पूर्वांचल में RKY का वो खौफ… गेस्टहाउस कांड और 4 क्षत्रियों का मर्डर, बाहुबली रमाकांत के दामन पर कितना गहरा दाग?
पूर्वांचल के बाहुबलियों में रमाकांत यादव का नाम भी है. इनके खिलाफ हत्या, लूट, डकैती, मर्डर और गैंगस्टर समेत 54 से ज़्यादा मुकदमे दर्ज हैं. लखनऊ के गेस्ट हाउस कांड के अलावा तिघरा में चार क्षत्रियों की हत्या और जहरीली शराब कांड में भी इनका नाम प्रमुखता से आया था. भाई उमाकांत यादव के पीछे पीछे राजनीति में आए रमाकांत यादव ने कई बार विधायक और सांसद भी बने हैं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ के बाहुबली रमाकांत यादव को कौन नहीं जानता. सपा के टिकट पर पांच बार विधायक रहे रमाकांत यादव कुख्यात गैंगस्टर रहे हैं. जौनपुर के बाहुबली उमाकांत के छोटे भाई रमाकांत के खिलाफ तिघरा में चार क्षत्रियों से कब्र खुदवाकर उसी में उन्हें दफन करने से लेकर लखनऊ के गेस्टहाउस कांड तक आरोप हैं. रमाकांत एक ऐसे बाहुबली रहे हैं, जिनके लिए कहा जाए कि आजमगढ़ से सोनभद्र तक उनके नाम का सिक्का चलता था, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी. रमाकांत यादव इस समय जहरीली शराब कांड में ही अरेस्ट होकर फतेहगढ़ जेल में बंद हैं.
आइए, इस प्रसंग में उसी रमाकांत यादव की क्राइम कुंडली खंगालने की कोशिश करते हैं. एक जुलाई 1957 को आजमगढ़ में एक किसान परिवार में पैदा हुए रमाकांत यादव बचपन से मनबढ़ थे. चूंकि बड़े भाई उमाकांत यादव ने जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही राजनीति में एंट्री ले ली थी, ऐसे में रमाकांत ने भी उनके पीछे चलते हुए राजनीति शुरू की. मिजाज से मनबढ़ रहे दोनों भाइयों रमाकांत और उमाकांत यादव की मोनोपॉली पहले आजमगढ़ और फिर जौनपुर, बनारस से लेकर मिर्जापुर सोनभद्र तक रही है.
1977 में दर्ज हुआ पहला मुकदमा
सरेराह किसी से भी मारपीट करना, अगवा कर बंधक बनाना रमाकांत यादव का प्रिय सगल रहा है. हालांकि उनके खिलाफ पुलिस में पहला मुकदमा 1977 में जहानागंज में दर्ज हुआ था. उस समय वह महज 20 साल के थे. वहीं 46 साल में पहली बार उन्हें सजा हुई. वो महजचार महीने की. यह सजा जौनपुर के MP/ MLA कोर्ट से जान से मारने की धमकी और मारपीट के मामले में सुनाई गई थी. वहीं बाकी मामलों में गवाहों के मुकरने की वजह से हमेशा सजा से बचते रहे हैं. वहीं आखिरी मुकदमा भी साल 2022 में जहानागंज में ही दर्ज हुआ. यह उनके खिलाफ दर्ज 54वीं एफआईआर थी.
जहरीली शराब कांड से लेकर गेस्ट हाउस कांड में आया नाम
बाहुबली रमाकांत यादव के नाम दर्ज 54 मुकदमों में हत्या, लूट, डकैती, गैंगस्टर जैसे मामले शामिल हैं. इनमें फरवरी 2022 में हुए आजमगढ़ के जहरीली शराब कांड से लेकर लखनऊ के गेस्टहाउस कांड प्रमुख हैं. जहरीली शराब कांड में ठेका रमाकांत के भांजे रंगेश यादव के नाम था. इस मामले में शराब पीकर 13 लोग मारे गए थे, जबकि 60 से अधिक लोग बीमार पड़ गए थे. रमाकांत यादव इस समय इसी मामले में फतेहगढ़ जेल में बंद हैं. इसी प्रकार साल 1995 में हुए लखनऊ के बहुचर्चित गेस्ट हाउस कांड में समाजवादी पार्टी के लोगों ने बसपा सुप्रीमो मायावती पर हमला किया था. इसमें उनके कपड़े तक फाड़ दिए गए थे. कहा जाता है कि इस वारदात में रमाकांत यादव सबसे आगे थे.
