सौम्य चेहरा, बुलंद आवाज…पूर्वांचल के डॉन बृजेश सिंह की कहानी, जिससे थर्राता था अंडरवर्ल्ड

पूर्वांचल के कुख्यात माफिया डॉन बृजेश सिंह बचपन में एक मेधावी छात्र हुआ करते थे. ख्वाब देखा था कि उन्हें आईएएस बनना है. लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनीं कि बचपन के मासूम अरुण कुमार सिंह, कब खूंखार बृजेश सिंह बन गए, उन्हें खुद पता नहीं चला. पिता की हत्या के बदला लेने के लिए अपराध की दुनिया में उतरे बृजेश सिंह की हनक आज भी कायम है.

पूर्वांचल के डॉन बृजेश सिंह

उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन और बाहुबली बृजेश सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं है. वहीं बृजेश सिंह, जिसने कुख्यात माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को भी पानी पिला दिया. यहां तक कि अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम को भी कड़ी टक्कर दी थी. बनारस से एमएलसी रहे बृजेश सिंह व उनके परिवार का राजनीतिक प्रभाव आज भी बनारस, गाजीपुर और चंदौली की करीब 10 विधानसभा सीटों पर हैं. इनमें एक सीट से उनके भतीजे सुशील सिंह खुद विधायक भी हैं. बचपन से मेधावी, पढ़ाई में होशियार बृजेश सिंह ने सपने में भी अपनी इस पोजिशन के बारे में सोचा भी नहीं था. बल्कि उनकी पढ़ाई में लगन और रुचि को देखते हुए उनके पिता चाहते थे कि वह आईएएस बनें.

बनरस के धरहरा गांव के रहने वाले मॉफिया डॉन बृजेश सिंह का असली नाम अरुण सिंह है. 1984 में हुई यूपी बोर्ड की परीक्षा में अरुण सिंह ने बनारस टॉप किया था. फिर यूपी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में टॉप किया और बीएससी की पढ़ाई करने लगे. उस समय उनके पिता रवींद्र नाथ सिंह की काफी रसूखदार व्यक्ति थे, लेकिन जमीनी विवाद में उनकी दिन दहाड़े हत्या हो गई. इस घटना ने बृजेश सिंह को तोड़कर रख दिया. कई दिन तो उनकी हरकत विक्षिप्तों जैसी रही, लेकिन वह इस घटना से उबर कर बाहर आए तो मासूम अरुण सिंह नहीं, बल्कि आज के बृजेश सिंह दुनिया के सामने थे.

पत्नी अन्नपूर्णा सिंह के साथ डॉन बृजेश सिंह

सिकरौरा में छह लोगों को भून डाला

बृजेश सिंह ने घर छोड़ दिया. ठान लिया कि चैन से तभी सोएंगे, जब उनके पिता के हत्यारे धराशायी होंगे. फिर क्या था, कुछ ही दिन बाद यानी 1985 में उन्होंने पिता के हत्यारे हरिहर सिंह को गोली मार दिया. हालांकि इससे उनका मन नहीं भरा. फिर 1986 में बृजेश सिंह ने चंदौली के सिकरौरा गांव में दिन दहाड़े पांच लोगों को गोलियों से भून दिया. यही वही पांच लोग थे, जिन्होंने हरिहर सिंह के साथ मिलकर बृजेश सिंह के पिता रविंद्र सिंह की हत्या की थी. इस प्रकार छह लोगों की हत्या की इस घटना में सबूत भी थे और चश्मदीद गवाह भी, बावजूद इसके मुकदमा 32 साल चला और आखिर में गवाहों के बयान बदलने से बृजेश सिंह बरी हो गए. यही वह घटना थी, जिससे अपराध की दुनिया में बृजेश सिंह एक हस्ताक्षर बन गए.

बदले की आग ने कराई त्रिभूवन से दोस्ती

दरअसल हरिहर सिंह की हत्या के बाद बृजेश सिंह अरेस्ट हुए थे. उन्हें गाजीपुर जेल भेजा गया था, जहां उनकी मुलाकात पुराने हिस्ट्रीशीटर त्रिभुवन सिंह हुई. दोनों बदले की आग में जल रहे थे. बृजेश को अपने पिता के हत्यारे हरिहर के साथियों की हत्या करनी थी. वहीं त्रिभूवन सिंह को कांस्टेबल भाई के हत्यारों को सजा देनी थी. जेल में ही दोनों ने एक दूसरे का साथ देने का वादा किया. फिर जेल से बाहर आते ही बृजेश सिंह ने त्रिभूवन सिंह की मदद से अपने पिता के हत्यारों को सिकरौरा गांव में सजा दी. इसके बाद पुलिस की वर्दी पहन कर गाजीपुर अस्पताल में घुसे और त्रिभूवन सिंह के भाई के हत्यारे साधु सिंह को मौत के घाट उतार दिया.

