MLA विनोद सिंह के कॉलेज में टीचर थे सुल्तानपुर के बाहुबली सोनू, फिर हुई तगड़ी रार; स्नातक चुनाव से भी कनेक्शन
सुल्तानपुर के बाहुबली सोनू-मोनू और विनोद सिंह के बीच लंबे समय से चली आ रही खूनी रंजिश किसी फिल्मी कहानी की तरह है. इसमें एक्शन है, रोमांच है और रहस्य भी है. इस कहानी की शुरूआत सोनू सिंह के पिता की हत्या के साथ ही हो गई थी, जो अब तक बदस्तूर जारी है. लेकिन कैसे, यहां पढ़ लीजिए इनके रंजिश की पूरी कहानी.

सुल्तानपुर के बाहुबली सोनू-मोनू की कहानी एक ऐसी फिल्म जैसी है, जिसमें थ्रिल है, सस्पेंस हैं और एक्शन भी. ताबड़तोड़ घटनाएं हो रही है, इन घटनाओं का आपस में कनेक्शन ऐसा है कि सुल्तानपुर से अयोध्या तक पूरा का पूरा चक्रव्यूह बन गया है. आइए, आज के प्रसंग में उन्हीं घटनाक्रम पर नजर डालने की कोशिश करते हैं. इस कहानी की शुरूआत आज के 26 साल पहले 21 जनवरी 1999 के उस घटनाक्रम से करते हैं, जिसमें आज के बाहुबली सोनू सिंह के पिता पर बम फेंका गया था.
साल 1999 तक बाहुबली सोनू-मोनू सिंह के पिता इंद्रभद्र सिंह तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे स्वर्गीय केदार नाथ सिंह के डिग्री कॉलेज में पीटीआई टीचर थे. चूंकि केदार नाथ सिंह अक्सर दिल्ली रहते थे, इसलिए उनकी अनुपस्थिति में स्कूल का सारा कामकाज विनोद सिंह ही देखा करते थे, जो बाद में विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बने. 21 जनवरी 1999 को इंद्रभद्र सिंह की हत्या के बाद मृतक आश्रित कोटे से उनकी नौकरी बड़े बेटे चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू सिंह को मिल गई.
ये था टर्निंग पॉइंट
यहां तक तो सब ठीक था, लेकिन उसी बीच सोनू सिंह पर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की नजर पड़ गई और उन्होंने साल 2002 के चुनाव में सोनू सिंह को सपा के टिकट पर उन्हें इसौली विधानसभा से मैदान में उतार दिया. पिता की सिंपैथी, खुद का प्रभाव और सपा का वोटबैंक, तीनों का लाभ मिला और सोनू सिंह विधायक बन गए. फिर 2007 के चुनाव में भी वह इस सीट से चुनाव जीते, लेकिन सरकार बसपा की बन गई. उस समय विनोद सिंह भी पहली बार बसपा के टिकट पर लम्भुआ सीट से चुनाव जीतकर विधायक बन गए थे. यही नहीं, बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें पर्यटन राज्य मंत्री बना दिया.
फिर शुरू हो गया रार
विनोद सिंह के विधायक बनने के बाद ही सोनू सिंह से राजनैतिक प्रतिद्वंदिता की नींव पड़ी. डिग्री कॉलेज चला रहे बसपा के तत्कालीन विधायक विनोद सिंह को सपा विधायक सोनू सिंह खटकने लगे. इसकी वजह भी थी. पहली वजह यह कि सोनू सिंह उनके डिग्री कॉलेज में नौकरी करते थे, लेकिन विधानसभा में बराबर बैठते थे. दूसरी यह कि, विनोद सिंह को सुल्तानपुर में कभी वो रूतबा हासिल नहीं हो सका, जो सोनू सिंह ने बहुत कम समय में हासिल कर लिया. ऐसे में जिले में सोनू सिंह का वर्चस्व और हनक विनोद सिंह को अखरने लगी. फिर दोनों में वर्चस्व की बड़ी लकीर खींचने की होड़ शुरू हो गई.
ऐसे शुरू हुई खूनी रंजिश
बसपा सरकार में मंत्री रहते विनोद सिंह ने अपने छोटे भाई अशोक सिंह को भी एमएलसी बनवा दिया. इसके बाद साल 2013 के दिसंबर में एक दिन न्यौता खाकर लौटते समय अशोक सिंह की गाड़ी ओवरटेक करने को लेकर सोनू सिंह के छोटे भाई एमएलसी अशोक सिंह के साथ विवाद हो गया. यह विवाद इतना बढ़ा कि ना केवल मामले में लोकल पुलिस इंवाल्व हुई, बल्कि जिले से आगे निकलकर यह मामला प्रदेश स्तर पर राजनीतिक मुद्दा बन गया. यही वह घटनाक्रम था, जो धीरे धीरे सुलगते सुलगते सोनू-मोनू और विनोद सिंह के बीच खूनी रंजिश का रूप ले लिया. उस समय पूर्व मंत्री विनोद सिंह ने ठान लिया कि अब सोनू-मोनू का बाहुबल ही नहीं, राजनीति और सामाजिक वैभव को भी शून्य कर देंगे. वहीं सोनू-मोनू ने भी तय कर लिया कि विनोद सिंह के पर कतर देंगे.
दोनों करते हैं लॉबिंग
उसके बाद से ही दोनों एक दूसरे का वजूद मिटाने की जुगत में लग गए. तब से आज तक एक दूसरे को पटखनी देने के लिए दोनों में से कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ता. इसके लिए दोनों जमीन पर काम करते हैं तो साथ में उच्च स्तर पर लॉबिंग भी करते हैं. अभी पिछले दिनों ही बीजेपी के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह सोनू-मोनू के बुलावे पर सुल्तानपुर पहुंचे थे. वहीं बीजेपी के ही स्नातक विधायक देवेंद्र प्रताप सिंह सोनू सिंह के समर्थन में अपनी ही पार्टी के विधायक मोनू सिंह का विरोध किया है. यहां तक कि उन्होंने विनोद सिंह पर सुल्तानपुर की राजनीति में जहर घोलने तक का आरोप लगा दिया.
स्नातक चुनाव से क्या कनेक्शन?
उत्तर प्रदेश बहुत जल्द स्नातक एमएलसी के चुनाव होने वाले हैं. डिग्री कॉलेज के संचालक होने के बावजूद विनोद सिंह की स्नातकों में पैठ उतनी नहीं मानी जाती, जितनी सोनू-मोनू की है. पिछले चुनाव में यह बात प्रमाणित भी हुई थी. इसी लिए अयोध्या क्षेत्र के मौजूदा एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह भी सोनू-मोनू को ही ज्यादा भाव देते हैं. अब विधायक विनोद सिंह की चिट्ठी के खिलाफ बीजेपी के ही एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह की डीएम को लिखी चिट्ठी ने एक बार फिर उसी माहौल को क्रिएट करने की कोशिश की है. कयास लगाए जा रहे हैं कि देवेंद्र प्रताप सिंह ने इस चिट्ठी के जरिए सोनू-मोनू को एक बार फिर से अपने पक्ष में कर लिया है.