कानपुर का सिद्धिविनायक मंदिर, जिसे अंग्रेजों से छिपकर क्रांतिकारियों ने बनवाया था
कानपुर में स्थित सिद्धिविनायक मंदिर का इतिहास क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ा है. इसे अंग्रेजों के शासनकाल में गुप्त रूप से बनाया गया. इस मंदिर की नींव बाल गंगाधर तिलक ने रखी थी. यह मंदिर क्रांतिकारियों के साहस और दृढ़ता का भी प्रतीक माना जाता है.
आज गणेश चतुर्थी का पांचवां दिन है. पूरा देश गणपति महोत्सव मना रहा है. भजन-कीर्तन और गणपति बप्पा मोरया के जयकारे चारों ओर गूंज रहे हैं. जगह-जगह गणपति राजा के रूप में विराजमान है. लेकिन कानपुर में एक ऐसा भी मंदिर है जिसे क्रांतिकारियों ने बनवाया था.
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कानपुर के घंटाघर में एक ऐसा सिद्धिविनायक मंदिर स्थित है, जिसे अंग्रेजों के समय क्रांतिकारियों ने छिपकर बनाया था. क्यूंकि अंग्रेज इसकी परमिशन नहीं दे रहे थे. महान क्रांतिकारी बाल गंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र में इसी महोत्सव से क्रांतिकारियों को एकजुट किया था.
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इस मंदिर के अंदर पहुंचने पर आपको एक भगवान के घर जैसा महसूस होगा. मंदिर के प्रथम तल पर गणपति संगमरमर के मौजूद हैं. दूसरी मंजिल पर भगवान के साथ उनके नौ अवतार विराजमान हैं. तीसरी मंजिल पर 10 मुखी अवतार की प्रतिमा है.
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इस मंदिर के निर्माण के समय अंग्रेजों की हुकूमत थी. दूसरी तरफ क्रांतिकारी आंदोलन चरम पर थे. अंग्रेजों के मना करने के बावजूद इस मंदिर का निर्माण अंदर-अंदर होता रहा. बाल गंगाधर तिलक ने इस मंदिर की नींव साल 1918 में रखी थी.
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उसके बाद आजादी के पहले गणेश महोत्सव 1921 में महाराष्ट्र मंडल के नेतृत्व में यहीं पर मनाया गया था. मंदिर में मुख्य द्वार पर पीतल के विशालकाय भगवान गणेश की सवारी मूषक राज विराजमान है. मंदिर के बार मूषक राज भी स्थापित हैं.
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गौतम नाम के एक भक्त का मानना है कि मूषक राज के कानों में लगाई गई मन्नत जरूर पूर्ण होती है. मान्यता यह भी है कि शहर के लोग अपने घरों में शुभ काम करने के पहले भगवान गणेश को निमंत्रण पत्र इसी मंदिर में पहुंचाते हैं.
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सिद्ध विनायक मंदिर के संरक्षक खेमचंद गुप्ता बताते हैं कि उनके बाबा रामचरण और लाला ठाकुर जो उसे समय कानपुर के बड़े व्यवसाय थे, उन्होंने मंदिर निर्माण करवाया. 1923 में मंदिर निर्माण प्रतिमाओं के स्थापना के बाद पूरा हुआ था.