कानपुर में 142 सरकारी स्कूलों का होगा मर्जर, क्या होगा फायदा?

कानपुर के प्राइमरी स्कूलों को मर्ज करने की प्रक्रिया तेज कर दी गई है. छात्र-शिक्षक अनुपात को सुधारने के लिहाज से ये कदम अहम है. अगले हफ्ते स्कूलों को मर्ज करने का आदेश जारी किया जा सकता है. हालांकि, शिक्षक संगठनों ने इस कदम का विरोध किया है और असुविधा होने की बात कही है.

सांकेतिक तस्वीर

कानपुर के प्राइमरी स्कूलों के विलय की प्रक्रिया अब अंतिम स्टेज पर पहुंच चुकी है. कुल 195 स्कूलों में से 142 के विलय यानी मर्ज करने का प्रस्ताव तैयार हो चुका है. बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) स्तर से अगले हफ्ते सहमति मिलने के बाद इसे मर्ज करने के आदेश जारी किए जाएंगे. इसके बाद खंड शिक्षा अधिकारी अपने-अपने ब्लॉक में स्कूलों के विलय की प्रक्रिया को लागू करेंगे. हालांकि, शिक्षक संगठनों ने इस कदम का विरोध करने की चेतावनी दी है. सहमति मिलते ही सभी स्कूलों का विलय हो जाएगा.

स्कूल शिक्षा महानिदेशक ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जिलों में स्कूलों के विलय को लेकर कितना काम किया गया इसकी समीक्षा की गई. इस दौरान एक से 20 छात्रों वाले स्कूलों को चिह्नित करने का काम पूरा हुआ है. बेसिक शिक्षा विभाग ने छात्र-शिक्षक अनुपात को सुधारने के लिए यह पहल शुरू की है. बीएसए सुरजीत कुमार सिंह ने बताया कि खंड शिक्षा अधिकारियों से 1-20 छात्रों और शिक्षकों की संख्या की सूची तैयार कराई गई है. जिले में 195 स्कूल ऐसे चिह्नित किए गए हैं, जहां छात्रों की संख्या बहुत कम है. पहले स्टेज में 142 स्कूलों का विलय अगले सप्ताह तक पूरा कर लिया जाएगा.

क्यों किया जा रहा है स्कूलों को मर्ज?

कानपुर नगर के परिषदीय स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात काफी असंतुलित है. कई स्कूलों में शिक्षकों की संख्या जरूरत से ज्यादा है. जैसे कि कुछ स्कूलों में 15 बच्चों को पढ़ाने के लिए तीन शिक्षक और एक शिक्षामित्र तैनात हैं. नियमों के मुताबिक, प्राथमिक स्कूलों में 30 बच्चों पर एक शिक्षक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में 35 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए. इस असंतुलन को ठीक करने के लिए विभाग स्कूलों को मर्ज करने पर जोर दे रहा है. विलय पर जोर दे रहा है.

विलय यानी मर्ज होने से जहां स्कूल के संसाधनों का सही तरीके से इस्तेमाल किया जा सकेगा वहीं शिक्षा की गुणवत्ता में भी सुधार और बदलाव की उम्मीद की जा सकती है. हालांकि, शिक्षक संगठनों की मानें तो इससे शिक्षकों और छात्रों को असुविधा की समस्या भी देखने को मिल सकती है. विभाग का लक्ष्य है कि विलय के बाद स्कूलों में संसाधनों को सही तरीके से बांटा जा सके और शिक्षा व्यवस्था को सही और बेहतर तरीके से चलाया जा सके.