सरकार चाहे जिसकी… काटते रहे मलाई, अब बीजेपी के लिए क्यों जरूरी हैं अमरमणि?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में अमरमणि त्रिपाठी का एक वक्त ऐसा रूतबा था कि सरकार किसी भी दल की हो अमरमणि त्रिपाठी मंत्री जरूर होते. साल 2003 में मधुमिता हत्याकांड में नाम सामने आने के उनका राजनीतिक करियर ढलान पर आ गया. लेकिन जेल से रिहा होने के बाद अब उन्होंने जनता के बीच सक्रिय रहने का एलान किया है.

अपनी पत्नी के साथ अमरमणि त्रिपाठी

9 मई 2003, लखनऊ के हाई प्रोफाइल निशातगंज इलाके में एक महिला की उसके ही घर में गोली मारकर हत्या कर दी जाती है. इस वारदात को मुख्यमंत्री आवास से सिर्फ 5 किलोमीटर की दूरी पर अंजाम दिया गया था. इस हत्या के बाद से ही उत्तर प्रदेश के सियासी हल्को में भूचाल आ गया. उस वक्त उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री और कद्दावर नेता अमरममणि त्रिपाठी और कनेक्शन सामने आना इसकी मुख्य वजह बना.

दरअसल, निशातगंज के पेपर मिल कॉलोनी में जिस महिला की हत्या हुई उसका नाम मधुमिता शुक्ला था. कविता पाठ के क्षेत्र में उनका नाम धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगा था. ऐसे में ये मामला सुर्खियों में आ चुका था. यह मामला और हाई प्रोफाइल तब हो गया, जब पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पता चला कि हत्या के दौरान मधुमिता गर्भवती थी. फिर मृतक की बहन निधि शुक्ला ने मधुमिता का संबंध अमरमणि त्रिपाठी के साथ होने का आरोप लगा दिया. साथ ही उन्होंने कहा की चूंकि मधुमिता गर्भवती थी, ऐसे में प्रेग्नेंसी के बारे में जानकारी होने के बाद अमरमणि और उसकी पत्नी मधुमणि ने उसकी बहन की अपने लोगों से हत्या करवा दी.

इस मामले में अमरमणि और उनकी पत्नी तकरीबन 20 साल तक जेल में रहे. सेहत और अच्छे आचरण का हवाला देते हुए दोनों पति-पत्नी को अगस्त 2023 को जेल से रिहा कर दिया गया. हालांकि, जेल में रहने के दौरान उनपर अधिकतर समय बीमारी के बहाने अस्पताल में काटने का आरोप लगता रहा है. इसको लेकर उनका एक स्टिंग ऑपरेशन भी सामने आया था, जिसमें वह जेल की बजाय गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में अपने लोगों से मिलते-जुलते नजर आए थे.

मधुमिता शुक्ला और अमरमणि त्रिपाठी

क्राइम और पॉलिटिक्स का कॉकटेल

बता दें जिस दौर में अमरमणि पर मधुमिता की हत्या का आरोप लगा, उस दौर में वह हर बदलती हुई सत्ता का जरूरी हिस्सा होते हैं. सरकार किसी की बने अमरमणि उसमें मंत्री जरूर होते थे.वह पूर्वांचल के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के राजनीतिक वारिस माना जाते थे. दरअसल, हरिशंकर तिवारी ने पूर्वांचल में पावर, क्राइम और पॉलिटिक्स का जबरदस्त ‘कॉकटेल’बनाया था,अमरमणि भी उसी पौध की पैदाइश थे. अपने गुरू हरिशंकर तिवारी की तरह उन्होंने पावर,पॉलिटिक्स और क्राइम के जरिए सत्ता कैसे हासिल की जाती है, इसपर उन्होंने महारत हासिल कर ली थी.अमरमणि को अपने गुरू के बाद पूर्वांचल की ब्राह्मण राजनीति का अगला मसीहा भी माना जाता था.

