मॉरीशस में रहने वाले 55% भारतीय हैं दलित, बीएचयू की रिसर्च आई सामने
उत्तर प्रदेश के बीएचयू कॉलेज के एक रिसर्च में सामने आया है कि यहां रहने वाले ज्यादातर भारतीय दलित हैं और ये भोजपुर इलाके से आते हैं. लगभग चार सालों की रिसर्च में ये बात सामने आई है. इतिहास पर गौर करें तो यहां के पहले प्रधानमंत्री के पिता बिहार के रहने वाले थे.
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के जूलॉजी डिपार्टमेंट के एक शोध में ये बात सामने आई है कि मॉरिशस के भरत वंशियों की कुल आबादी के 55% लोगों का डीएनए भोजपुर इलाके के दलित समाज के लोगों से मिलता है. डीएनए साईंटिस्ट प्रोफ़ेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने पिछले तीन-चार सालों के अपने रिसर्च में ये नतीजा पाया है.2021 से ये रिसर्च शुरू हुआ था और आज अपने निष्कर्ष तक पहुंच गया है.
हालांकि, अभी भी ये रिसर्च कुछ और बातों को लेकर जारी है.डॉक्टर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि मॉरिशस से कुल चालीस सैंपल लिए गएं और बीस सैंपल की सिक्वेसिंग की गई. जो नतीजा आया उसमें मॉरिशस के भरत वंशियों की कुल जनसंख्या के डीएनए का करीब 55% यूपी के पूर्वांचल और बिहार के भोजपुरी बोलने वाले दलित समाज से मिलान हुआ. यानी कि पूर्वांचल के साथ-साथ बक्सर, आरा, भभुआ, छपरा और सासाराम के दलित समाज के लोगों के डीएनए से मैच हुआ.
मॉरीशस के पहले प्रधानमंत्री का बिहार से नाता
मॉरीशस के पहले प्रधानमंत्री सर सीवूसागुर रामगूलाम थे. उनका भी भारत से गहरा नाता था. उनके पिता बिहार के रहने वाले थे. वो भारत से प्रवासी मजदूर के रूप में मॉरीशस गए ते. सीवूसागर 1968 में मॉरीशस के प्रधानमंत्री बने थे. इन्हें यहां का राष्ट्रपिता कहा जाता है. मॉरीशस के लिए उन्होंने कई ऐसे जरूरी काम किए जो आज भी यहां के लोगों के बीच काफी अहम माना जाता है. जैसे देश के विकास और स्वतंत्रता में बढ़कर काम किया. डॉक्टर होते हुए वो मॉरीशस में लेबर पार्टी के नेता भी थे. देश में बेसिक सुविधाओं के विकास में सीवूसागर ने बढ़ चढ़कर काम किया था.
क्या रहा है इतिहास?
फ्रांसीसी शासन के तहत साल 1729 में पहले भारतीयों को पुदुचेरी क्षेत्र से मॉरीशस लाया गया था, ताकि वे कारीगर और मिस्त्री के रूप में काम कर सकें. यह जानकारी भारत-मॉरीशस द्विपक्षीय संबंधों के प्रोफाइल के अनुसार है, जो विदेश मंत्रालय (MEA) की वेबसाइट पर पब्लिश की गई है. ब्रिटिश शासन के दौरान 1834 से 1900 के शुरुआती सालों के बीच लगभग पांच लाख भारतीय बंधुआ मजदूरों को मॉरीशस लाया गया. इनमें से लगभग दो-तिहाई मजदूर मॉरीशस में स्थायी रूप से बस गए.