संजय सिंह पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, यूपी में 105 स्कूल बंद करने के फैसले को आम आदमी पार्टी के सांसद ने दी चुनौती
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 105 प्राथमिक स्कूलों को बंद करने के फैसले को आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. याचिका में इस फैसले को मनमाना और असंवैधानिक बताया गया है.

उत्तर प्रदेश सरकार के 105 प्राथमिक स्कूलों को बंद करने के मामले को लेकर आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. संजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है और उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी है. दरअसल, यूपी सरकार की ओर से ऐसे प्राथमिक स्कूलों को बंद किया जा रहा है, जहां स्टूडेंट्स की संख्या कम है. ऐसे 105 प्राथमिक स्कूलों को बंद करने और तीन किलोमीटर के दायरे में नजदीकी स्कूलों को मर्ज करने का फैसला लिया है. यह फैसला अप्रयुक्त स्कूलों को समेकित करने की नीति के तहत लिया गया है.
याचिका में यूपी सरकार के फैसले को मनमाना, असंवैधानिक और बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के विपरीत बताया गया है. वकील श्रीराम परक्कट की जरिए दायर संजय सिंह की याचिका में 16 जून के सरकारी आदेश और 24 जून को जारी की गई परिणामी सूची को चुनौती दी गई है. जिसमें जोड़ी बनाने के लिए स्कूलों की पहचान की गई है. याचिका के मुताबिक, कार्यरत पड़ोस के स्कूलों को बिना किसी वैधानिक आधार के बंद कर दिया गया है और उनका विलय कर दिया गया है.
विशेष रूप से हाशिए की पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चों को संविधान के अनुच्छेद 21ए (6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार) का उल्लंघन करते हुए अनुचित दूरी तय करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
याचिका में क्या दिया गया तर्क?
याचिका में तर्क दिया गया है कि उत्तर प्रदेश आरटीई नियमावली के नियम 4(1)(ए) के साथ आरटीई अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, कम से कम 300 की आबादी वाली बस्तियों के एक किलोमीटर के दायरे में प्राथमिक विद्यालय उपलब्ध होना आवश्यक है. नियम 4(2) के अपवाद केवल तभी विचलन की अनुमति देते हैं जब परिवहन या आवासीय सुविधाओं जैसे प्रतिपूरक उपाय प्रदान किए जाते हैं, जो याचिका में कहा गया है कि उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं.
संजय सिंह के अनुसार, इस नीति को विधायी मंजूरी नहीं है और यह आरटीई अधिनियम की धारा 21 के तहत स्कूल प्रबंधन समितियों के साथ अनिवार्य परामर्श को दरकिनार करती है. याचिका में दावा किया गया है कि यह फैसला शैक्षणिक वर्ष के मध्य में बिना किसी सार्वजनिक सूचना, हितधारकों की राय या एक समान मानदंड के लागू किया गया, जिसके परिणामस्वरूप कक्षाओं में भीड़भाड़, बुनियादी ढांचे की कमी और स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या बढ़ी.
रिपोर्ट- पीयूष पांडे/ सुप्रीम कोर्ट



