मिली थी उम्रकैद, 8 साल में हो गए रिहा, बाहुबली उदयभान करवरिया की कहानी, जिनके लिए गवाही देने पहुंचे थे कलराज

जवाहर पंडित और उदयभान करवरिया के बीच बालू के ठेकों पर वर्चस्व को लेकर अदावत थी. शुरुआत में दोनों पक्षों ने बातचीत से मामला सुलझाने की कोशिश की. लेकिन बात नहीं बनी. देखते ही देखते ये अदावत इतनी ज्यादा बढ़ गई कि साल 1996 में जवाहर पंडित की प्रयागराज में दिनदहाड़े एके-47 से हत्या कर दी गई.

बाहुबली उदयभान करवरिया

तारीख थी 13 अगस्त 1996. प्रयागराज का सिविल लाइन्स इलाका एके-47 के गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. दिनदहाड़े समाजवादी पार्टी के तब के विधायक जवाहर यादव ऊर्फ जवाहर पंडित की हत्या कर दी गई. आरोप लगा बीजेपी बाहुबली उदयभान करवरिया पर, जो बीजेपी से दो बार के विधायक भी रहे. ऐसा पहली बार हुआ था जब प्रयागराज में एके-47 गरजी थी.

हत्या के वक्त जवाहर पंडित अपनी सफेद मारुति से कहीं जा रहे थे. उनकी गाड़ी के ठीक पीछे एक टाटा सूमो चल रही थी. सिविल लाइन्स के पैलेस टाकीज के पास अचानक से टाटा सूमो ने मारुति को ओवरटेक कर लिया. साथ ही उनके बगल के लेन में एक और वैन चलने लगी. फिर आगे चल रही टाटा सूमो अचानक से रुक जाती है. फिर अचानक से जवाहर पंडित की गाड़ी के बगल के लेन में चल रही वैन भी रुक जाती है. टाटा सूमो से एक और मारुति कुल 5 लोग निकलते हैं. इनके पास एके 47 जैसी हथियारे थीं, जिससे उन्होंने सफेद मारुति पर गोलियों की बौछार कर दी. जवाहर पंडित के शरीर में तकरीबन 10 गोलियां मारी गई. उनके साथ ड्राइवर गुलाब यादव भी मारा गया था. इसके अलावा हमले में एक राहगीर की भी मौत हो गई थी.

बालू के ठेकों लेकर थी अदावत

जवाहर पंडित और उदयभान करवरिया के बीच बालू के ठेकों पर वर्चस्व को लेकर अदावत थी. 90 का दशक आते-आते जवाहर पंडित की मुलायम सिंह यादव से करीबी हो गई. ऐसे में जब 1993 में सपा की सरकार बनी तो जवाहर पंडित विधायक विधायक बन गए. देखते ही देखते शहर में उनका जलजला भी बढ़ दया. बालू के अधिकतर ठेकों पर जवाहर पंडित का कब्जा हो गया. करवरिया परिवार का धंधा ठप होने लगा. शुरुआत में काररिया परिवार ने जवाहर पंडित से बात चीत कर मामला सुलझाने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी. इन सबके बीच 1996 में सियासी समीकरण भी बदल गए और सपा की सरकार गिर गई. समाजवादी पार्टी के सत्ता से बाहर होते ही उदयभान करवरिया ने जवाहर पंडित को ठिकाने लगाने की ठान ली.

उदयभान को सजा के बदले मिला प्रमोशन

जवाहर पंडित की हत्या के आरोप में उदयभान और उसके परिवार पर एफआईआर हुआ था. लेकिन इन्हें पकड़ा नहीं गया. उल्टे इस हत्याकांड के बाद उसका प्रमोशन हो गया. हत्यारोपी बनने के ठीक 6 साल बाद उदयभान को बीजेपी ने प्रयागराज के बारा सीट से टिकट दे दिया. चुनाव जीत कर वह माननीय बन गया. 2007 में भी वह इस सीट से विधायक रहा. बीजेपी साथ-साथ मायावती सरकार में भी उस पर किसी तरह का एक्शन नहीं लिया गया. लेकिन उसके सितारे गर्दिश में तब आए जब साल 2012 में समाजवादी पार्टी की सत्ता में वापसी हुई.

