दिल्ली को इंद्रप्रस्थ प्रदेश बनवाना चाहते थे सत्यपाल मलिक, 46 साल पुराने दोस्त ने सुनाए कई किस्से

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का राजनीतिक सफर मेरठ कॉलेज से शुरू हुआ. उनके 46 साल पुराने दोस्त अयूब अंसारी ने उनकी लीडरशिप और दूरदर्शिता की कई यादें साझा की हैं. उनके दोस्त ने बताया कि वे दिल्ली को कैसे इंद्रप्रस्थ प्रदेश बनवाना चाहते थे. मलिक ने अंग्रेजी हटाओ आंदोलन की अगुवाई की और किसानों के हितैषी के तौर पे उभरे.

46 साल पुराने दोस्त ने सुनाए कई किस्से

पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ नेता सत्यपाल मलिक का 5 अगस्त को निधन हो गया. उनका जन्म बागपत जिले में हुआ था, लेकिन उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत मेरठ से हुई. मेरठ कॉलेज जो उन दिनों मेरठ यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता था, वहीं से उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा और छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए. यहीं से उनके लीडर बनने की शुरुआत हुई.

46 साल पुराने दोस्त ने सुनाए कई किस्से

करीब 46 साल पुराने दोस्त और उनके कॉलेज के दिनों के भी साथी रहे अयूब अंसारी को आज भी उनके ऐसे कई किस्से याद हैं. वे बताते हैं कि सत्यपाल मलिक में शुरुआत से ही लीडरशिप क्वालिटी थी. उन्हें अच्छे कपड़ों, महंगी घड़ियों और जूतों का खासा शौक था. जब वे काफी स्टाइलिश दिखते थे. इसके अलावा उन्हें महंगे होटलों में बैठकर कॉफी पीने का भी शौक था. लेकिन इन सबके पीछे एक सुलझी हुई सोच और दूरदर्शिता भी झलकती थी.

दूरदर्शी सोच वाले नेता थे मलिक

कॉलेज के दिनों में उन्होंने अंग्रेजी हटाओ आंदोलन की अगुवाई की थी. अयूब बताते हैं कि मलिक ने अंग्रेजी में लिखे पोस्टरों को फाड़ने का अभियान शुरू किया, जो छात्रों में काफी लोकप्रिय हुआ. वे शिक्षा के भारतीयकरण के पक्ष में हमेशा खड़े रहे.

दिल्ली को इंद्रप्रस्थ प्रदेश बनवाना चाहते थे

उनकी सोच कितनी आगे की थी, इसका अंदाजा 1980 के दशक में उनके द्वारा दिए गए़ उनके एक प्रस्ताव से लगाया जा सकता है. वो है इंद्रप्रस्थ प्रदेश का प्रपोजल. उन्होंने सुझाव दिया कि दिल्ली को एक अलग राज्य घोषित करके उसके 100 किमी के दायरे में आने वाले शहरों जैसे मेरठ, नोएडा, गाजियाबाद आदि को उसमें शामिल किया जाए. अयूब का कहना है कि अगर ये मांग मान जाती, तो मेरठ की कई समस्याएं हल हो जातीं.

दोस्तों के साथ पुरानी तस्वीरें

किसानों के हितैषी रहे मलिक

मलिक को किसान हमेशा अपना हितैषी मानते रहे. एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) को लेकर जो आंदोलन आज तक हो रहे हैं, उस मुद्दे को उन्होंने करीब 40 साल पहले संसद में उठाया था. वे किसानों की आवाज को मजबूती से उठाने वाले गिने-चुने नेताओं में से थे. उनकी छवि एक ऐसे राजनेता की थी, जो सिर्फ पद के लिए नहीं, बल्कि विचार और जनहित के लिए राजनीति करते थे. अयूब कहते हैं कि उनका योगदान न केवल छात्र राजनीति बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी हमेशा याद किया जाएगा.