सिंधु घाटी सभ्यता में भी मनाई जाती थी दिवाली! खुदाई में मिले ये दीये बताते हैं हजारों साल पुराना इतिहास
दिवाली का त्योहार सिंधु घाटी सभ्यता में भी मनाया जाता था. यह बात हम नहीं कह रहे, बल्कि सहारनपुर में खुदाई के दौरान मिले 4000 साल पुराने मिट्टी के दीये इस बात के साक्षी हैं. ये दीये केवल धार्मिक नहीं, बल्कि कलात्मकता और प्राचीन जीवनशैली का भी दस्तावेज हैं. इससे उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत में सहारनपुर का महत्व और बढ़ जाता है.

सनातन धर्म के बड़े त्योहारों में दिवाली का स्थान सर्वोपरि है. वैसे तो इस त्योहार की प्राचीनता का कोई सटीक उदाहरण नहीं मिलता. पौराणिक तथ्यों की मानें तो पहली बार दिवाली तब मनाई गई, जब भगवान राम लंका विजय कर अयोध्या लौटे थे. वहीं यदि ऐतिहासिक तथ्यों को देखें तो सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान भी इस पवित्र त्योहार को मनाने की परंपरा थी. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में खुदाई के दौरान मिले हजारों साल पुराने दीये भी इस बात का साक्ष्य पेश करते हैं. जब जब आपके घरों में दिवाली मनती है, पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में रखे ये दीये भी उस समय के इतिहास को रोशन करते दिख जाते हैं.
सहारनपुर की धरती आज भी अपने भीतर छिपी उस रोशनी को महसूस करती है जो हजारों साल पहले यहां जल चुकी है. यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि पुरातात्विक साक्ष्यों की सच्ची गवाही है. सहारनपुर की मिट्टी में मिले वे हजारों साल पुराने दीपक, जिन्होंने कभी सिंधु सभ्यता से लेकर गुर्जर प्रतिहार काल तक इस भूमि को आलोकित किया था. विरासत यूनिवर्सिटी हैरिटेज रिसर्च सेंटर, शोभित विश्वविद्यालय के कोऑर्डिनेटर राजीव उपाध्याय बताते हैं कि जिले के सरसावा टीले से गुर्जर प्रतिहार काल के लगभग एक हजार साल पुराने मिट्टी के दीपक खुदाई में मिले थे.
तीतरों में मिले सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमाण
राजीव उपाध्याय के मुताबिक तीतरो क्षेत्र के बरसी गांव से सिंधु सभ्यता के करीब चार हजार साल पुराने मिट्टी के दीये निकले हैं. इन दीयों का आकार और संरचना उस दौर की कलात्मकता और जीवनशैली के जीवंत दस्तावेज हैं. बरसी गांव, जिसे महाभारत कालीन श्री महादेव बरसी मंदिर के लिए जाना जाता है, इस खुदाई के बाद एक नई पहचान पा रहा है. यह पहचान ‘सभ्यता के दीपों की धरती’ के रूप में है. इस क्षेत्र में हुई यह खोज यूपी के सांस्कृतिक पुरातत्व मानचित्र पर सहारनपुर को नई पहचान दे रही है.
शामली में भी मिले दीये
उन्होंने बताया कि शामली के जलालाबाद क्षेत्र में कुषाणकालीन सभ्यता के दीपक मिले हैं. जबकि सहारनपुर के गंगोह और सरसावा में उत्तर वैदिक कालीन बस्तियों के अवशेषों के साथ मिट्टी के बर्तन, देवी-देवताओं की नक्काशीदार मूर्तियां और 1500 साल पुरानी मां दुर्गा की प्रतिमा भी पाई गई हैं. ये सब प्रमाण आज भी पुरातत्व विभाग के अभिलेखों में दर्ज हैं और धीरे-धीरे देश की प्राचीन विरासत की पंक्तियों में सहारनपुर को जोड़ते जा रहे हैं. इतिहासकारों का मानना है कि सहारनपुर कभी सरस्वती नदी के प्रवाह क्षेत्र का हिस्सा था. नदी के विलुप्त होने के बाद आर्यों ने यहीं अपने साधना स्थल बनाए और यह भूमि संस्कृति, अध्यात्म और प्रकाश की स्थायी प्रतीक बन गई.