अपराध से सियासत में एंट्री

अमरमणि ने राजनीति और अपराध में खूब नाम कमाया. छात्र राजनीति से ही मारपीट, हत्या, किडैनैपिंग, लूटपाट जैसे कई मामले उनके ऊपर दर्ज होने लगे थे. हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही की तरह अमरमणि त्रिपाठी ने भी अपने अपराधों को छिपाने के लिए सियासत का सफेद चोला ओढ़ने का फैसला किया. सबसे नौत 1989 में नौतनवा सीट पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से विधायक बनने में सफल रहे. फिर, 1991 विधानसभा चुनाव हारने के बाद 1996 में दोबारा विधायक बने. बाद अलग-अलग पार्टियों से वह चुनाव लड़ते रहे और जीत हासिल की. साल 2007 में अमरमणि ने जेल में रहकर भी चुनाव जीता. वह 4 बार विधायक रहे. इस बीच सरकारें बदलती रहीं, अमरमणि त्रिपाठी को मंत्री पद मिलता रहा.मधुमिता हत्यकांड में अमरमणि का नाम आने के बाद उनका राजनीतिक करियर अर्श से फर्श पर जा पहुंचा.

पिता की राह चले अमनमणि

अमरमणि ने अपने राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए अपने बेटे अमनमणि को मैदान में उतारा. 2017 के विधानसभा में अपने पिता की तरह जेल में रहते हुए अमनमणि ने भी नौतनवा सीट निर्दलीय चुनावी मैदान में ताल ठोंकी.चुनाव जीत कर विधायक भी बने. हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव में अमनमणि हार गए.अपने पिता की तरह अमनमणि का भी दामन दागदार है. 2015 में उनपर अपनी पत्‍नी सारा सिंह की हत्‍या करने का आरोप लगा था, जिसके चलते वह कुछ वक्त तक जेल में भी रहे.

अमरमणि त्रिपाठी

BJP के लिए क्यों जरूरी अमरमणि?

पूर्वांचल में शक्ति के दो ध्रुव रहे हैं. एक योगी आदित्यनाथ का गोरक्षनाथ पीठ और दूसरा हरिशंकर तिवारी का तिवारी हाता. दोनों की लंबे समय से अदावत रही है. वहां, लिए जाने वाले फैसले से पूर्वांचल की राजनीति की दशा-दिशा तय होती है.योगी आदित्यनाथ पर मुख्यमंत्री बनने से पहले से ही ब्राह्रण विरोधी होने का आरोप लगता रहा है. हरिशंकर तिवारी के जीते जी उनसे उनका छत्तीस का आंकड़ा उनकी बड़ी वजह रही है.

सीएम बनने के बाद बलिया के एक शातिर अपराधी की तलाश में तिवारी हाता पर पुलिस का छापा पड़ा था. हाल ही में उनके बेटे विनय शंकर तिवारी पर भी ईडी ने बैंक धोखाधड़ी के मामले पर भी कार्रवाई की गई. दोनों ही मामले को पूर्वांचल के ब्राह्मणों का अपमान होने जैसा प्रचारित किया गया. ऐसे में बीजेपी और योगी दोनों के लिए अमरमणि का साथ होना बेहद जरूरी हो जाता है. पूर्वी यूपी के ब्राह्णणों के बीच अमर मणि त्रिपाठी की पहुंच अभी भी बरकरार है, जो योगी के ब्राह्मण विरोधी छवि में सुधार करने में जरूर मदद कर सकते हैं.

योगी के साथ बन रहे नए समीकरण

अमरमणि त्रिपाठी को वैसे तो पहले हरिशंकर तिवारी के खेमे का माना जाता था. लेकिन जेल जाने के बाद हरिशंकर तिवारी और अमरमणि त्रिपाठी में जरूर दूरियां आईं. इसके अलावा 27 जनवरी 2007 में सपा सरकार ने गोरखपुर में दंगा भड़कने के बाद कर्फ्यू लगा दिया था. फिर योगी आदित्यनाथ को गिरफ्तार कर 11 दिन के लिए जेल भेज दिया था. उस दौरान गोरखपुर जेल में बंद अमरमणि त्रिपाठी ने योगी आदित्यनाथ की मदद की थी. दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी.इसके अलावा साल 2017 में अमरमणि के बेटे अमनमणि त्रिपाठी खुलकर योगी के साथ नजर आने लगे थे.योगी के हर कार्यक्रम में अमनमणि शिरकत करते. इस सब क्रियाकलापों से योगी आदित्यनाथ की ब्राह्मण विरोधी छवि को लगातार तोड़ने का प्रयास किया जाता रहा है.