एमएलसी बृजेश सिंह की कहानी

मुख्तार से अंतिम सांस तक चली लड़ाई

इसी घटना के बाद बृजेश सिंह की अदावत मुख्तार अंसारी से हो गई. दरअसल साधु सिंह और मकनू सिंह मुख्तार अंसारी गैंग से जुड़े थे. ऐसे में जब साधु सिंह की हत्या हुई तो मुख्तार ने इसे व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का विषय बना लिया. उसने कई बार बृजेश सिंह पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन बृजेश सिंह की बेहतर रणनीति की वजह से उसे हर बार मुंह की खानी पड़ी थी. इतने में 90 का दशक आ गया और इस समय तक बृजेश के खिलाफ इतने मुकदमे दर्ज हो गए थे कि वह वापसी नहीं कर सकते थे. ऐसे में बृजेश ने त्रिभूवन सिंह के साथ मिलकर रेलवे और बिजली के ठेकों पर वर्चस्व हासिल करते चले गए. हालांकि इसके लिए भी उन्हें मुख़्तार अंसारी गैंग के साथ टकराना पड़ा. यह टकराव मुख्तार की अंतिम सांस तक जारी रहा.

2008 में हुई गिरफ्तारी

साल 2000 तक बृजेश सिंह के खिलाफ यूपी, दिल्ली, राजस्थान और महाराष्ट्र समेत करीब आधा दर्जन राज्यों में 50 से अधिक मुकदमे दर्ज हो गए. इसमें हत्या, हत्या का प्रयास, लूट, डकैती, अपहरण, रंगदारी आदि के मामले शामिल हैं. यहां तक कि उनके खिलाफ मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ओफ़ ऑर्गनाइज्ड क्राइम ऐक्ट), टाडा (टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज एक्ट) और गैंगस्टर एक्ट के तहत भी मुकदमे दर्ज हुए. उनकी तलाश में इन सभी राज्यों की पुलिस ताबड़तोड़ दबिश देने लगी, लेकिन किसी को कोई भनक तक नहीं लगी. ऐसे हालात में उत्तर प्रदेश पुलिस ने 5 लाख रुपये तो महाराष्ट्र और दिल्ली पुलिस ने भी अपने स्तर पर बृजेश सिंह के खिलाफ इनाम की घोषणा कर दी. आखिर साल 2008 में उनकी गिरफ्तारी भूवनेश्वर में हुई. इसके बाद मुकदमों का ट्रॉयल शुरू हुआ और गवाहों के मुकरने की वजह से एक के बाद एक मुकदमें में बरी होते चले गए.

बृजेश-मुख्तार की लड़ाई में मारे गए कृष्णानंद

साधु सिंह हत्याकांड के बाद उसके भाई मकनू सिंह ने अपनी गैंग का विलय मुख्तार की गैंग में कर लिया. इसके बाद से ही मुख्तार बृजेश के पीछे पड़ गया. इधर, बृजेश ने भी मुख्तार को टक्कर देने के लिए गाजीपुर में विधायक कृष्णानंद राय से दोस्ती कर ली. राजनीतिक संरक्षण मिलते ही बृजेश काफी मजबूत बनकर उभरे थे. ऐसे में मुख्तार ने बृजेश को मात देने के लिए मुन्ना बजरंगी से हाथ मिलाया. तय हुआ कि बृजेश पर सीधा हाथ डालना संभव नहीं, इसलिए कृष्णानंद राय को ही मार दिया जाए. इस प्रकार मुख्तार के इशारे पर मुन्ना बजरंगी ने गाजीपुर में दिन दहाड़े कृष्णानंद राय की हत्या कर दी.

चर्चा में रहे जेजे अस्पताल और उसरी चट्टी हत्याकांड

बृजेश सिंह द्वारा अंजाम दिए गए गैंगवार की तमाम घटनाओं में मुंबई के जेजे अस्पताल शूटआऊट और बनारस के उसरी चट्टी गोलीकांड खूब चर्चा में रहे. कहा जाता है कि जेजे अस्पताल शूटआउट को बृजेश सिंह ने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के इशारे पर अंजाम दिया था. दरअसल दाऊद के बहनोई को अरुण गवली गैंग के बदमाश शैलेश हलदरकर ने गोलियों से भून दिया था. इसका बदला लेने की जिम्मेदारी दाऊद ने बृजेश को सौंपी. उस समय जेजे अस्पताल में भारी सुरक्षा इंतजाम के साथ भर्ती इस बदमाश को बृजेश सिंह ने दिन दहाड़े गोलियों से छलनी कर दिया था. इस घटना में बृजेश ने AK47 से हलदरकर पर 500 गोलियां दागी थीं. वहीं उसरी चट्टी गोलीकांड में बृजेश ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला किया था. इसमें मुख्तार के गनर व एक साथी की मौत हो गई थी.