शादी से पहले क्यों जरूरी है कुंडली का मिलान? पढ़ें BHU के प्रोफेसर की ये रिसर्च
बीएचयू के ज्योतिष प्रोफेसर विनय पाण्डेय की टीम ने अपनी शोध के आधार पर दावा किया है कि कुंडली मिलान दांपत्य जीवन की खुशहाली के लिए बेहद जरूरी है. 63% शादियों में कुंडली न मिलने से विवाद, कष्ट और संतान संबंधी परेशानियां देखी गई हैं. यह शोध बताता है कि उचित कुंडली मिलान से सफल वैवाहिक जीवन की संभावना कई गुना बढ़ जाती है, और गृह क्लेश से बचाव होता है.

दांपत्य जीवन में अक्सर लोग परेशान नजर आते हैं. कभी पति पत्नी में झगड़े तो कभी हारी-बीमारी. कई बार लोग काफी प्रयास के बावजूद भी दांपत्य जीवन की उलझन को सुलझा नहीं पाते. इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (BHU) में ज्योतिष विभाग के सीनियर प्रोफेसर और पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर विनय पाण्डेय की टीम ने गहन रिसर्च किया है. इसमें प्रोफेसर पाण्डेय की टीम ने पाया है कि जिन शादियों में कुंडली का सही मिलान है, उनकी सफलता का प्रतिशत काफी ज्यादा है. इसी शादियों की संख्या 37 फीसदी है. वहीं 63 फीसदी शादियों में कुंडली का मिलान नहीं होने और ज्योतिषीय आधार पर विवाह नहीं होने की वजह से दांपत्य जीवन सुखी नहीं है.
उन्होंने शादियों के टूटने या संतान में विकृति आने की वजह भी कुंडली का मिलान ना होने को बताया है. इसी वजह को उन्होंने गृह क्लेश या ऋण चक्र का भी कारण बताया है. उन्होंने बताया कि दांपत्य जीवन की खुशहाली का यह मतलब नहीं कि पति और पत्नी के बीच में केवल प्रेम हो, बल्कि दांपत्य जीवन की खुशहाली का अर्थ है चहुंमुखी खुशी हो. प्रोफेसर पांडेय के नेतृत्व में 8 रिसर्च स्कॉलनर्स की टीम इस विषय पर बीते दो वर्षों से रिसर्च कर रही थी. इस दौरान टीम ने 150 केस स्टडी किया और उसके आधार पर अपनी रिपोर्ट सबमिट की है.
सजातीय और विजातीय शादियों पर रिसर्च जारी
प्रोफेसर विनय पाण्डेय के मुताबिक समाज से डाटा कलेक्ट करने के बाद दंपत्तियों की कुंडली मिलाई गई. इस दौरान पाया गया कि जिन दंपतियों की कुंडली मैच कर रही थी, उनके जीवन में अपेक्षाकृत ज्यादा खुशहाली थी. वहीं 63 फीसदी ऐसे दंपत्ति थे, जिनकी कुंडली मैच नहीं कर रही थी. इनके जीवन में कष्ट और गृह क्लेश पाया गया है. रिसर्च में पाया गया कि इसकी वजह भी कुंडली मिलान ना होना है. उन्होंने बताया कि इस विषय पर अभी भी रिसर्च जारी है. उन्होंने बताया कि उनकी टीम ने डाटा उठाने में भी एक्योरेसी को लेकर काफी सकर्तता बरती है. उन्होंने बताया कि अब सजातीय और विजातीय कपल्स के दांपत्य जीवन की सफलता-असफलता पर रिसर्च हो रही है.
रिसर्च को लेकर सवाल जवाब
सवाल: क्या एआई के दौर में इस रिसर्च पर लोग भरोसा करेंगे?
जवाब: ज्योतिष विद्या में मुहूर्त चिंतामणि में भी विवाह प्रकरण है. इसमें ग्रह मेलापक और विवाह मेलापक का पूरा अध्ययन है. ये हमारी प्राचीन विद्या है और पहले सभी विद्याओं का सार ज्योतिष ही था जो कि विशुद्ध विज्ञान है . आप माने या ना माने, लेकिन हकीकत तो यही है जो रिसर्च में सामने है.
सवाल : क्या बाकी प्रोफेशन की तरह ज्योतिष शास्त्र में भी प्रोफेशनलिज़्म हावी है?
जवाब: जब भी ज्योतिष के माध्यम से आप समस्याओं का निराकरण चाहते हैं तो ऐसे ज्योतिषाचार्य के पास जाएं जिनका अपना अध्ययन है. छह महीने या साल भर के डिप्लोमा या नेट/सोशल मीडिया या किसी से सीख कर ज्योतिष विद्या का दुरूपयोग कर रहे लोगों के पास बिल्कुल ना जाएं. ज्योतिष का प्रॉपर अध्ययन करने में 15 से 18 साल लग जाते हैं. ज्योतिष में तो बाकी प्रोफेशन के तुलना में सबसे ज़्यादा गिरावट आई है.
कुंडली ना मिलाने के नुकसान
रिसर्च टीम में शामिल अमित मिश्र के मुताबिक कुंडली नहीं मिलाने के अपने नुकसान हैं. जैसे कि यदि दंपत्ति की समान नाड़ी है तो संतान में मानसिक विकृति आती ही है. यदि कुंडली मिलान के बाद शादी होगी तो ऐसी नौबत नहीं आ सकती. क्यों कि समान नाड़ी में शादी वर्जित है. उन्होंने बताया कि कुंडली मिलान में अष्ट कूट मेलापक देखा जाता है. इसमें वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, भकोट, ग्रह और नाड़ी शामिल है.
कुंडली में क्या-क्या देखा जाता है?
अमित मिश्रा के मुताबिक अष्टकूप देखने के बाद कुंडली में मेलापक देखा जाता है. इस रिसर्च में भी टीम ने उस स्तर तक उतर कर देखने की कोशिश की है कि दांपत्य जीवन में यदि कोई कष्ट है तो वो क्यूं है? उन्होंने कहा कि दांपत्य जीवन में कष्ट का मतलब सिर्फ तलाक या झगड़े ही नहीं होते, बल्कि बीमारी, कर्ज, संतान कष्ट से लेकर मृत्यु तक की आशंकाएं शामिल रहती हैं. इसे जानने के लिए बहुत डिटेल में जाना होता है. उन्होंने कहा कि जिस प्रकार झोला छाप डॉक्टर जान ले लेता है, उसी प्रकार झोला छाप ज्योतिषी परिवार बर्बाद कर देता है. उन्होंने कंप्यूटर सॉफ्टवेयर से कुंडली मिलान को और भी खतरनाक बताया.