सावन में घोड़ों का कैट वॉक, प्रयागराज में गहरेबाजी की अनोखी परम्परा, जानिए क्यों है खास

सावन में लोक परम्पराओं के अनोखे स्वरूप भी खूब देखने को मिलते हैं. ऐसे ही एक परंपरा है प्रयागराज की गहरेबाजी. हिन्दू और मुस्लिम मिलकर इस परम्परा में सैकड़ों सालों से हिस्सा लेते आए हैं. सावन के हर सोमवार को घुड़दौड़ के शौकीन लोग अपने इक्कों के जरिए अनोखी घुड़दौड़ का आयोजन करते हैं, जिसे देखने के लिए हजारों लोग जमा होते हैं. ये परंपरा क्यों है इतनी खास. आपको बताते हैं.

प्रयागराज में गहरेबाजी की अनोखी परम्परा Image Credit:

सावन- उत्साह और उमंग का महीना है, जिसमे सावन की फुहारों के साथ एक तरफ जहां कुदरत की हरियाली हर तरफ बिखर जाती है, तो वही दूसरी तरफ लोक परम्पराओं के कई रूप इसी महीने में जीवित हो उठते हैं. सावन में लोक परम्परा का एक ऐसा ही एक रूप है- प्रयागराज की गहरेबाजी परम्परा. सावन के हर सोमवार को यहाँ की सड़कें घोड़ो की टापों से गूंज उठती हैं. शहर की इस घुड़दौड़ प्रतियोगिता “गहरेबाजी” को देखने के लिए केवल प्रयागराज के ही नहीं बल्कि कई जिलों से लोग यहां जमा होते हैं.

200 साल पुरानी है ये परंपरा

सावन आते ही प्रकृति अपनी खूबसूरती बिखेरने लगती है. कहीं रिमझिम बारिश फुहारे पड़ती हैं तो कहीं कजरी और झूले. ये सब सावन की रौनक खासतौर से बढ़ा देते हैं. ऐसे में प्रयागराज की सड़कों पर एक खास लोक परंपरा दिखाई देती है जिसे ‘गहरेबाजी’ कहा जाता है. इसका इतिहास करीब 200 साल पुराना है. कहा जाता है कि इसकी शुरुआत राजा हर्षवर्धन के समय में हुई थी. बाद में अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने इसे बढ़ावा दिया.

200 साल पुरानी है परंपरा

गहरेबाजी की शुरुआत तब मानी जाती है जब सावन में तीर्थ पुरोहित स्नान और पूजा कराकर लौटते वक्त घोड़ों की दौड़ कराते थे. धीरे-धीरे इसमें कुछ मुस्लिम समाज की भी भागीदारी बढ़ने लगी. इसके चलते इस परंपरा को नया रूप मिला. आज यह परंपरा हिंदू और मुस्लिम दोनों की साझी विरासत बन चुकी है.

क्यों है खास

गहरेबाजी को घुड़दौड़ कहना बहुत सही नहीं होगा. दरअसल यह घोड़ों की चाल की नफासत यानी सुंदरता का खेल है. इसमें घोड़े की रफ्तार नहीं बल्कि उसकी चाल का अंदाज देखा जाता है. जानकारों का कहना है कि घोड़े की तीन खास चालें होती हैं. इनमें सिंधी, चौटाला और ढोलकी शामिल हैं. इसमें भी सबसे बेहतर मानी जाती है सिंधी चाल जिसमें घोड़ा बेहद संतुलन और लय में चलता है.

हिंदू- मुस्लिम दोनों लेते हैं हिस्सा

गहरेबाजी में शामिल घोड़ों की देखभाल का भी अपना खास तरीका है. अहियापुर के बनवारी लाल शर्मा बताते हैं कि इसमें शामिल घोड़ों का डाइट प्लान भी काफी महंगा होता है. खास डाइट में घोड़ों को चना, बादाम, मलाई, मुनक्का, गुलकंद और केसर भी शामिल होता है. एक अनुमान के मुताबिक एक महीने में एक घोड़े की खुराक पर करीब 30 हजार रुपये तक का खर्च किए जाते हैं.

इस साल प्रतियोगिता में 35 घोड़े हिस्सा ले रहे हैं जिनमें 19 मुस्लिम गहरेबाजों के हैं. बदरे आलम, ओसामा, सुजान और मुन्ना मुस्लिम पक्ष की तरफ से हिस्सा ले रहे हैं तो वहीं लाल जी यादव, बनवारी शर्मा और लोटन पंडा हिंदू पक्ष से मजबूत दावेदार हैं. विजेता का ऐलान सावन के आखिरी सोमवार को होना है.