पहले क्षत्रिय कुटुंब, अब ब्राह्मण MLA की बैठक; यूपी में BJP विधायकों की जातीय गोलबंदी के क्या हैं मायने?
उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय समीकरण फिर हावी हैं. पहले क्षत्रिय और अब ब्राह्मण विधायकों की गोलबंदी ने भाजपा में हलचल मचा दी है. यह जुटान सरकार और संगठन में प्रतिनिधित्व को लेकर असंतोष दर्शाता है. 2027 चुनाव की तैयारियों के बीच, यह आंतरिक कलह भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है, जो उसके परंपरागत वोट बैंक को प्रभावित कर सकती है.
उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर जातीय समीकरणों ने जोर पकड़ लिया है. विधानसभा के शीतकालीन सत्र के बीच लखनऊ में ब्राह्मण विधायकों की बड़ी गोलबंदी ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है. कुशीनगर से भाजपा विधायक पीएन पाठक (पंचानंद पाठक) के आवास पर मंगलवार की शाम को आयोजित ‘सहभोज’ में विभिन्न दलों के करीब 35-40- ब्राह्मण विधायक और एमएलसी जुटे. इनमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी माने जाने वाले विधायक शलभमणि त्रिपाठी, रत्नाकर मिश्रा और एमएलसी उमेश द्विवेदी जैसे नेता भी शामिल थे.
यह जुटान कोई साधारण मिलन नहीं माना जा रहा. सियासी विश्लेषक इसे पिछले मानसून सत्र में हुए क्षत्रिय (ठाकुर) विधायकों के ‘कुटुंब परिवार’ मिलन के जवाब के रूप में देख रहे हैं. उस समय भी लखनऊ में करीब 40 ठाकुर विधायकों ने एकजुट होकर शक्ति प्रदर्शन किया था. अब ब्राह्मणों की यह गोलबंदी साफ संकेत दे रही है कि भाजपा के अंदर ऊपरी जातियों में असंतोष की लहर दौड़ रही है. हालांकि बैठक को आयोजकों ने ‘सहभोज’ और सामाजिक मिलन बताया. विधायकों का दावा है कि चर्चा समाज कल्याण, सांस्कृतिक मुद्दों और पश्चिमी प्रभाव से ब्राह्मण समाज की रक्षा पर हुई.
वायरल तस्वीरें बता रहीं अलग कहानी
खुले मैदान में पांच घंटे तक चली इस मीटिंग की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद सवाल उठने लगे हैं. सूत्रों के मुताबिक, जातीय राजनीति में ब्राह्मणों की घटती भूमिका, पार्टी में प्रतिनिधित्व और सरकार में सुनवाई न होने की शिकायतें प्रमुख रही. उत्तर प्रदेश विधानसभा में कुल 52 ब्राह्मण विधायक हैं, जिनमें से 46 भाजपा के हैं. यह समुदाय राज्य की आबादी का करीब 12-14% है और 15 जिलों में 100 से अधिक सीटों पर निर्णायक प्रभाव रखता है. भाजपा का परंपरागत वोट बैंक माने जाने वाले ब्राह्मणों में नाराजगी की वजह हालिया नियुक्तियां बताई जा रही हैं. कुर्मी समाज से आने वाले पंकज चौधरी को यूपी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बाद ब्राह्मण नेताओं को लग रहा है कि उनका दबदबा कम हो रहा है.
अन्य समाजों की भी हो चुकी है गोलबंदी
यह गोलबंदी अकेली नहीं है. इससे पहले ठाकुर, कुर्मी और लोध समाज के विधायकों ने भी अलग-अलग बैठकों में अपनी ताकत दिखाई है. उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इन बैठकों को सामान्य बताया और कहा, “विधायक आपस में मिलते रहते हैं, इसे जातीय चश्मे से नहीं देखना चाहिए.” लेकिन विपक्ष इसे भाजपा की आंतरिक कलह का प्रमाण बता रहा है. समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव ने तो ब्राह्मण विधायकों को सपा में आने का खुला आमंत्रण तक दे दिया. राजनीतिक पंडित मानते हैं कि यह सब 2027 विधानसभा चुनाव की जमीन तैयार करने की कवायद है.
आखिर मायने क्या?
भाजपा में योगी आदित्यनाथ के ठाकुर नेतृत्व को लेकर ब्राह्मणों में लंबे समय से असंतोष की चर्चा है. पार्टी हाईकमान के लिए यह नई चुनौती है, क्योंकि ऊपरी जातियां (ब्राह्मण-ठाकुर) उसका कोर वोट बैंक हैं. अगर यह असंतोष बढ़ा तो 2024 लोकसभा चुनाव जैसी स्थिति दोहरा सकती है, जहां जातीय समीकरणों ने भाजपा को नुकसान पहुंचाया. विपक्षी दल इसे मौका मान रहे हैं. सपा और अन्य पार्टियां ब्राह्मण वोटों को साधने में जुटी हैं. इधर, भाजपा नेतृत्व चुप है, लेकिन अंदरखाने मंथन चल रहा होगा कि जातीय संतुलन कैसे बनाए रखा जाए. यूपी की सियासत में जाति कभी पीछे नहीं रहती. पहले क्षत्रिय, अब ब्राह्मण—यह गोलबंदी बताती है कि हिंदुत्व की छतरी के नीचे भी जातीय दावेदारी अपनी जगह मांग रही है.
