्मभूमि पर आए हैं. उन्होंने गांव में पूर्वजों का पता किय़ा, लेकिन पता नहीं चला. इसके बाद डीह बाबा स्थल पर पूजा अर्चना की और गांव की मिट्टी लेकर वापस रवाना हो गए.