अगस्त क्रांति: जब बलिया में चली ‘आजादी एक्सप्रेस’, चित्तू पांडेय बने कलेक्टर; गौरव से भर देगी बलिया क्रांति की कहानी

महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के विरोध में 9 अगस्त 1942 को बलिया में व्यापक विद्रोह हुआ. आक्रोशित जनता ने सरकारी खजाना लूटा, कलेक्ट्रेट पर हमला किया और रेलवे स्टेशन को आग के हवाले कर दिया. उस समय बलिया के बागियों ने एक ट्रेन पर कब्ज़ा कर लिया और उसे आज़ादी एक्सप्रेस के नाम से लखनऊ तक चलाया. यह ट्रेन अंग्रेजों के खिलाफ जनसमर्थन का प्रतीक बन गई.

बलिया से चली थी आजादी एक्सप्रेस

आज नौ अगस्त है. यह तो वह तारीख है जब 1942 में बरतानिया हुकूमत के खिलाफ बलिया बागी हो गया. आक्रोश और बगावत से भरे बलिया वालों ने सरकारी खजाना लूट लिया. हाथ में लाठी डंडा लेकर कलक्ट्रेट पर चढ़ाई कर दी. यह आक्रोश एक दिन पहले मुंबई में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल की गिरफ्तारी पर पनपा था. रही सही कसर इस आक्रोश को दमन करने की कोशिश ने पूरी कर दी. देखते ही देखते बागियों ने बलिया स्टेशन फूंक दिया.

संयोग से उसी समय गाजीपुर की ओर से एक ट्रेन आ गई. ऐसे में बागियों ने उस ट्रेन पर कब्जा कर लिया. इसके बाद बरतानिया हुकूमत को चैलेंज करते हुए इस ट्रेन को आजादी एक्सप्रेस के नाम से लखनऊ तक चला दी. छुक-छुक की आवाज के साथ जब यह ट्रेन चली, तो इस ट्रेन में मुश्किल से 25-30 लोग ही सवार थे. लेकिन जैसे जैसे ट्रेन आगे बढ़ती गई, लोग चढ़ते गए और बलिया की सीमा पार करने से पहले ही ट्रेन के इंजन और बोगियों के ऊपर तक लोग खचाखच भर गए.

इतिहास में दर्ज हो गई घटना

सबके हाथ में लहराता तिरंगा जनता में अलग ही जोश भर रहा था. सैकड़ों स्थानों पर लोगों ने इस ट्रेन को रोककर बागियों का स्वागत करते हुए उत्साहवर्धन किया. यह पूरी घटना आजादी के इतिहास में आज भी स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. बलिया के इतिहास में दर्ज रिकॉर्ड के मुताबिक सभी बागी कलेक्ट्रेट पर धावा बोलने के लिए आए थे. इनमें छात्रों की संख्या ज्यादा थी. उस समय अंग्रेजी फौज ने कलेक्ट्रेट का रास्ता बंद किया तो लोग रेलवे स्टेशन पहुंच गए. 10 बजे रेलवे स्टेशन पहुंची इस भीड़ ने दो घंटे तक काफी हंगामा किया और करीब 12 बजे स्टेशन में आग लगा दी.

लखनऊ पहुंची आजादी एक्सप्रेस

ठीक उसी समय आई ट्रेन पर लोग सवार हो गए. अचानक युवाओं के मन में आया कि अब वह लखनऊ चलेंगे. फिर क्या था? उसी ट्रेन को आजादी एक्सप्रेस नाम दिया और ट्रेन के पायलट पर दबाव बनाकर लखनऊ के लिए चलवा दिया. यह ट्रेन गाजीपुर, फैजाबाद और बाराबंकी के रास्ते 17 अगस्त की सुबह लखनऊ पहुंची थी. उधर, ट्रेन लखनऊ पहुंची और इधर, बलिया में लोगों ने जिले की सभी तहसीलों पर कब्जा कर लिया. सुरक्षा में लगे पुलिस वाले, अग्रेज अफसर अपनी जान बचाने के लिए इधर से उधर भागने लगे.

तोड़ी जेल, फहराया तिरंगा

उस समय अग्रेज अफसर भारतीय सिपाहियों को आगे कर भीड़ के ऊपर घोड़ दौड़ा रहे थे, कोड़े फटकार रहे थे. लेकिन बलिया वालों के हौंसले कम नहीं हुए. 19 अगस्त 1942 को देखते ही देखते बागियों ने जेल के दरवाजे तोड़ दिए और अंदर से बागियों को मुक्त कराकर कलक्ट्रेट पर धावा बोल दिया. इसी खबर कलेक्टर जगदीश्वर निगम को मिली तो डर के मारे वह कुर्सी के नीचे छिप गए. इतने में पहुंचे क्रांतिकारी चित्तू पांडेय ने उनकी कुर्सी कब्जा करते हुए कलक्ट्रेट पर लगे चैक झंडे को उखाड़ कर उसकी जगह तिरंगा लहरा दिया. इस प्रकार देश की आजादी से पांच साल पहले बलिया आजाद हो गया.