जेल में रहते भी हनक बरकरार रही

समाजवादी पार्टी की सरकार में उदयभान पर शिकंजा कसा जाने लगा. साल 2012 में वह दो महीने के लिए फरार भी रहा है. शासन के दबाव में उसने 1 जनवरी 2014 को सरेंडर कर दिया. खैर उदयभान जेल तो चला गया. लेकिन उसकी हनक बरकरार रही. 2017 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की वापसी के बाद ये हनक और बढ़ गई. अक्टूबर 2018 में बाकायदा उत्तर प्रदेश सरकार ने सेशन कोर्ट में करवरिया बंधुओं के खिलाफ केस वापसी की अर्जी डाल दी थी. ऐसे में जवाहर पंडित की पत्नी विजमा यादव की अपील पर इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट को दखल देना पड़ा. कोर्ट ने उदयभान की आजादी की अर्जी खारिज करते हुए मुकदमा जारी रखा. नवंबर 2019 में उदयभान को उम्र कैद की सजा हो गई.

8 साल 9 महीने में ही हो गया रिहा

वैसे तो 3 हत्याओं के आरोपी पूर्व बाहुबली विधायक उदयभान को उम्रकैद की सजा हुई. लेकिन उसे 8 साल 9 महीने 11 दिन में ही जेल से आजादी मिल गई. उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें शराफत का सर्टिफिकेट देते हुए रिहा कर दिया. उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्यपाल के पास उदयभान की रिहाई के लिए जो फाइल भेजी, उसमें कहा कि साहब इनका आचरण बहुत अच्छा है.  इनको जेल से आजाद करने में कोई दिक्कत नहीं है. फिर क्या 30 जुलाई 2024 को उदयभान को रिहा कर दिया गया. बता दें उदयभान का पिता भुक्कल महाराज 80 के दशक में जरायम की दुनिया का बड़ा नाम था. उसका ऐसा खौफ था कि गलती से भी कोई भुक्कल महाराज का जिक्र भी कर देता था तो बड़े से बड़े कारोबारी की हवा टाइट हो जाती थी.

कलराज मिश्र ने दी थी उदयभान के लिए गवाही

उदयभान की बीजेपी में ऐसी गहरी पैठ थी कि जवाहर पंडित हत्याकांड में तत्कालीन बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्रा ने उसके पक्ष में गवाही दी थी. दरअसल, उदयभान ने कोर्ट में दावा किया था, जिस दिन जवाहर पंडित की हत्या हुई उस दिन वह प्रयागराज की बजाय कलराज मिश्र के साथ था. ऐसे में कलराज मिश्र उदयभान के पक्ष में गवाही देने भी आए थे, लेकिन कोर्ट ने उनकी गवाही को अस्वीकार कर दिया.

उदयभान को देखकर अतीक भी बदल लेता था रास्ता

उदयभान और अतीक की भी अदावत रही है. दरअसल, अतीक ने अपने ही अपराधिक गुरु और उदयभान के पिता भूक्कल महाराज की हत्या करा दी थी. यह खबर जैसे ही उदयभान को पता चली, उसने फैसला कर लिया वह अतीक को सबक जरूर सिखाएगा. रेत खनन और रियल एस्टेट जैसे अपराध के क्षेत्र में दोनों गैंग के बीच खूनी खेल शुरू हो गया. धीरे-धीरे जरायम की दुनिया में उदयभान की हनक ऐसी हो गई थी कि अतीक और उसके गुर्गे उदयभान करवरिया को देख अपना रास्ता बदल लेते थे.

भाजपा के लिए ऐसे आ सकते हैं काम

भाजपा के लिए प्रयागराज में राजनीतिक समीकरण बदलने में उदयभान बेहद काम आ सकते हैं. दरअसल, उदयभान की पहचान ब्राह्मण चेहरे के रूप में होती है. इसके साथ ही प्रयागराज और उसके आसपास के इलाके भी ब्राह्मण बाहुल्य हैं. ऐसी स्थिति में भाजपा 2027 के विधानसभा चुनाव में उसका फायदा उठाना चाहेगी और प्रयागराज और उसके आसपास के अधिक से अधिक सीटें जीतने की कोशिश करेगी.