इलाहाबाद HC के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ लाया जाएगा महाभियोग प्रस्ताव, इन सुविधाओं से धो सकते हैं हाथ!
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित आवास में आग लगने की घटना के बाद वहां से जले हुए नोटों की गड्डियां मिली थी. जिसके बाद जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था. अब संसद के मानसून सत्र में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी शुरू हो गई है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा अपने घर से जले हुए नोटों के बंडल मिलने के बाद से विवादों में घिरे हैं. उनके दिल्ली स्थित आवास में आग लगने के बाद जले हुए नोट बरामद हुए थे. इसके बाद तीन जजों की जांच कमेटी बैठी और उन्हें अपना पद छोड़ने को कहा. लेकिन जस्टिस वर्मा ने इस्तीफ़ा देने से इनकार कर दिया. तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को उन्हें हटाने के लिए पत्र भी लिखा था.
जस्टिस वर्मा आग की घटना के वक्त दिल्ली हाईकोर्ट में नियुक्त थे. बाद में उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट वापस भेज दिया गया. लेकिन विवादों के चलते उन्हें अभी तक कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है. इस बीच केंद्र सरकार ने जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव लाने जा रही है. संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने कहा है कि ये प्रस्ताव 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में लाया जाएगा.
प्रस्ताव पर सांसदों के हस्ताक्षर लेना शुरू
सूत्रों के मुताबिक, जस्टिस वर्मा को हटाने के प्रस्ताव पर सरकार ने सांसदों के हस्ताक्षर एकत्र करना शुरू कर दिया है. किरेन रीजीजू का कहना है कि सरकार न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के खिलाफ एकता का संदेश देने के लिए विपक्षी दलों से बात करेगी, ताकि उन्हें अपने साथ लाया जा सके. लोकसभा में प्रस्ताव के लिए कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर जबकि राज्यसभा में 50 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होती है.
संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होकर 12 अगस्त तक चलेगा. इस दौरान सरकार महाभियोग प्रस्ताव सदन में पेश करेगी. हालांकि, नियम के अनुसार, इसके लिए न्यायाधीश (जांच) अधिनियम के तहत एक समिति का गठन किया जाना होता है. जिसकी रिपोर्ट सदन में पेश की जाएगी और महाभियोग पर चर्चा शुरू होगी. लेकिन सीजेआई खन्ना द्वारा गठित एक आंतरिक समिति अपनी रिपोर्ट पहले ही सौंप चुकी है.
जज को दो ही तरह से हटाया जा सकता है
संसद द्वारा महाभियोग प्रस्ताव लाकर हटाया जाना किसी न्यायाधीश के पद छोड़ने का दूसरा तरीका होता है. जबकि पहले तरीके में जज खुद यह घोषणा कर सकते हैं कि वे पद छोड़ रहे हैं. इसमें उनके मौखिक बयान को ही उनका इस्तीफ़ा माना जाता है. संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार, किसी जज के इस्तीफ़े के लिए किसी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है. राष्ट्रपति के नाम एक साधारण त्यागपत्र ही काफी है.
संसद द्वारा हटाने से नहीं मिलेगी ये सुविधाएं
संसद में महाभियोग प्रस्ताव द्वारा किसी हाईकोर्ट के जज को हटाया जाता है तो उन्हें कई सुविधाओं से वंचित कर दिया जाता है. अगर जस्टिस वर्मा अपना इस्तिफा नहीं देते हैं और संसद से उन्हें हटाया जाता है. तो उन्हें रिटार्यड हाईकोर्ट के जज को मिलने वाली पेंशन और अन्य सुविधाएं नहीं मिलेंगी. ऐसे में संसद द्वारा महाभियोग से बचने के लिए जस्टिस वर्मा के सामने इस्तीफ़ा ही एकमात्र विकल्प बचा है. नए संसद भवन में यह पहली महाभियोग कार्यवाही होगी.