वो क्रांतिकारी, जिसने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चलाई थी पहली गोली… लाखों अंग्रेजों का हुआ कत्लेआम
जहां पूरा देश आजादी का जश्न मनाने जा रहा है तो वहीं ऐसे वक्त में उन अमर शहीदों को याद करना बेहद अहम हो जाता है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए पहली बार अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बगावत की. ऐसे ही आजादी के एक महानायक हैं मंगल पांडे. उन्होंने गोरी सरकार के खिलाफ क्रांति की जो ज्वाला जलाई, उसके बाद लाखों अंग्रेजों का सरेराह कत्लेआम हुआ. आखिर कौन थे मंगल पांडे और क्या है उनकी पूरी कहानी आपको सिलसिलेवार तरीके से बताते हैं.

15 अगस्त 2025 को देश आजादी की 79 वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. इस मौके पर ऐसे क्रांतिकारियों को याद करना बेहद अहम हो जाता है, जिन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश शासन को चैलेंज किया. यूपी के बलिया के रहने वाले ऐसे ही एक क्रांतिकारी थे शहीद मंगल पांडे. करीब 100 सालों से भारत की धरती पर हुकूमत कर रही विदेशी सरकार के खिलाफ अगर किसी क्रांतिकारी ने पहली गोली चलाई तो वो थे मंगल पांडे.
गोरी सरकार के लिए काल बन गए पांडे
गोरी सरकार ने बगावत के सुर को भांपते हुए उनसे पेशकश की अगर वो माफी मांग लेते हैं तो सरकार उन्हें फांसी पर नहीं लटकाएगी. लेकिन उस क्रांतिकारी ने गोरी सरकार के इस ऑपर को ठुकरा दिया और फांसी का फंदा चूमना पसंद किया. उनकी मौत के बाद देश में क्रांति का इतना बड़ा सैलाब आया, जिससे कि विदेशी सरकार की चूले हिल गईं. करीब 4 महीनों में ही लाखों अंग्रेजों की सड़कों पर पकड़- पकड़कर हत्या की गई. हजारों अंग्रेजों को तोपों से उड़ा दिया गया.

आलम ये हुआ कि कब्रिस्तान में दफनाने तक की जगह नहीं बची. अंग्रेज अपने परिजनों की लाशों को भेड़- बकरियों की तरह एक के ऊपर एक ऐसे फेंक रहे थे, जैसे कि उनका कोई वारिश ही न हो. इस क्रांति के निशान यूपी की राजधानी लखनऊ में मौजूद रेजिडेंसी में आज भी देखे जा सकते हैं.
अग्रेज अफसर को मारी थी गोली
बलिया के नगवा गाँव में 1831 में पैदा हुए मंगल पांडे को पढ़ाई- लिखाई का बहुत मौका नहीं मिल पाया. वो महज 4th क्लास तक पढ़े थे. घर कि परिस्थितियों को देखते हुए महज 18 साल कि उम्र में ही ब्रिटिश सेना में भर्ती हो गए. फौज में सैनिकों को जो कारतूस दिए जाते थे, उनमें एक ग्रीस लगी होती थी, जो गाय और सूअर की चर्बी से बने होते थे. उन्होंने इसका विरोध किया और 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में अपने एक अंग्रेज अफसर को गोली मार दी.
यहीं से उठ खड़ी हुई एक बगावत. हांलाकि उन्हें 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई. मंगल पांडे के प्रपौत्र अनिल पांडे बताते हैं कि बाद में मंगल पांडे के परिवार के लोग नेता जी सुभास चंद बोस की आजाद हिन्द फ़ौज में भी भर्ती हुए और देश को आजादी में अपनी महती भूमिका निभाई.



