जाट वोटों के नुकसान की भरपायी गुर्जरों से करेंगे अखिलेश! बनाया मेगा प्लान, जानें इस बार क्या करने वाले हैं एक्सपेरिमेंट
उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने एक नई रणनीति अपनाई है. जयंत चौधरी के बीजेपी गठबंधन में शामिल होने से जाट वोटों के प्रभावित होने की आशंका को देखते हुए, अखिलेश यादव अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुर्जर वोटों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. इसके लिए वे छोटी-छोटी चौपालें और रैलियां करेंगे और गुर्जर समाज के सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर काम करेंगे. यह रणनीति सपा के लिए चुनावी समीकरणों को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.

वैसे तो सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव हर चुनाव से कुछ सीखने का दावा करते हैं और हर बार कुछ नया और अलग करने की कोशिश करते हैं. इस बार भी उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर उन्होंने रणनीति तैयार कर ली है. इस बार वह नया एक्सपेरिमेंट करने जा रहे हैं. वह खुद कहते भी है कि जबतक सफलता नहीं मिलती, एक्सपेरिमेंट जारी रहना चाहिए. माना जा रहा है कि जयंत चौधरी के बीजेपी गठबंधन में शामिल होने से जाट वोटों का नुकसान हो सकता है. इस नुकसान की भरपायी अखिलेश यादव गुर्जर वोट से करने वाले हैं.
अखिलेश यादव का मानना है कि राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के नेता जयंत चौधरी के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल होने से जाट वोट डायवर्ट हो सकता है. ऐसी स्थिति में सपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कमजोर पड़ सकती है. इस आशंका को देखते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत करने की नई रणनीति बनाई है. इस रणनीति के तहत अब अखिलेश यादव गुर्जर समाज को साधने की कोशिश में जुट गए हैं. इस रणनीति के तहत यूपी के 34 जिलों की 132 विधानसभा सीटों पर अखिलेश यादव छोटी-छोटी चौपाल और रैलियां करने वाले हैं.
चौपाल और रैलियां करेंगे अखिलेश
ये चौपाल और रैलियां खासतौर पर उन विधानसभा क्षेत्रों में होंगी, जहां गुर्जर मतदाताओं की संख्या जाटों से अधिक है. अखिलेश यादव ने इन रैलियाों की कमान सपा प्रवक्ता और पश्चिमी यूपी के नेता राजकुमार भाटी को दी है. इसी प्रकार नवंबर महीने में अखिलेश यादव ग्रेटर नोएडा में एक बड़ी रैली करने वाले हैं. सपा नेता राजकुमार भाटी के मुताबिक दिल्ली में 19 जुलाई को हुई गुर्जर चौपाल में भी सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव मौजूद थे. यह चौपाल समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय कार्यालय पर हुई थी.
जाट वोट खिसकने का डर
उन्होंने कहा कि बीजेपी के राज में गुर्जर समाज उपेक्षित और अपमानित महसूस कर रहा है. आजादी के बाद योगी आदित्यनाथ की दोनों ही सरकारों में कोई गुर्जर कैबिनेट मिनिस्टर नहीं है. इससे गुर्जर समाज नाराज है. वैसे जाटों को समाजवादी पार्टी का पारंपरिक समर्थक माना जाता रहा है. रालोद के साथ गठबंधन के दौरान यह पैटर्न देखने को मिला था. हालांकि,जयंत चौधरी के 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए में शामिल होने के बाद अब सपा को जाट वोटों के खिसकने का डर सताने लगा है.
करीब 6 फीसदी है गुर्जर वोट
चूंकि पश्चिमी यूपी में जाट समुदाय की आबादी करीब 3-4% है. यह जाट वोट कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती हैं. इस नुकसान की भरपाई के लिए अखिलेश ने गुर्जर समुदाय पर फोकस किया है. गुर्जर वोट भी पश्चिमी यूपी में करीब 5-6% है और मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बागपत, सहारनपुर, मुजफ्फरपुर नगर, शामली और बुलंदशहर जैसे जिलों में प्रभावशाली है.
मिहिर भोज की विरासत का सहारा
सपा ने गुर्जर समुदाय को जोड़ने के लिए हाल ही में लखनऊ में करीब 60 गुर्जर संगठनों के साथ बैठक की. इन बैठकों में अखिलेश ने गुर्जर समुदाय की सामाजिक और आर्थिक चिंताओं को समझने और उनके लिए नीतिगत समाधान पेश करने का वादा किया. इसके अलावा,सपा ने ऐतिहासिक गुर्जर नायक राजा मिहिर भोज की विरासत को उभारने की रणनीति अपनाई है. मीहिर भोज को गुर्जर समुदाय का गौरव माना जाता है. सपा इस नायक के योगदान को प्रचारित कर समुदाय में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश शुरू कर दी है.
पीडीए में गुर्जर समाज की भूमिका
2024 के लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने उत्तर प्रदेश में शानदार प्रदर्शन किया था. इस गठबंधन ने प्रदेश में कुल 43 सीटें झटक ली थी. इनमें सपा ने अकेले 37 सीटें जीती थीं. इस जीत में गैर-यादव ओबीसी और दलित वोटरों की अहम भूमिका मानी जा रही है. कहा जा रहा है कि अखिलेश की ‘पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक’ (पीडीए) रणनीति कारगर रही और गैर-यादव ओबीसी समुदायों, विशेष रूप से कुर्मी, मौर्य, और निषाद जैसे समूहों को सपा के पक्ष में लामबंद हो सका. अब गुर्जर समुदाय को जोड़कर अखिलेश इस फार्मूले को और प्रभावी बनाना चाहते हैं.