मौत, फरारी, गिरफ्तारी और खत्म हुई विधायकी… अबतक मुख्तार फैमिली के साथ क्या-क्या हुआ?
मुख्तार अंसारी की मौत के बाद परिवार पर आई मुसीबतों का सिलसिला जारी है. मुख्तार के बेटे अब्बास जेल में हैं और उनकी विधायक जा चुकी है. पत्नी फरार है और अब छोटा बेटा भी गिरफ्तार हो चुका है. योगी सरकार ने उनकी करोड़ों की संपत्ति जब्त की है, और उनके सहयोगियों पर भी कार्रवाई जारी है. मुख्तार की राजनीतिक विरासत अब चरमरा गई है.
उत्तर प्रदेश ही नहीं देश भर में अपराध की नर्सरी रहे पूर्वांचल में कभी मुख्तार अंसारी की तूंती बोलती थी. सत्ता किसी की भी रहे, मऊ और गाजीपुर में मुख्तार का ही सिक्का चलता था. मुख्तार जो कह दें, वहीं आदेश होता था. लेकिन 2017 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में आई बीजेपी सरकार में मुख्तार का सूरज ढलने लगा और आखिरकार इसी लाचारी और बेचारगी में 28 मार्च 2024 को मुख्तार अंसारी ने दम तोड़ दिया. जिंदा रहते मुख्तार ने अपने बेटे उमर और अब्बास को नेता बनाने की खूब कोशिश की, लेकिन इनकी नेतागिरी भी उन्हीं अपराधों की भेंट चढ़ गई, जिसकी नींव 80 के दशक में खुद मुख्तार ने ही रखी थी.
इस प्रसंग में मुख्तार की पूरी कहानी बताएंगे, साथ में यह भी बताएंगे कि मुख्तार की मौत के बाद इस फैमिली के साथ अब तक क्या हुआ. जेल में रहते मुख्तार ने अपने सांसद भाई अफजाल अंसारी पर दाव खेलने की कोशिश की, लेकिन वह मुख्तार वाली हनक नहीं बना पाए. इसके बाद मुख्तार ने अपने बेटे अब्बास को मैदान में उतारा और विधायक भी बनाया, लेकिन अब्बास में भी वो करंट नहीं रहा. स्थिति यहां तक आ गई कि मुख्तार की राजनीतिक विरासत उनके जीवन के उत्तरार्ध में ही दरकने लगी थी.
दरक रहा तीन दशकों पुराना किला
तीन दशक से मुख्तार की सियासत का अभेद्य किला मऊ और गाजीपुर में परिवार की पकड़ कमजोर हो गई है. चूंकि साल 2017 में शपथ लेने के साथ ही सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपराधियों को मिट्टी में मिलाने का फरमान जारी कर दिया था, लिहाजा पुलिस और प्रशासन ने भी इन 8 सालों में मुख्तार परिवार की सियासत को मिट्टी में मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसका अंदाजा इतने से ही लगाया जा सकता है कि मुख्तार की अपनी खुद की सीट मऊ सदर विधान सभा सीट पर बेटे को जीत दिलाने के लिए सुभासपा से समझौता करना पड़ा. परिस्थितियों ने मुख्तार को इस कदर तोड़ दिया कि जेल में ही हार्ट अटैक आ गया और मौत हो गई. वहीं प्रशासन के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी कर फंसे बेटे अब्बास को सजा होते ही विधायक चली गई.
हजारों करोड़ की प्रापर्टी पर चल रहा बुलडोजर
मुख्तार की मौत के बाद उनके द्वारा कमाई हजारों करोड़ की संपत्तियों पर योगी सरकार का बुलडोजर चल रहा है. करोड़ों रूपये कीमत की शत्रु संपत्ति पहले ही छीनी जा चुकी है. मुन्ना बजरंगी जैसे मुख्तार के सहयोगी चुन-चुनकर मारे जा रहे या पकड़कर जेलों में ठूंसे जा रहे हैं. बेटा अब्बास तो जेल में है ही, खुद मुख्तार की पत्नी अफशां अंसारी भी फरार है. पुलिस उसके खिलाफ 50 हजार का इनाम घोषित कर तलाश कर रही है. छोटा बेटा उमर अब तक बाहर था, लेकिन अपनी मां का फर्जी हस्ताक्षर कर एक दिन पहले वो भी गिरफ्तार होकर जेल पहुंच गया. सांसद अफजाल अंसारी समेत परिवार में बाकी अन्य लोग भी आपराधिक और आर्थिक मुकदमों में कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं.
1996 में पहली बार विधायक बने थे मुख्तार
मुख्तार ने अपराध की दुनिया में तो इमरजेंसी के बाद ही कदम रख दिया था, लेकिन उनके मन में 90 के दशक में बाहुबली बनने का ख्याल आया. फिर 1996 में मुख्तार ने मायावती से हाथ मिलाया और बसपा के टिकट पर मऊ सदर से पहली बार विधायक चुने गए. हालांकि साल 2002 में मायावती से संबंध खराब हुए तो निर्दलीय चुनाव जीते और अगले ही साल मुलायम सिंह के साथ हो लिए. मुख्तार ने 2009 में वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर संसद पहुंचने की कोशिश की, लेकिन करारी हार मिली. इसके बाद मुख्तार ने साल 2010 में अपनी पार्टी कौमी एकता दल का गठन किया. यह उनके उनके परिवार की पार्टी थी. इसी पार्टी के बैनर तले खुद मुख्तार मऊ से विधायक बने. वहीं उनके भाई सिवक्तुला मोहम्मदाबाद से विधानसभा जीते.
परिवार पर सपा की कृपा
2016 तक मुख्तार का उत्तर प्रदेश में जलवा था, लेकिन 2017 के चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने मुख्तार से दूरी बना ली. यहां तक कि पिता मुलायम सिंह और चाचा शिवपाल के कहने पर भी अखिलेश ने मुख्तार की पार्टी का सपा में विलय नहीं होने दिया. इस बेइज्जती से नाराज मुख्तार परिवार ने 2017 में बसपा को समर्थन दिया. खुद मुख्तार बसपा के ही टिकट पर घोसी से विधायक बने तो भाई अफजाल गाजीपुर से सांसद चुने गए. बाद में अखिलेश का रूख थोड़ा नर्म हुआ और 2022 में अखिलेश यादव ने अपने सहयोगी दल सुभासपा के टिकट पर मुख्तार के बेटे अब्बास को चुनाव लड़ाकर विधायक बनाया. वहीं उनके भतीजे शोएब को मोहम्मदाबाद से टिकट दिया.
1986 से 2017 तक था अपराध का साम्राज्य
मुख्तार अंसारी पर हत्या का पहला मामला 1986 में दर्ज हुआ था. उसके बाद साल 2017 तक 200 से अधिक मुकदमे दर्ज हुए. इनमें साल 2005 में हुए बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड काफी चर्चित रहा. इसके अलावा बनारस के बाहुबली बृजेश सिंह के साथ गैंगवार और इनसे जुड़ी घटनाएं भी समय समय से हेडलाइन बनती रहीं हैं. बताया जाता है कि पहली बार कृष्णानंद राय हत्याकांड में ही किसी बदमाश ने AK-47 का इस्तेमाल किया था. मुख्तार अंसारी के इशारे पर इस वारदात को मुन्ना बजरंगी और उसके साथियों ने अंजाम दिया था.