मासूम की पीठ पर उगी थी 14 cm लंबी पूंछ, बजरंगबली मानकर पूज रहे थे मां-बाप, डॉक्टरों ने ऐसे बचाई जान
लखीमपुर में एक डेढ़ साल के बच्चे पर पीठ पर जन्म से ही पूंछ उगी हुई थी. ऐसे में छोटी-सी हलचल या लेटने-बैठने पर उसे बहुत ही ज्यादा दर्द होती थी. अब बलरामपुर अस्पताल में उसकी जटिल सर्जरी कर डॉक्टरों ने उसे नया जीवन दिया है.
लखीमपुर से एक बेहद हैरान करने वाला मामला सामने आया है. यहां एक डेढ़ साल के बच्चे सुर्यांश की पीठ पर जन्म से 14 सेंटीमीटर लंबी पूछ जैसी रचना थी. परिवार वाले शुरू में मासूम को बजरंगबली का अवतार मान रहे थे. लेकिन फिर जब बच्चा असहनीय दर्द के चलते लगातार रोने लगा तो उन्हें पता चला कि यह एक गंभीर जन्मजात बीमारी ‘स्पाइना बिफिडा ऑक्ल्टा विद सूडो टेल’ है.
‘स्पाइना बिफिडा ऑक्ल्टा विद सूडो टेल’ बच्चे की रीढ़ की हड्डी और स्पाइनल कॉर्ड से गहराई तक जुड़ी हुई थी. छोटी-सी हलचल या लेटने-बैठने पर भी सूर्यांश को बहुत ही ज्यादा दर्द होती थी. स्थानीय डॉक्टरों ने इतनी जटिल सर्जरी करने से हाथ खड़े कर दिए. फिर परिवार बच्चे को लेकर लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल पहुंचा. उसके बाद पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. अखिलेश कुमार की टीम ने डेढ़ घंटे की जटिल सर्जरी को सफलता से अंजाम दिया.
परिवार मान रहे थे ‘हनुमान जी का रूप’
सूर्यांश के पिता सुशील कुमार एक साधारण किसान हैं. उन्होंने जन्म के समय ही बच्चे की कमर के नीचे पूंछ जैसी चीज थी. गांव वाले और रिश्तेदार कहते थे कि ये बजरंगबली का अवतार है. हम भी बच्चे की पूजा-पाठ करने लगे. लेकिन जब बच्चा रो-रोकर तड़पने लगा तो समझ आए कि ये बीमारी है, कोई चमत्कार नहीं.
लखीमपुर में डॉक्टर ने खड़े कर दिए थे हाथ
लखीमपुर में कई अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद भी कोई डॉक्टर ऑपरेशन के लिए तैयार नहीं हुआ. फिर13 नवंबर को बच्चे को बलरामपुर अस्पताल की OPD में लाया गया. जांच के बाद 14 नवंबर को सर्जरी की गई. अस्पताल निदेशक डॉ. कविता आर्या ने बताया कि यह बेहद दुर्लभ केस था. पूंछ नुमा रचना स्पाइनल कॉर्ड की झिल्लियों से जुड़ी थी. जरा-सी चूक से बच्चा जिंदगी भर के लिए विकलांग हो सकता था.
डेढ़ घंटे की सर्जरी, बच्चे की हालत स्थिर
इस सर्जरी को डॉ. अखिलेश कुमार ने किया. एनेस्थीसिया टीम में डॉ. एसए मिर्जा और डॉ. एमपी सिंह, जबकि नर्सिंग स्टाफ में निर्मला मिश्रा, अंजना सिंह, इंटर्न डॉ. मनीष वर्मा और वार्ड बॉय राज कुमार ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई. सर्जरी के बाद बच्चे को कुछ दिन ICU में रखा गया. अब उसकी हालत पूरी तरह स्थिर है. कुछ ही दिनों में डिस्चार्ज कर दिया जाएगा.
डॉक्टरों की सलाह – अंधविश्वास छोड़ें
डॉ. अखिलेश कुमार ने कहा कि ऐसे मामले दुनिया में 1 लाख में से सिर्फ 1-2 ही देखने को मिलते हैं. अगर समय पर सर्जरी न हुई होती तो यह रचना आगे चलकर ट्यूमर में बदल सकती थी या बच्चे की नसें हमेशा के लिए खराब हो सकती थीं. परिवार की हमने अच्छे से काउंसलिंग की. यह कोई अवतार नहीं, एक बीमारी है. इसका इलाज संभव है.
अन्य बच्चों की तरह खेल सकेगा सूर्यांश
सर्जरी के बाद सूर्यांश दर्द से मुक्त है. अब वह भी सामान्य बच्चों की तरह खेल सकेगा. यह सर्जरी न सिर्फ एक बच्चे की जिंदगी बचाने की मिसाल है, बल्कि यह भी साबित करती है कि विज्ञान और समय पर इलाज अंधविश्वास पर भारी पड़ता है. सही समय पर इलाज कराने से आप गंभीर बीमारियों से बच सकते हैं.