हिन्दी या अंग्रेजी… क्या हो फैसले की भाषा? इलाहाबाद HC ने दिए लाउड एंड क्लीयर ऑर्डर
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अदालती फैसलों में मिश्रित भाषा के उपयोग को अनुचित बताया है. कोर्ट ने आदेश दिया है कि निचली अदालतों के फैसले केवल हिन्दी या अंग्रेजी में लिखे जाएं, भाषा का मिश्रण न हो. इससे वादियों को फैसले समझने में आसानी होगी और न्याय का उद्देश्य पूरा होगा. इस आदेश को सभी जिला अदालतों तक पहुंचाने के निर्देश भी दिए गए हैं, ताकि इसका प्रभावी ढंग से पालन हो सके.
इलाहाबाद हाईकोर्ट में दो न्यायाधीशों की बेंच ने कोर्ट में फैसले की भाषा को लेकर लाउड एवं क्लीयर ऑर्डर दिए हैं. हाईकोर्ट ने आगरा की अदालत के एक फैसले के संबंध में सुनवाई करते हुए कहा कि चाहें हिन्दी हो या अंग्रेजी, ट्रॉयल कोर्ट किसी एक ही भाषा में अपना फैसला लिखे. इसी के साथ कोर्ट ने साफ तौर कहा कि फैसले में भाषा की मिलावट ठीक नहीं. कोर्ट ने इस ऑर्डर को सभी जिला अदालतों तक पहुंचाने और इसपर अमल करने के भी निर्देश दिए हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि फैसलों में मिश्रित भाषा का इस्तेमाल उचित नहीं है. न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा और न्यायमूर्ति अजय कुमार द्वितीय की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के फैसलों से वादी और परिवादी कंफ्यूज हो सकते हैं. कहा कि हिन्दी भाषी राज्यों में फैसले हिन्दी में ही लिखे जाते हैं. इसका उद्देश्य है कि वादी-प्रतिवादी इसे आसानी से समझ जाएं और इन फैसलों के पीछे के मर्म से अवगत हों. अब यदि फैसले में भाषा का मिश्रण हो होगा तो यह उद्देश्य पूरा ही नहीं होगा.
इस फैसले पर आई हाईकोर्ट की टिप्पणी
हाईकोर्ट में दहेज हत्या के एक मामले की सुनवाई के दौरान यह फैसला आया है. यह मामला आगरा की जिला अदालत के एक फैसले की अपील के रूप में था. इसमें आगरा की जिला अदालत ने अपने फैसले के पैरा संख्या 199 में 63 अंग्रेजी, 125 हिंदी और 11 में दोनों भाषाओं के मिले-जुले शब्द इस्तेमाल किए थे. इसी प्रकार कई अन्य पैरा में भी इसी प्रकार मिश्रित भाषा का इस्तेमाल किया गया था. हाईकोर्ट ने आगरा की सत्र अदालत के इस 54 पन्नों के फैसले को अवांछनीय परंपरा परंपरा का उदाहरण बताया. बेंच ने अपने आदेश की कॉपी चीफ जस्टिस को इस आशय से भेजने को कहा है, जहां से प्रदेश के सभी न्यायिक अधिकारियों को उपलब्ध कराया जाय.
क्या है मामला
आगरा के बरहन थाना क्षेत्र में हुए एक दहेज हत्या के मामले में ट्रायल कोर्ट ने 2021 में आरोपी पति को बरी कर दिया था. इस फैसले के खिलाफ लड़की के पिता ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी. हालांकि हाईकोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए जिला अदालत के फैसले को सही ठहराया है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह ठीक है कि सात साल के अंदर विवाहिता की हत्या हुई है. यह भी ठीक है कि जहर खाने से हत्या हुई है, लेकिन इसका कत्तई मतलब नहीं कि यह घटना उसके पति ने अंजाम दिया है. बल्कि महिला की हालत बिगड़ने पर उसे अस्पताल ले जाना, सारा खर्च उठाना और अंतिम संस्कार करना पति के सद्भावपूर्ण आचरण को दर्शाता है.