UP में क्या मायावती और ओवैसी आ सकते हैं साथ? बिहार के संदेश से बदल सकता है समीकरण

2025 बिहार विधानसभा चुनाव में हुए कुछ घटनाक्रमों ने 2027 यूपी असेंबली इलेक्शन में मायावती और ओवैसी के साथ आने की चर्चा तेज कर दी है. इससे पहले दोनों 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में दोनों साथ आ चुके थे. इसका फायदा भी उन्हें मिला था.

ओवैसी और मायावती

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने भले ही प्रचंड बहुमत के साथ एनडीए की वापसी करा दी हो, लेकिन इस चुनाव में सबसे चौंकाने वाला दांव उस पार्टी ने खेला, जिसे फाइट में दूर-दूर तक नहीं माना जा रहा था. यहां बात हो रही है बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की, जिसने एक सीट जीतकर भी सियासत के बड़े खिलाड़ियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है. बिहार की इस एक सीट से भी बड़ा संदेश बसपा और AIMIM की बढ़ती नज़दीकियों से निकला है.

रैली मंच पर साथ नहीं, लेकिन मैदान में एक-दूसरे के परछाईं बनकर साथ चलता कैडर और नेताओं के बयानों से साफ़ होते तालमेल ने बिहार ने दिखा दिया कि बहुजन + मुसलमान का फॉर्मूला फिर से एक्टिव हो सकता है. सबसे दिलचस्प बात ये कि गठबंधन किसी और से था, लेकिन वोट अपील बीएसपी के लिए. जुलूस किसी और के साथ और बयानबाज़ी मायावती के पक्ष में. यही वजह है कि बिहार से लेकर यूपी तक की राजनीतिक गलियारों में सवाल गूंजने लगे हैं कि क्या ओवैसी और मायावती 2027 यूपी चुनाव के लिए एक नई इबारत लिखने जा रहे हैं?

बसपा और AIMIM पहले भी आ चुकी है साथ

इससे पहले 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में भी दोनों दल साथ आ चुके हैं और बीएसपी अकेली राष्ट्रीय पार्टी है, जिसने AIMIM से औपचारिक गठबंधन किया है. अब ताज़ा बिहार चुनाव ने फिर से संकेत दे दिया है कि इस जुड़ाव में कुछ तो पक रहा है.. कुछ बड़ा.. जो आने वाले दिनों में देखने को भी मिल सकता है. अगर ये समीकरण सच साबित होता है तो 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में खेल बदल सकता है.

मायावती और ओवैसी दोनों को एक दूसरे की जरूरत

मायावती मुस्लिम वोटों की वापसी चाहती हैं और ओवैसी धर्म आधारित इमेज से बाहर निकलने का रास्ता बना रहे हैं. ऐसे में ये भी कयास लगाने जाने लगे हैं कि दोनों का साथ आने पर यूपी में तीसरा मोर्चा तैयार हो सकता है, जो सीधा नुकसान INDIA गठबंधन और खासकर समाजवादी पार्टी को पहुंचाएगा.

ओवैसी और मायवती साथ आए तो क्या होगा?

ओवैसी को बीजेपी का ‘बी टीम’ कहने वालों को बड़ा झटका मिला है. मुस्लिम मतदाता ने उन आरोपों को नकार कर.. AIMIM को 5 सीटें दिला दीं और 10 सीटों पर बेहद कम अंतर से हार का मतलब है कि ओवैसी की पकड़ बढ़ रही है. उनकी स्वीकार्यता बढ़ रही है. यूपी के 2027 चुनाव में यही बढ़ी हुई स्वीकार्यता, मायावती के वोटबैंक के साथ जुड़कर एक तीसरी चुनौती खड़ी कर सकती है.

तीन तरफा हो सकती है यूपी विधानसभा की लड़ाई

इधर बिहार नतीजों के बाद अखिलेश यादव फिर से कांग्रेस पर दबाव बढ़ा सकते हैं, लेकिन कांग्रेस मान जाएगी या नहीं? ये अभी सवाल है और इसी अनिश्चितता का फायदा मायावती और ओवैसी की संभावित जोड़ी उठा सकती है. ऐसे में साफ़ है कि बिहार चुनाव सिर्फ बिहार की कहानी नहीं था, इसने यूपी की 2027 की तस्वीर भी धुंधली-सी सही, लेकिन दिखा दी है. अगर मायावती और ओवैसी साथ आए तो यूपी की सत्ता की लड़ाई दो-तरफ़ा नहीं तीन-तरफ़ा हो जाएगी. साथ ही तीन-तरफ़ा लड़ाई में हर सीट का गणित और हर वोट का समीकरण बदल जाएगा.