4 क्षत्रियों की जिंदा दफन करने से लेकर इंजीनियर की हत्या का आरोप
रमाकांत यादव पर सरांवा के चकगंजरी तिघरा गांव में चार क्षत्रिय भाइयों से कब्र खुदवाकर उसी में उनको जिंदा दफन करने का आरोप है. इस संबंध में दीदारगंज थाने की पुलिस ने मुकदमा भी दर्ज किया था. रमाकांत ने पहले चारो भाइयों को गांव के बाहर बुलवाया, फिर उन्हीं से कब्र खुदवाई और उन्हें कब्र में उतारकर गोली मार दिया था.इस घटना के बाद पुलिस ने रमाकांत के भाई लल्लन यादव को अरेस्ट कर अंबारी चौक पर परेड कराया था. हालांकि बाद में गवाहों के मुकरने की वजह से रमाकांत इसमें बरी हो गए थे. इसी प्रकार नहर विभाग के जूनियर इंजीनियर जंगली प्रसाद भारती की हत्या के आरोप भी रमाकांत पर लगे. पुलिस के मुताबिक रमाकांत ने पीट-पीटकर इंजीनियर की हत्या की थी. आरोप है कि रमाकांत यादव के पास फूलपुर के पलिया माइनर की सफाई का ठेका था और वह बिना काम कराए पेमेंट लेना चाहते थे. इंजीनियर ने विरोध किया तो उसे अपनी जान देनी पड़ी थी.
काफिले से आगे निकलने पर उलेमा काउंसिल सदस्य की हत्या
साल 2009 में आजमगढ़ के उलेमा काउंसिल सदस्य अब्दुल रहमान की हत्या में भी रमाकांत यादव का नाम आया था. आरोप है कि रमाकांत यादव अपने काफिले के साथ कहीं जा रहे थे. इस दौरान अब्दुल रहमान बाइक पर उनके काफिले से आगे निकल गए थे. इसी बात पर गुस्से में उन्हें गोली मार दी गई थी. इस मामले में मुकदमा तो दर्ज हुआ, लेकिन रमाकांत यादव आजमगढ़ कोर्ट से बरी हो गए थे.
यह मामला अभी भी हाईकोर्ट में लंबित है. इस मामले में रमाकांत यादव को 11 महीने जेल में भी रहना पड़ा था. इसी प्रकार राजनैतिक प्रतिद्वंदिता की वजह से जिला पंचायत सदस्य डॉ. राम बहादुर यादव की हत्या का भी आरोप रमाकांत पर है. आरोप है कि वह आखिरी बार रमाकांत यादव के घर गए थे और चार दिन के बाद उनका शव कुंवर नदी से बरामद हुआ था.
गाड़ियों के शीशे पर लगा स्टीकर ही होता था परमिट
एक समय था जब आजमगढ़ से सोनभद्र तक बाहुबली रमाकांत की मोनोपॉली थी. सरकार चाहें किसी की भी हो, इन जिलों में 80 प्रतिशत ठेकों और पट्टे रमाकांत यादव को मिलते थे. उन दिनों आजमगढ़ से सोनभद्र तक रमाकांत के नाम पर करीब 200 ट्रक चलते थे. इन सभी ट्रकों के शीशे पर एक स्टीकर लगा होता था. इसमें मोटे अक्षरों में RKY (रमाकांत यादव) लिखा रहता था. यह स्टीकर देखने के बाद इन ट्रकों की रोकने की हिम्मत ना तो किसी पुलिस वाले में होती थी और ना ही आरटीओ के अफसरों की.
1985 में शुरू की राजनीति
वैसे तो बड़े भाई उमाकांत के साथ रमाकांत यादव काफी पहले ही राजनीति में आ गए थे. हालांकि उन्होंने पहली बार साल 1985 में अपने दम पर कांग्रेस के साथ राजनीतिक जीवन शुरू किया. उस समय वह विधान चुनाव लड़े और जीते भी. फिर 1989 में बसपा के टिकट से चुनाव लड़े और विधायक बने. तीसरी बार 1991 में वह सपा के बैनर तले चुनाव जीते. चौथी बार 1993 में भी वह सपा के ही टिकट पर विधानसभा पहुंचे. इसके बाद 1996 में वह पहली बार सपा के टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे.
1999 में उन्होंने दोबारा लोकसभा चुनाव में विजय हासिल की, लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव में वह बसपा में आ गए और फिर सांसद बने. इसके बाद साल 2009 में वह बीजेपी के टिकट पर जीत कर संसद पहुंचे. हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें मुलायम सिंह यादव ने शिकस्त दी तो वह 2019 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर भदोही से लोकसभा चुनाव लड़े और हार गए. फिर वह 2022 के विधानसभा चुनाव में पांचवी बार जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं.