प्राइवेट हॉस्पिटल मरीजों का ATM की तरह इस्तेमाल करते हैं… इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी एक निजी अस्पताल के डॉक्टर की याचिका खारिज करते समय दी है. डॉक्टर पर सर्जरी में देरी और चिकित्सीय लापरवाही का आरोप था. कोर्ट ने कहा कि प्राइवेट हॉस्पिटल मरीजों को सिर्फ पैसों के लिए ATM की तरह इस्तेमाल करते हैं.

इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सर्जरी में देरी करने और लापरवाही को लेकर एक डॉक्टर की याचिका खारिज कर दी. डॉक्टर ने सर्जरी में देरी का बचाव करने में विफल रहा जिससे भ्रूण की मृत्यु हो गई थी. इस मामले में डॉक्टर के खिलाफ 2008 में केस दर्ज हुआ था. डॉक्टर ने केस रद्द करने की मांग को याचिका दाखिल किया था. अदालत ने याचिका खारिज करते हुए डॉक्टर को राहत देने से इनकार कर दिया.

अदालत ने कहा कि चिकित्सकों को लापरवाही से बचाना चाहिए. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि कोई भी पेशेवर चिकित्सक, जो पूरी लगन और सावधानी के साथ अपना पेशा करता है, उसकी रक्षा की जानी चाहिए. लेकिन उन डॉक्टरों की बिल्कुल भी नहीं, जो मरीजों को सिर्फ पैसे ऐंठने के लिए लुभाते हैं. निजी अस्पताल मरीजों को केवल पैसे ऐंठने के लिए ‘एटीएम’ की तरह मानने लगे हैं.

ऑपरेशन में 4-5 घंटे देरी के कारण बच्चे की मौत

याचिका पर सुनवाई कर रहे जस्टिस प्रशांत कुमार ने कहा कि डॉ. अशोक कुमार राय सर्जरी ने ऑपरेशन करने के बीच 4-5 घंटे की देरी की, जिसके कारण कथित तौर पर बच्चे की मौत हो गई. यह एक ‘क्लासिक’ मामला था, जिसमें बिना किसी कारण के ऑपरेशन में 4-5 घंटे की देरी हुई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि भ्रूण की मृत्यु लंबे समय तक प्रसव पीड़ा के कारण हुई थी.

याचिका का विरोध करते हुए डॉक्टर के वकील ने तर्क दिया कि भर्ती के समय मरीज की हालत स्थिर थी. फिर भी सर्जरी में देरी हुई, क्योंकि आवेदक के नर्सिंग होम में एनेस्थेटिस्ट नहीं था. भ्रूण की मृत्यु को ‘लंबे समय तक प्रसव’ के कारण बताने वाली पोस्टमार्टम रिपोर्ट बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत नहीं किए गए. हालांकि, जांच में पाया गय़ा कि एनेस्थेटिस्ट को देरी से बुलाया गया था.

मरीज को धोखा देने की गलत मंशा- HC

कोर्ट ने इस देरी को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा, ‘यह पूरी तरह से दुर्घटना का मामला है, जहां डॉक्टर ने मरीज को भर्ती कर लिया और मरीज के परिवार के सदस्यों से ऑपरेशन के लिए अनुमति लेने के बाद भी समय पर ऑपरेशन नहीं किया, क्योंकि उनके पास सर्जरी करने के लिए एनेस्थेटिस्ट नहीं था.’ यह तथ्य स्पष्ट रूप से डॉक्टर की मरीज को धोखा देने की गलत मंशा को दर्शाता है.

इस मामले में 29 जुलाई 2007 को एफआईआर दर्ज की गई थी. गर्भवती मरीज के परिवार ने उसी दिन सुबह लगभग 11 बजे सिजेरियन सर्जरी के लिए सहमति दी. लेकिन एनेस्थेटिस्ट के साढ़े तीन बजे बुलाया गया. सर्जरी शाम 5:30 बजे की गई, तब तक भ्रूण की मृत्यु हो चुकी थी. साथ ही डिस्चार्ज स्लिप जारी करने से भी इनकार कर दिया. वहीं, कोर्ट ने डाक्टर की याचिका खारिज कर दी है.