Shardiya Navratri 2025: राक्षसों का संहार किया, साग उगाकर बचाई सृष्टि; मां शाकंभरी देवी की अनूठी कहानी
शिवालिक की पहाड़ियों में विराजमान मां शाकंभरी देवी की अनूठी कहानी है. त्रेता युग में राक्षसों ने पृथ्वी से अन्न-जल छीन लिया था. उस समय मां शाकंभरी ने राक्षसों का संहार किया और साग-सब्जी उगाकर सृष्टि को बचाया. उनका मंदिर सहारनपुर है. जहां भक्त उन्हें धन-धान्य और संतान प्राप्ति के लिए पूजते हैं. मां को साग-सब्जियां अर्पित करने की परंपरा है.

शारदीय नवरात्रि आज से शुरू हो गई है. इस मौके पर देवी मंदिरों में माता के दर्शन पूजन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है. खासतौर पर माता के शक्तिपीठों पर तो भीड़ देखने लायक है. ऐसा ही एक शक्तिपीठ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में शाकंभरी देवी के नाम से है. शिवालिक की पहाड़ियों में विराजमान माता शाकंभरी देवी के धरती पर अवतरण की अनूठी कहानी भक्तों को सहज ही इस मंदिर की ओर आकर्षित करती है.
वैसे तो गंगा–यमुना दोआबे की उपजाऊ ज़मीन और शिवालिक की हरियाली हमेशा से आस्था की धुरी रही है. इसी शिवालिक की गोद में स्थित है सिद्धपीठ माता शाकंभरी देवी का मंदिर. हर साल दोनों नवरात्रि में हजारों की तादात में भक्त माता के दरबार में आते हैं और अपनी मनौतियां माता के सामने रखते हैं. यह मान्यता त्रेता युग से बदस्तूर चली आ रही है. कथा आती है कि त्रेता में राक्षसों का आतंक चरम पर था.
फल सब्जी उगाकर की सृष्टि की रक्षा
भगवान के भक्तों को प्रताड़ित करने के लिए असुरों ने धरती से अन्न-जल आदि छीनकर कहीं छिपा दिया था. इससे पूरे इलाके में अकाल पड़ गया. जीव जंतु तड़प-तड़पकर मरने लगे. ऐसे में भक्तों के भय और संकट को हरने के लिए मां भगवती शिवालिक की पहाड़ियों पर प्रकट हुई और अपनी भयंकर गर्जना से असुरों को भयांक्रांत कर दिया. फिर उन्होंने एक एक कर असुरों का वध करते हुए शांति कायम की और फिर सृष्टि की रक्षा के लिए साग, सब्ज़ी, फल, अन्न और कंद-मूल उगाया. तब से माता का नाम ही शाकंभरी देवी पड़ गया.
शताक्षी, भ्रामरी और भीमा देवी संग माता की पूजा
मंदिर के गर्भगृह में माता शाकंभरी देवी अपने दैवी स्वरूप में विराजमान हैं. उनके साथ माता शताक्षी, भ्रामरी और भीमा देवी की भी पूजा होती है. मान्यता है कि माता के दर्शन पूजन से भक्तों के घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती और संतान की प्राप्ति होती है. यहां माता को भेंट स्वरुप मिठाई नहीं बल्कि साग-सब्जियां चढ़ाने की परंपरा है. माता के इस मंदिर से डेढ़ किमी पहले बाबा भूरा देव का मंदिर है. मान्यता है कि माता से पहले बाबा भूरा देव के दर्शन करना जरूरी होता है. उन्हें माता का द्वारपाल और रक्षक माना जाता है.
कैसे पहुंचे?
माता शाकंभरी देवी के धाम तक पहुंचने के लिए यूपी और उत्तराखंड की रोडवेज बस सेवा 24 घंटे उपलब्ध है. यहां से सहारनपुर, हरिद्वार, देहरादून और दिल्ली के लिए सीधी बस सेवा है. इसके अलावा मंदिर से निकटतम रेलवे स्टेशन सहारनपुर जंक्शन है. यहां से दिल्ली और देहरादून के लिए सीधी ट्रेनें चलती हैं. निजी वाहनों से भी भी माता के दरबार में जा सकते हैं.