CAWNPOOR से लेकर कानपुर तक; यूपी के इस शहर का 21 बार बदला नाम, जानें कब-कब
कानपुर को कभी "मैनचेस्टर ऑफ़ ईस्ट" कहा जाता था. इस शहर का नाम अब तक कुल 21 बार बदला गया है. 1770 से 1948 तक के नाम का इतिहास अशोक लाइब्रेरी में मिलता है. लेख में इस शहर के नाम बदलने के पीछे के कारणों और इसके ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला गया है.

कानपुर को एक समय मैनचेस्टर ऑफ ईस्ट कहा जाता था. उस समय यह शहर देश के औद्योगिक शहरों में से एक था और यहां के बने हुए उत्पाद पूरी दुनिया में भेजे जाते थे. समय के साथ मैनचेस्टर ऑफ ईस्ट का तमगा तो चला गया लेकिन इस शहर का इतिहास काफी रोचक है. यहां की कहावतें और रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल होने वाले शब्द भी काफी चर्चित है. आज हम आपको बताने वाले है इस शहर के नाम का इतिहास.
कानपुर की बात करें तो इस शहर का नाम अभी तक 21 बार बदला जा चुका है. हर बार कमोबेश नाम तो यही था लेकिन इसकी अंग्रेजी की स्पेलिंग बदलता रहा. इसके नाम का इतिहास खोजने के लिए हम पहुंचे कानपुर की सबसे पुरानी अशोक लाइब्रेरी. वहां पर तिलक मेमोरियल सोसायटी के सचिव प्रदीप द्विवेदी ने हमको वह वर्तनी दिखाई जिसमें कानपुर के नाम और वर्ष अंकित किए गए है. इसको उनके पिता दिवंगत के द्विवेदी ने लगाया था. वह कानपुर पुरातत्व संग्रहालय ट्रस्ट के संस्थापक सह सचिव थे.
1795 में शहर को CAWNPOR कहा जाने लगा
साल 1770 में कानपुर को CAWNPOOR कहा जाता था. इसके 6 साल बाद इसको बदल दिया गया और 1776 में यह CAUNPOUR हो गया. यह नाम काफी लंबे समय 1785 तक चला और फिर हो गया CAUNPORE. इस नाम को 1788 में बदला गया और फिर इसको CAWNPOUR और CAWNPORE कहा जाने लगा. पुराने और नए नाम में सिर्फ U की जगह W का फर्क हुआ. इसके बाद साल 1790 में KAWNPORE और 1795 में शहर को CAWNPOR कहा जाने लगा.
1798 में शहर को एक नया नाम फिर से मिला KAUNPOOR. इस बार फिर से एक बार लेटर K का इस्तेमाल हुआ और लगातार कई सालों तक KHANPORE, KHANPURA, KHANPORE होता चला गया. इसके बाद एक बाद फिर C का इस्तेमाल करके साल 1815 में CAUNPOOR किया गया. इसके बाद KHANPOOR 1825 में, KANHPUR 1857 में और CAWNPOUR इसी वर्ष में किया गया.
साल 1948 में शहर का नाम KANPUR किया गया
साल 1879 में CAPWNPORE और फिर लगातार CAWNPOR, COWNPOUR, CAWNPORE का इस्तेमाल करके बदलाव होता रहा. आखिरकार साल 1948 में इस शहर का नाम KANPUR किया गया जो आज तक चल रहा है. प्रदीप द्विवेदी बताते है कि इतनी बार नाम की स्पेलिंग और उसको वजह से उच्चारण में बदलाव का सबसे बड़ा कारण यह था कि उस समय इंग्लैंड के अलग-अलग हिस्से से अंग्रेज कमांडर यहां आया करते थे. वो अपने हिसाब से इस शहर की स्पेलिंग लिखते और उच्चारण करते.
प्रदीप द्विवेदी का यह भी मानना है कि अगर इतिहास को देखा जाए तो जब-जब कानपुर का अंग्रेजी नाम C से हुआ है. तब-तब इस शहर ने तरक्की की है. वहीं, जब इसका नाम K से हुआ है तब शहर विकास में पिछड़ा है. इसके पीछे उनका तर्क यह है कि साल 1860 से यहां पर मिल लगने की शुरुआत हुई जो 1876 तक लगी. वहीं, साल 1948 में इसका नाम K से किया गया और 1960 से यहां मिलें बंद होनी शुरू हो गई.
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