लखनऊ की सियासत और पार्कों का कनेक्शन; बसपा से लेकर बीजेपी तक… सबने अपने शासनकाल में बनवाए पार्क

लखनऊ की सियासत से पार्कों का कनेक्शन बेहद पुराना है. क्या मायावती, मुलायम और अखिलेश सबने अपने वोट बैंक को साधने के लिए पार्कों का सहारा लिया. अब बीजेपी भी उसी राह पर है. लखनऊ में राष्ट्र प्रेरणा स्थल बनकर तैयार है. पीएम मोदी 25 दिसंबर को इसका लोकार्पण करेंगे. यह पार्क भाजपा के तीन बड़े वैचारिक स्तंभों को एक साथ समर्पित है.

राष्ट्र प्रेरणा स्थल Image Credit:

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को ‘शहर-ए-नवाब’ कहा जाता था, लेकिन पिछले तीन दशकों में इसे ‘शहर-ए-पार्क’ बनाने की होड़ लगी हुई है. मुलायम, मायावती, अखिलेश से लेकर योगी तक हर किसी ने सत्ता में आते ही सबसे पहले अपने विचारधारा को पत्थरों में कैद कराने की कोशिश की. नतीजा यह हुआ कि शहर में एक से एक भव्य, विशाल और महंगे पार्कों की भरमार हो गई है. ये पार्क सिर्फ हरा-भरा स्थान नहीं, बल्कि सत्ता की स्मृति और वोट बैंक की राजनीति के जीते-जागते स्मारक हैं.

एक समय सपा-बसपा की सरकारों ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर, कांशीराम, राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं की भव्य प्रतिमाओं वाले पार्क बनवाकर अपनी विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश की थी. वहीं अब भाजपा सरकार भी एक कदम आगे बढ़ते हुए लखनऊ में बनकर तैयार राष्ट्रीय नायकों को समर्पित ‘राष्ट्र प्रेरणा स्थल’ का लोकार्पण करने जा रही है. यह परियोजना भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नया प्रतीक बनने जा रही है.

25 दिसंबर को पीएम मोदी राष्ट्र प्रेरणा स्थल का करेंगे लोकार्पण

25 दिसंबर 2025, यानी पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं लखनऊ पहुंचकर भव्य राष्ट्र प्रेरणा स्थल का लोकार्पण करेंगे. इस मौके पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी मौजूद रहेंगे.

कौन आया, किसका पार्क बनवाया?

मुलायम सिंह यादव साल 2003 से लेकर 2007 तक यूपी के मुख्यमंत्री रहे. सबसे पहले उन्होंने 72 एकड़ में राममनोहर लोहिया पार्क बनवाया. इसमें विशाल लॉन, झरने और राममनोहर लोहिया की भव्य प्रतिमा है. फिर मायावती साल 2007 से 2012 तक प्रदेश की सीएम रहीं. अपने कार्यकाल में बसपा सुप्रीमो मायावती ने तो जैसे पार्क और स्मारक निर्माण को ही अपना मिशन बना लिया. इस दौरान लखनऊ में एक साथ दर्जनों स्मारक बने. इसमें भीमराव अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, बुद्ध विहार शांति उपवन, प्रेरणा पार्क रहे. कुल मिलाकर मायावती के कार्यकाल में सिर्फ लखनऊ में ही करीब 300 एकड़ से ज्यादा जमीन पर दलित-बहुजन महापुरुषों के स्मारक खड़े हो गए.

साल 2012 से 2017 तक यूपी में फिर समाजवादी पार्टी की सरकार आई. अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने. इस दौरान उन्होंने जयप्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (JPIC) को आगे बढ़ाया. इसका क्षेत्रफल तकरीबन 108 एकड़ पाया गया. इसको लेकर एशिया का सबसे बड़ा कान्वेंस सेंटर बताया गया था. इस सेंटर में जेपी की प्रतिमा, क्रिकेट स्टेडियम, म्यूजियम और विशाल ग्रीन एरिया शामिल है.

जनेश्वर मिश्र पार्क 2012 से 2017 में

अखिलेश यादव ने अपने कार्यकाल में जनेश्वर पार्क का भी निर्माण कराया. इसका क्षेत्रफल 1.52 वर्ग किलोमीटर है. पार्क के भीतर दो जलाशय (14 एकड़ और 18 एकड़) हैं, जो प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करते हैं. साथ ही लखनऊ जैसे व्यस्त शहर में मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करते हैं. इसमें फूलों के बगीचों के अलावा, पार्क में पैडल और गोंडोला नाव की सवारी के साथ-साथ बच्चों के खेलने का क्षेत्र भी है. पार्क में जॉगिंग, साइकिलिंग और पैदल चलने के लिए कई रास्ते बने हुए हैं. इन रास्तों की कुल लंबाई 5.28 किलोमीटर, 8.85 किलोमीटर और 10.5 किलोमीटर है. पार्क में सार्वजनिक शौचालय, भोजनालय, फूड प्लाजा, रेस्तरां आदि जैसी कई सार्वजनिक सुविधाएं भी हैं.

इस पार्क के मुख्य स्थान पर स्वर्गीय जनेश्वर मिश्रा की 25 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है. इस प्रतिमा की खास बात यह है कि यह पार्क के सभी कोनों से दिखाई देती है. इस प्रतिमा को प्रसिद्ध लेखक, ललित कलाकार और मूर्तिकार एडवर्ड ब्रेथिट ने डिजाइन और तराशा था. एडवर्ड ब्रेथिट का जन्म अमेरिका के केंटकी में हुआ था, जनेश्वर मिश्रा पार्क को 5 अगस्त 2014 को आम जनता के लिए खोला गया था.

योगी आदित्यनाथ का दौर (2017 से अब तक)

इस मामले में भाजपा सरकार भी पीछे हटने को तैयार नहीं है. यूपी की BJP वाली सरकार ने सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृति में अटल प्रेरणा पार्क लगभग 22 एकड़ में बनवाया. इसमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमाएं भी लगाई गई हैं. यह पार्क भाजपा के तीन बड़े वैचारिक स्तंभों को एक साथ समर्पित है.

पार्कों के जरिए क्या मैसेजिंग देने की कोशिश?

ये सारे पार्क भले ही महापुरुषों की स्मृति में बने हों, लेकिन इनका समय और पैसा दोनों ही विवादों में रहे. मायावती के स्मारकों पर हजारों करोड़ खर्च होने के आरोप लगे. योगी सरकार ने भले ही अपेक्षाकृत छोटा पार्क बनवाया, लेकिन उसमें भी तीन-तीन भाजपा आइकॉन्स को जगह देकर मैसेज साफ कर दिया गया है कि यहां सरकार बदलती है तो सिर्फ पार्क में लगी मूर्तियां बदलती हैं, बाकी सब वही रहता है. पत्थर, हाथी, साइकिल और कमल!”तो अगली बार जब आप गोमती नगर में घूमने जाएं तो याद रखिएगा. आप किसी पार्क में नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की 30 साल पुरानी सियासी जंग के मैदान में टहल रहे हैं.