Shardiya Navratri 2025: UP का वो स्थान, जहां पहली बार पड़े मां भगवती के कदम; इसी कथा से शुरू होती है दुर्गा सप्तशती
दुर्गा सप्तशती तो आप पढ़ते ही होंगे. मां भवानी को बेहद प्रिय इस ग्रंथ के पहले अध्याय में जिस प्रसंग का विवरण है, वह उत्तर प्रदेश के बलिया में घटित हुआ था. यह वही स्थान है, जहां मां दुर्गा ने पहली बार अपने भक्तों के दुख हरण के लिए धरती पर अपने कदम रखे थे. इस कथा में सदाबहार सुरहा ताल और वसंतपुर की कहानी है. ब्रह्माइन मंदिर समेत अन्य चार मंदिर भी इस पौराणिक कथा के साक्षी हैं.

इस साल शारदीय नवरात्रि सोमवार से शुरू हो रही है. देश भर के देवी मंदिरों में मां भगवती के स्वागत और पूजन की तैयारी जोर शोर से शुरू हो गई है. कश्मीर में श्रीमाता वैष्णो देवी से लेकर मैहर की शारदा भवानी तक देवी के दर्शन पूजन के लिए विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं. तमाम मंदिरों ही नहीं, घरों में भी सोमवार की सुबह कलश स्थापना के साथ दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू हो जाएगा. इस प्रसंग में दुर्गा सप्तशती के ही पहले अध्याय वर्णित कथा की बात करेंगे, जिसमें मां भगवती अपने भक्तों का दुख हरने के लिए पहली बार धरती पर आईं थी.
यह प्रसंग दुर्गा सप्तशती के अलावा मार्कंडेय पुराण, वाराह पुराण और देवी भागवत महापुराण में भी मिलता है. इन महान ग्रंथों में कथा आती है कि मां भगवती ने पहली बार उत्तर प्रदेश में बलिया जिले से सटे सुरहा ताल के किनारे धरती पर आई थीं. यह स्थान आज भी बलिया जिला मुख्यालय से करीब पांच किमी दूर गोरखपुर रोड पर हनुमानगंज के ब्रह्मइन गांव में है. कथा के मुताबिक वह दौर आज से लाखों साल पहले सतयुग का था.

यह है कथा
उस समय एक राजा सूरत हुआ करते थे. उन्हें यवन राजाओं ने पराजित कर दिया. बुरी तरह से घायल अवस्था में उनके सैनिक उन्हें बचाकर जंगल में आ गए थे. इस दौरान राजा सूरत को जोर की प्यास लगी तो सैनिकों ने उस जंगल में एक छोटे से गड्ढे से पानी लाकर पिला दिया. उस पानी को पीने भर से ही राजा के सारे घाव भर गए. यह देख राजा सूरत अचंभित हुए और सैनिकों के साथ उस स्थान पर पहुंचे, जहां से सैनिकों ने पानी लिया था.

दूर हो गया राजा का शारीरिक कष्ट
वहां जाने पर राजा ने उस गड्ढे में छलांग लगा दी और जब वह बाहर निकले तो उनका पूरा शरीर सुंदर हो गया. उस समय राजा के मन में विचार आया कि यह निश्चित रूप से कोई पवित्र स्थान है. उन्होंने सैनिकों का साथ छोड़ा और उस स्थान पर अकेले विचरण करने लगे. कुछ दूर चलने पर उन्होंने मेघा ऋषि का आश्रम दिखाई दिया. जहां सर्वत्र बसंत की छंटा बिखरी हुई थी. यहां तक कि हिंसक शेर, बाघ, भालू भी अहिंसक जीव के रूप में विचरण करते नजर आए. यह देखकर राजा को आश्चर्य हुआ और वह आश्रम में पहुंचकर ऋषि से इस चमत्कार के बारे में पूछा और वहीं रहने लगे. कुछ दिनों बाद एक संदीप नामक बैश्य भी वहां पहुंचा. पता चला कि उसके बंधु बांधवों ने उसकी सारी संपत्ति छीन कर उसे बेघर कर दिया है.
मेघा ऋषि के कहने पर राजा ने किया तप
उस बैश्य की कहानी सुनकर मेघा ऋषि ने उन्हें अपराजिता देवी की उपासना करने की सलाह दी. इसके बाद राजा और बैश्य ने 1 वर्ष तक निराहार रहते हुए तप शुरू कर दिया. इसके बाद मां भगवती साक्षात प्रकट हुई और दोनों को मनोवांछित वर दिया था. फिर माता की कृपा से राजा और बैश्य ने इस स्थान पर विशाल यज्ञ का आयोजन किया. इसमें इस सृष्टि के सथी ऋषि-मुनि, गंधर्व, किन्नर, देव एवं देवियां पहुंची थीं. ऐसे में राजा ने सभी के ठहरने के लिए उत्तम प्रबंध किया और पानी की व्यवस्था के लिए एक बड़ा जलाशय बनवाया. उस जलाशय को शुद्ध जल पहुंचाने के लिए उसे गंगा से जोड़ दिया.
आज भी हैं वो स्थान
ऋषि मुनियों की सुविधा के लिए राजा जो जलाशय बनवाया था, आज भी वह उसी रूप में मौजूद है और राजा सूरत के ही नाम पर इस जलाशय को सुरहा ताल कहा जाता है. इसी प्रकार मेघा ऋषि के जिस आश्रम की बात दुर्गा सप्तशती में कही गई है, उस स्थान को वसंतपुर कहा जाता है. यहां आज भी 12 महीने पेड़ के पत्ते सूखते नहीं है. इसी प्रकार जहां पर मां भगवती ने राजा सूरत को दर्शन दिया था, वह स्थान ब्रह्माइन के रूप में मौजूद है. इस स्थान पर मां भगवती का भव्य मंदिर बना हुआ है. वहीं सुरहा ताल को गंगा से जोड़ने के लिए जिस नहर का निर्माण कराया गया था, उसका नाम कुष्टहर था, जो आज अपभ्रंस रूप में कटहर नाला कहा जाता है.

राजा सूरत ने बनवाए थे पांच मंदिर
देवी पुराण और मार्कंडेय पुराणा की कथा के मुताबिक यज्ञ से पूर्व राजा सूरत ने कुल पांच मंदिर बनवाए थे. इसमें एक तो ब्रह्माइन मंदिर तो है ही, इसके अलावा सुरहा ताल के दूसरी ओर शंकरपुर में देवी मंदिर और तीन शिव मंदिर बनखंडी नाथ, अश्वनी नाथ एवं शोक हरण नाथ मंदिर शामिल है. यह पांचों मंदिर अपने भव्य स्वरुप में आज भी मौजूद हैं. मान्यता है कि ब्रह्माइन मंदिर में भगवती के दर्शन के बाद जो भक्त बाकी चारों मंदिरों में जाकर अपनी अर्जी रखते हैं, उनकी मनौती शीघ्र पूरी हो जाती है.