वो चीखती रही ये लोग नोचते रहे, 2 महीने तक नहीं आई रहम, गैंगरेप केस में SHO समेत 7 दरिंदों को उम्रकैद
आज से 23 साल पहले अलीगढ़ के खैर इलाके से सामुहिक दुष्कर्म का मामला सामने आया था. इसमें रिटायर्ड कोतवाल सहित सात लोगों का नाम आया था. अब 23 साल बाद सीबीसीआईडी की चार्जशीट के आधार पर आरोपियों को एडीजे फास्ट ट्रैक कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी है.

साल 2002, 14 वर्ष की एक नाबालिग लड़की को तीन लोगों ने उसके ही खेत से उसे उठा लिया. यहां उसके साथ आरोपियों ने उसके साथ रेप किया. यह सिलसिला सिर्फ एक दिन पर नहीं रूका, बल्कि दो महीने तक चलता रहा. फिर जब आरोपियों का मन भर गया तो लड़की को सड़क किनारे फेंक कर चले गए.
जब पीड़िता और उसके परिजन न्याय की आस में पुलिस थाने पहुंचे तो यहां भी उन्हें सताया गया. पुलिस ने पूरे केस को पलट गांव के ही निर्दोषों फंसा दिया. फिर पीड़िता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 23 साल की लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी अब एडीजे फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम (अंजू राजपूत) ने 7 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है. बता दें अलीगढ़ जिले की इस घटना ने उस वक्त सबको हिला कर रख दिया था. यह घटना में पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता, राजनीतिक हस्तक्षेप और लंबी न्यायिक प्रक्रिया के कारण भी सुर्खियों में रहा.
पीड़िता को खेत से उठा ले गए थे आरोपी
घटना 30 अक्टूबर 2002 की सुबह करीब 5 बजे के आसापास की है, जब पीड़िता अपने खेत गई थी. तब रामेश्वर, प्रकाश और साहब सिंह नामक तीन व्यक्तियों ने किशोरी का अपहरण किया. उसके मुंह में कपड़ा ठूंसकर उसे जबरन गाड़ी में डाल लिया. ड़ी बसपा नेता राकेश मौर्या चला रहे थे, जबकि सेवानिवृत्त एसएचओ रामलाल वर्मा भी सवार थे.
दो महीने तक नाबालिग के साथ करते रहे गलत हरकत
किशोरी को पहले एक गोदाम में ले जाया गया, जहां कई दिनों तक उसे बेहोश रखा गया और बंधक बनाया गया. यहां रामेश्वर, प्रकाश, खेमचंद्र, जयप्रकाश, रामलाल वर्मा, उनके बेटे बॉबी (बांबी) और तत्कालीन खैर एसएचओ पुत्तूलाल प्रभाकर सहित सभी नामजद आरोपियों ने बारी-बारी से नाबालिग के साथ दुष्कर्म किया.बाद में उसे इगलास क्षेत्र के अनुषिया गांव में जयप्रकाश के घर के एक कमरे में शिफ्ट किया गया, जहां फिर से दुष्कर्म जारी रहा. उसे बेहोश रखने के लिए नशीला पदार्थ दिया जाता था.
2 महीने बाद सड़क किनारे फेंक कर चले गए
लगभग दो महीने बाद (दिसंबर 2002), आरोपियों ने किशोरी को टप्पल थाना क्षेत्र के हामिदपुर गांव के पास छोड़ दिया. हामिदपुर में गांव के बोना और पप्पू उर्फ विजेंद्र ने किशोरी की मदद की. 26 दिसंबर 2002 को पुलिस ने इन्हीं दोनों को ही आरोपी बना लिया गया.़
पुलिस ने निर्दोषों को फंसाया
इसके बाद पीड़िता के पिता ने खैर थाने में अपहरण और दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराया, लेकिन तत्कालीन एसएचओ प्रभाकर ने प्रारंभिक जांच में आरोपियों के नाम हटा दिए और निर्दोष ग्रामीणों बोना और पप्पू उर्फ विजेंद्र को झूठा आरोपी बना दिया. न्याय के लिए संघर्ष करते हुए पीड़िता के परिवार ने हाईकोर्ट की शरण ली. 17 फरवरी 2003 को हाईकोर्ट के आदेश पर पीड़िता का बयान दर्ज किया गया.
बसपा शासनकाल में नहीं हुई थी कार्रवाई
बसपा नेता राकेश मौर्या का नाम सामने आने के बाद मामला और संवेदनशील हो गया था. 2002 से 2007 के बीच बसपा शासनकाल में इसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इस दौरान मुकदमा वापस लेने की कोशिशें की गईं. सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद जांच सीबीसीआईडी को सौंपी गई. सीबीसीआईडी ने तीन चरणों में जांच पूरी कर सात आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी.