क्या था वो मामला, जिसमें बाहुबली उमाकांत को हुई उम्र कैद? 7 साल बाद जमानत मिलने के बाद भी नहीं आ सके बाहर

जौनपुर के बाहुबली और पूर्व सांसद उमाकांत यादव हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद भी जेल से बाहर नहीं आ पाए हैं. उन्हें साल 1995 में शाहगंज रेलवे स्टेशन की जीआरपी चौकी पर फायरिंग के मामले में उम्रकैद की सजा हुई थी. 7 साल बाद अब उन्हें शर्तों के साथ जमानत मिली है. हालांकि पुलिस ने उनके खिलाफ हत्या के एक अन्य मामले की फाइल पेश कर जेल से बाहर आने से रोक लिया है.

उमाकांत को मिली जमानत

उत्तर प्रदेश में जौनपुर के बाहुबली और मछलीशहर लोकसभा सीट से सांसद रहे उमाकांत यादव की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं. 7 साल बाद उन्हें भले ही उन्हें शर्तों के साथ हाईकोर्ट से जमानत मिल गई. लेकिन, अभी भी जेल की सलाखों से बाहर आने का सपना पूरा होता नहीं दिख रहा. अब उन्हें मर्डर के ही एक अन्य मामले में रोक लिया गया है. अब वह इस मामले में जमानत पाने की जगत में लग गए हैं. इस प्रसंग में हम उसी मामले की चर्चा करने वाले हैं, जिसमें उन्हें ना केवल उम्रकैद की सजा हुई, बल्कि इसी मामले ने उनका राजनीतिक करियर भी बर्बाद कर दिया.

बात 90 के दशक की है. उन दिनों जौनपुर ही नहीं, पूरे पूर्वांचल में उमाकांत यादव और उनके भाई रमाकांत यादव की तूती बोलती थी. रमाकांत यादव सपा के बैनर तले राजनीति कर रहे थे तो, बड़े भाई उमाकांत यादव बसपा के टिकट पर मछलीशहर लोकसभा सीट से जीते. इन दोनों भाइयों की हनक जौनपुर से आजमगढ़ और बनारस से सोनभद्र तक थी. आलम यह था कि सोनभद्र से जौनपुर के बीच चलने वाले ट्रकों पर RKY लिखा देख उन्हें रोकने की हिम्मत पुलिस की भी नहीं थी.

शाहगंज रेलवे स्टेशन पर हुआ था बवाल

उन्हीं दिनों जौनपुर के शाहगंज रेलवे स्टेशन पर एक मामूली सा झगड़ा हुआ था. यह झगड़ा उमाकांत यादव के ड्राइवर राजकुमार और एक यात्री के बीच स्टेशन के प्लेटफार्म पर लगे बेंच पर बैठने को लेकर हुआ. चूंकि राजकुमार उमाकांत यादव का ड्राइवर था, इसलिए उसने हनक दिखाई और यात्री को थप्पड़ जड़ दिए. इतने में स्टेशन पर मौजूद जीआरपी चौकी से कुछ पुलिसकर्मी वहां पहुंचे और बीच बचाव का प्रयास किया, लेकिन ड्राइवर राजकुमार ने एक कांस्टेबल को भी थप्पड़ मार दिया. इसके बाद जीआरपी ने राजकुमार को हिरासत में लेकर चौकी में बैठा दिया. यह घटना 4 फरवरी 1995 का है.

चौकी पर की अंधाधुंध फायरिंग

यह खबर उमाकांत यादव को मिली तो वह हाथों में रिवॉल्वर, कार्बाइन एवं अन्य हथियार लेकर पूरे लाव लश्कर के साथ स्टेशन पहुंच गए. उन्होंने पहले तो चौकी इंचार्ज को फटकार लगाई, लेकिन, इसके बाद भी जीआरपी ने ड्राइवर राजकुमार को छोड़ने से मना कर दिया तो उमाकांत यादव और उनके साथियों ने चौकी पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. इस वारदात में जीआरपी के कांस्टेबल अजय सिंह की मौत हो गई थी, वहीं दूसरे कांस्टेबल लल्लन सिंह, रेलवे कर्मचारी वाटसन निर्मल लाल तथा एक यात्री भरत लाल गंभीर रूप से घायल हो गए थे. इस वारदात में उमाकांत यादव के साथ उनका गनर बच्चू लाल स्टेनगन(कार्बाइन) लेकर तथा उमाकांत के पीआरडी जवान सूबेदार, धर्मराज, महेंद्र व सभाजीत राइफल लेकर शामिल हुए थे.

ललकारते हुए ड्राइवर को छुड़ाया

उमाकांत यादव दहाड़ते हुए चौकी में घुसे. उन्होंने ललकारते हुए अपने साथियों से कहा था कि ‘एक भी पुलिस वाला जिंदा नहीं बचना चाहिए’. इसके बाद जब उनके साथियों ने फायरिंग शुरू की तो सभी पुलिस वाले इधर से उधर भागने लगे. वहीं प्लेटफार्म पर यात्रियों में भी भगदड़ मच गई थी. इसी माहौल में उमाकांत अपने ड्राइवर को छुड़ा लिया और मालखाना लूटने की कोशिश की. इस दौरान जीआरपी चौकी में मौजूद कांस्टेबल रघुनाथ सिंह व लालमणि सिंह ने जवाबी फायरिंग की कोशिश की, लेकिन वह टिक नहीं पाए और गोली लगने से वो भी जख्मी हो गए थे.

सीबीसीआईडी ने की जांच

इस मामले में जीआरपी ने मुकदमा दर्ज किया और बाद में मामले की जांच सीबी-सीआईडी को भेज दी गई. इस जांच के बाद सीबी-सीआईडी ने उमाकांत यादव को मुख्य आरोपी बनाते हुए बच्चू लाल, सूबेदार, धर्मराज, महेंद्र ,सभाजीत व राजकुमार आदि आरोपियों के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, सरकारी कार्य में बाधा डालने व ड्यूटी पर तैनात पुलिस पार्टी पर हमला करने समेत अन्य धाराओं में कोर्ट में चार्जशीट पेश किया था. पुलिस ने इस मामले में कुल 19 गवाह बनाए. इन गवाहों और सबूतों के आधार पर कोर्ट ने साल 2022 में उन्हें दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

ऐसे टूटा सलाखों से बाहर आने का सपना

इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद उमाकांत यादव जेल से बाहर आने की तैयारी कर ही रहे थे कि पुलिस ने दूसरे मुकदमों की फाइल पेश कर उनके सपने पर ब्रेक लगा दिया. पुलिस के मुताबिक उमाकांत यादव के खिलाफ हत्या, धमकी देने, रंगदारी मांगने समेत करीब आधा दर्जन अन्य गंभीर मामले कोर्ट में पेंडिंग हैं. हाईकोर्ट से जमानत मिलने की खबर पर पुलिस इन मामलों को लेकर कोर्ट पहुंच गई. तर्क दिया कि उमाकांत यादव के जेल से बाहर आने पर वह इन मुकदमों में गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं. इसके बाद कोर्ट ने उन्हें फिलहाल बाहर आने से रोक दिया है.

इस तर्क पर मिली थी उमाकांत को जमानत

जीआरपी चौकी पर उम्रकैद की सजा काट रहे उमाकांत यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल करते हुए चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी. इसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की एक रुलिंग नवजोत सिंह सिद्धू बनाम पंजाब राज्य का जिक्र करते हुए जमानत की मांग की. कोर्ट को भरोसा दिया था कि वह जेल से बाहर आने के बाद किसी गवाह से ना संपर्क करेंगे और ना ही मुकदमे को प्रभावित करने की कोशिश करेंगे. उनकी अर्जी पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने उन्हें शर्तों के साथ जमानत देने का फैसला किया था.