मजहबी दीवार पर इंसानियत भारी, देवबंद में मुस्लिम पड़ोसियों ने उठाई अर्थी; वायरल हो रही तस्वीर
उत्तर प्रदेश के देवबंद में इंसानियत की अद्भुत मिसाल देखने को मिली है. यहां मुस्लिम पड़ोसियों ने एक हिंदू युवक अजय कुमार सैनी की अर्थी उठाकर उसका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से संपन्न कराया. किडनी की बीमारी से निधन के बाद, परिवार में कोई न होने पर सभासद पुत्र गुलफाम अंसारी और उनके साथियों ने यह जिम्मेदारी संभाली. यह घटना सामाजिक सद्भाव और भाईचारे का प्रतीक बन वायरल हो रही है.
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर एक अनोखी तस्वीर सामने आई है. यहां एक मुस्लिम पड़ोसियों ने एक हिंदू युवक की ना केवल खुद अपने हाथों से अर्थी सजाई, बल्कि खुद अपने कंधों पर रख श्मशान ले गए. जहां विधि विधान से अंतिम संस्कार भी कराया. इस पूरे घटनाक्रम की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहे हैं. जिसकी लोग खूब सराहना कर रहे हैं. घटना सहारनपुर में मुस्लिम बहुल देवबंद नगर की है.
जानकारी के मुताबिक यहां कोहला बस्ती में एक इंजन मैकेनिक अजय कुमार सैनी करीब 20 वर्षों से किराए का घर लेकर रह रहे थे. दो दिन पहले किडनी की बीमारी की वजह से उनकी मौत हो गई. उनके परिवार में कोई जिम्मेदार व्यक्ति नहीं था. ऐसे में वहां मौजूद अन्य पड़ोसियों में असमंजस की स्थिति बन गई. ऐसी स्थिति में मोहल्ले के सभासद पुत्र गुलफाम अंसारी और उनके साथी आगे बढ़कर आए और इंसानियत दिखाते हुए हिन्दू रीति रिवाज से अजय सैनी का अंतिम संस्कार कराया.
पूछ-पूछकर निभाई रस्में
चूंकि सभाषद एवं उनके साथी हिन्दू रीति रिवाजों से ज्यादा वाकिफ नहीं थे, इसलिए उन्होंने हिन्दू समाज के लोगों से पूछ-पूछकर सभी रस्म पूरे किए. यह देखकर वहां मौजूद हर कोई भाव विह्वल हो गया. वहीं जब इसकी तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुई तो लोग इसे मानवता और भाईचारे की मिसाल बताकर सराहना करने लगे. मुस्लिम बहुल इलाके में रहने वाले हिंदू समाज के व्यक्ति की अंतिम यात्रा में उसके पड़ोसियों ने वह भूमिका निभाई, जो अक्सर अपनों से भी छूट जाती है.
देवीकुंड श्मशान में हुआ अंतिम संस्कार
सभाषद और उनके साथियों ने अजय सैनी की अर्थी तैयार कर खुद अपने कंधे पर रखा और सभी रस्मों का पालन करते हुए देवीकुंड स्थित श्मशान घाट ले गए, जहां पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कराया गया. इतना ही नहीं, परंपरा के अनुसार तीन दिनों तक अजय कुमार सैनी के घर रुकने वाले रिश्तेदारों और मेहमानों के लिए भोजन की व्यवस्था भी मोहल्ले के लोगों ने ही की. इस घटनाक्रम ने साबित कर दिया कि इंसानियत जिंदा होती है, तब मजहबी दीवारें खुद-ब-खुद गिर जाती हैं.
