रेल पटरियों के बीच बिजली उत्पादन की ऐसी लाजवाब तरकीब! बनारस रेल कारखान ने किया 70 यूनिट प्रोडक्शन

उत्तर प्रदेश के बनारस रेल कारखाने ने बिजली उत्पादन की दिशा में अहम कदम उठाया है. यहं पर सोलर पैनल की मदद से 70 यूनिट बिजली उत्पादन शुरू किया है. इसके लिए 70 पैनल का इस्तेमाल किया गया. सुविधा के लिहाज से भी ये काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि यह पैनल आवश्यकतानुसार हटाया और लगाया जा सकता है.

रेल की पटरियों पर बिछा हुआ सोलर पैनल

उत्तर प्रदेश में बनारस रेल कारखाना ने सत्तर मीटर लम्बे सोलर पैनल से हर दिन सत्तर यूनिट बिजली का प्रोडक्शन किया है. ऐसे में भविष्य भारतीय रेलवे को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में इसे अहम कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है. इसमें अहम बात ये है कि इस सोलर पैनल को जरूरत पड़ने पर हटाया और फिर लगाया जा सकता है. बनारस रेल कारखाना के जनरल मैनेजर नरेश पाल सिंह ने टीवी 9 डिजिटल से बातचीत में बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वदेशी मूवमेंट को ही ध्यान में रखकर इस पायलट प्रोजेक्ट को सफल बनाया गया है.

उन्होंने कहा कि आने वाले समय में हमारी कोशिश होगी कि हम ख़ुद इस तकनीक से इतनी बिजली बनाए की बाहर से हमको बिजली खरीदने की जरूरत ही न पड़े. ये पर्यावरण संरक्षण के लिए भी एक बेहतर विकल्प है. इसके जरिए बिजली बनाने में लागत भी बहुत ज़्यादा नहीं है. बनारस रेल कारखाना 4.5 मेगावाट बिजली का उत्पादन भी सोलर के जरिए कर रहा है. इसका टोटल रिक्वायरमेंट का 20% है.लेकिन अभी लम्बा सफर तय करना है.रिसर्च एन्ड डेवलपमेंट विंग इसपर लगातार काम कर रहा है.

2017 से बनने लगे इलेक्ट्रिकल इंजन

महाप्रबंधक नरेश पाल सिंह ने बताया कि 1965 में शुरू हुए बनारस रेल कारखाना में डीजल इंजन बनते थे लेकिन, 2017 से हम इलेक्ट्रिकल इंजन बनाने लगे. दो इलेक्ट्रिक इंजन बनाने से इसकी शुरुवात की और आज हम 472 इलेक्ट्रिक इंजन बना रहे हैं जो कि कुल इंजन का 99.5 प्रतिशत है. बाकी डीजल इंजन भी जो कि बहुत कम बन रहे हैं वो भी इको फ्रेंडली बना रहे हैं.

बरेका के पीआरओ राजेश कुमार ने बताया कि बरेका की कार्यशाला की लाइन संख्या 19 पर स्थापित इस पायलट प्रोजेक्ट में स्वदेशी डिज़ाइन की गई विशेष इंस्टॉलेशन प्रक्रिया का उपयोग कर पटरियों के बीच सौर पैनल लगाए गए हैं. इस प्रक्रिया में ट्रेन यातायात पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा वहीं पैनलों को जरूरत पड़ने पर आसानी से हटाने की सुविधा भी प्रदान की गई है. इसकी अहम बात यह है कि इस तकनीक को भविष्य की संभावनाओं के तौर पर देखा जा रहा है.

भारतीय रेलवे के 1.2 लाख किमी ट्रैक नेटवर्क में, यार्ड लाइनों का इस्तेमाल कर इस तकनीक को व्यापक स्तर पर अपनाया जा सकता है. इसके लिए अतिरिक्त जमीन की भी आवश्यकता नहीं है. इसके लिए पटरियों के बीच की जगह का ही इस्तेमाल किया जा रहा है. इसमें अनुमानित क्षमता 3.21 लाख यूनिट/वर्ष/किमी ऊर्जा उत्पादन जो कि भारतीय रेल को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पर्याप्त होगा.

गंगा में जीरो डिस्चार्ज करने वाला संस्थान है बनारस रेल कारखाना

बनारस रेल कारखाना गंगा में जीरो डिस्चार्ज करने वाला संस्थान बन गया है. बनारस रेल कारखाना के जीएम नरेश पाल सिंह ने बताया कि बनारस रेल कारखाना पर्यावरण के लिहाज से देश का अग्रणी संस्थान है. हमारे कैंपस में लगभग 4500 क्वार्टर्स हैं, जिसमें 25000 इम्प्लॉय और उनके परिवार के लोग हैं.

बावजूद इसके हमारे यहां से गंगा में जीरो डिस्चार्ज है यानी कि ट्रीटेड या अनट्रीटेड किसी भी प्रकार का पानी गंगा में नहीं जाता. यहां पर 12 एमएलडी का हमने एसटीपी लगाया है जो कि रीसाइकलिंग के जरिए फिर से प्रयोग में लाया जाता है. साथ ही 477 बोरवेल और तालाब खुदवा रखे हैं. ताकि, पानी का सही तरीके से प्रबंधन किया जा सके.रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर भी हम काम कर रहे हैं.