18% वोटों का वो गणित, जिसके कारण एक बार फिर संजय निषाद ने छेड़ा ‘राग रिजर्वेशन’!
उत्तर प्रदेश में मंत्री डॉक्टर संजय निषाद ने एक बार फिर से रिजर्वेशन राग छेड़ा है. उन्होंने बीजेपी सरकार से निषाद आरक्षण की मांग की है. साथ ही निषाद समाज के वोट बैंक का प्रभाव भी बताया है. हालांकि, राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि उनकी मौजूदा स्थिति इस मांग को मनवा पाने में चुनौती पेश कर सकती है.
उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री और निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉक्टर संजय निषाद ने फिर से ‘निषाद आरक्षण’ की मांग उठाई है. उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव से पहले योगी सरकार पर दबाव डालना शुरू कर दिया है. संजय निषाद ने कहा कि जब बीजेपी 370 खत्म कर सकती है, सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण दे सकती है और महिलाओं को आरक्षण दे सकती है तो निषादों को उनका हक़ देने में सरकार को क्या समस्या है?
अभी विधानसभा चुनाव में समय है लेकिन डॉक्टर संजय निषाद के हाथ से समय रेत की तरह फिसलता जा रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी 11 सीट जीतने में कामयाब रही थी. हालांकि, इसके बाद लोकसभा चुनाव में पार्टी कामयाब नहीं हो सकी. और उपचुनाव में तो निषाद पार्टी को बीजेपी से एक भी सीट नहीं मिल सका था. वहीं, अब डॉक्टर संजय निषाद ने एक बार फिर से रिजर्वेशन राग छेड़ा है.
पूरे देश में निषाद समाज को रिजर्वेशन
डॉक्टर संजय निषाद का कहना है कि पूरे देश में निषाद समाज को अनुसूचित जाति (एसएसी) रिजर्वेशन मिलता है. लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा क्यों नहीं है? उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री हमारे हक के लिए धरने तक पर बैठते थे. सांसद रहते भी उन्होंने इसके हक में बात की थी. हमें उनसे उम्मीद है कि जब आरजीआई की तरफ से भी ये बात आ गई है कि निषाद समाज एससी रिजर्वेशन का हकदार है तो सरकार भी इसको लागू करेगी. लेकिन अब देर हो रही है.’
उनका कहना है कि बीजेपी को ये समझना चाहिए कि 18% निषाद वोट जिसके साथ रहा वो सत्ता में रहा. कांग्रेस, सपा और बसपा इनके ही वोट से सरकार में रहे. अब निषादों ने ये मौका बीजेपी को दिया है. बीजेपी को ये भी समझना चाहिए कि बेस वोट छिटकने से कितना नुकसान होता है. उनका दावा है कि यूपी में 60 सीटों पर जो वोट कम हुआ है उसके लिए निषादों और सवर्णों की उदासीनता रही है.
संजय निषाद के पास और कोई विकल्प नहीं
प्रोफेसर हर्ष सिन्हा कहते हैं कि डॉक्टर संजय निषाद की पॉलिटिक्स समझने वाले ये जानते हैं कि वो एक प्रेशर ग्रुप के तौर पर अपने पार्टी का इस्तेमाल करते हैं. एससी रिजर्वेशन को लेकर जो टाइमिंग उन्होंने चुनी है वो भी अपनी जगह सही है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या वो इस स्थिति में हैं कि वो अपनी बातें मनवा सकें? सिन्हा ने कहा कि शायद नहीं क्यूंकि पिछले कुछ समय से उनकी ताकत ओमप्रकाश राजभर की तुलना में कम हुई है.
प्रोफेसर का कहना है कि अब लंबे समय तक कोई इंतज़ार करने के मूड में नहीं है. चाहें वो राजनेता हो या मतदाता. लोकसभा चुनाव के समय से परिस्थिति बदली है अब निषाद समाज के पास भी जयप्रकाश निषाद, राम भुआल निषाद और रमेश बिंद जैसे कई नेता हैं. सपा उनको अछूत भी नहीं लगती, पूर्व में वो सपा के साथ जा चुके हैं ऐसे में डॉक्टर संजय निषाद के पास और कोई विकल्प नहीं है.
प्रोफेसर हर्ष सिन्हा ने कहा कि संजय निषाद समाज को ये बताना चाहते हैं कि 7 जून 2015 को सहजनवा में जिस एससी रिजर्वेशन के मुद्दे पर उन्होंने रेलवे ट्रैक जाम किया था और आगे चलकर निषाद पार्टी बनाई थी उन्होंने वो वादा पूरा किया. साल 2016 में निषाद पार्टी का गठन नदियों के किनारे रहने वाले निषाद समाज के लोगों को ध्यान में रख कर किया गया था. 16 जिलों में निषाद समुदाय के वोट जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं.
पॉलिटिकल बार्गेनिंग का माहौल बना रहे हैं
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार विजय नारायण का कहना है कि डॉक्टर संजय निषाद विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर से पॉलिटिकल बार्गेनिंग का माहौल बना रहे हैं. और निषाद समाज का 18% वोटबैंक भी बढ़ा चढ़ा कर बता रहे हैं. पूर्वांचल में निषाद समाज का वोटबैंक प्रभावी है इससे इंकार नहीं किया जा सकता. लेकिन पिछले कई सालों से आरक्षण के नाम पर डॉक्टर संजय निषाद शिवाय आश्वासन के और कुछ दे नहीं पाए हैं.
उन्होंने कहा कि ऐसे में निषाद अगर एक बार फिर से सपा की ओर मूव कर जाएं तो हैरत नहीं होगी. निषादों की संख्या बल दिखाकर डॉक्टर संजय निषाद एक बार फिर सरकार पर दबाव डाल रहे हैं. लेकिन पार्टी और सरकार दोनों ही मोर्चे पर राजनैतिक साख बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. डॉक्टर संजय निषाद इस हैसियत में हैं कि वो योगी सरकार से ये काम करवा पाएं?