गैंगरेप में ऐसे जुड़ा कुलदीप का नाम, HC-SC के आदेश के बाद सनसनी बने हैं सेंगर… बेटियों के दावे में कितना दम? जानें पूरी कहानी
उन्नाव गैंगरेप कांड में पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर की सजा सस्पेंड होने और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस फैसले को पलट देने के बाद यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में है. इसी के साथ मामले में सत्ता, पैसा और राजनीति के गठजोड़ का भी खुलासा हो गया है. जिसकी वजह से पीड़िता ने आठ साल तक न्याय के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ी. यह पूरी कहानी किसी थ्रिलर उपान्यास से कम नहीं. आप भी पढ़िए कि कैसे पॉवर और पैसा न्याय का भी रूख मोड़ देता है.
इस समय उत्तर प्रदेश का उन्नाव गैंगरेप और बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर सुर्खियों में हैं. उम्रकैद की सजा काट रहे कुलदीप की सजा पिछले दिनों हाई कोर्ट ने इस आधार पर कैंसल कर दी कि वह लोकसेवक की परिभाषा में फिट नहीं बैठते.आदेश के साथ ही सवालों के तूफान खड़े हो गए. पीड़िता धरने पर बैठ गई. सोशल मीडिया में बवाल मच गया. मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर स्टे लगा दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने तथ्यों को इग्नोर किया है.ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वो तथ्य हैं क्या? इसी के साथ सवाल यह भी है कि आखिर उस दिन हुआ क्या था? कुलदीप की बेटियां क्यों कह रही हैं कि उनके पापा को फंसाया गया है. उनके दावों में कितना दम है.
इस वारदात की पूरी कहानी पॉवर, पैसा और राजनीति के इर्द-गिर्द घूमते हुए कानून की धज्जियां उड़ाती नजर आ रही है. आइए, शुरू से शुरू पूरे घटनाक्रम को समझने की कोशिश करते हैं. वह साल 2017 का था, प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार बन चुकी थी. बीजेपी की टिकट पर सपा से आए कुलदीप सिंह सेंगर उन्नाव के बांगरमऊ विधानसभा सीट से चुनाव जीते थे. सामान्य कद काठी के कुलदीप सिंह सेंगर सपा में रहते हुए ही अपनी क्षवि बाहुबली की बना चुके थे. हालांकि उस समय तक उनकी पहचान उन्नाव और कानपुर में ही थी.
नाबालिग से रेप का आरोप
वह लखनऊ और दिल्ली में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर ही रहे थे कि 4 जून 2017 को उनके गांव की ही एक नाबालिग लड़की ने उनके ऊपर गैंगरेप का आरोप लगा दिया. पीड़िता ने बताया कि पहले शुभम और नरेश तिवारी ने किडनैप कर उसके साथ गैंगरेप किया और फिर जब वह मदद मांगने विधायक के पास गई तो वहां भी उसके साथ रेप हुआ. हालांकि एक अन्य बयान में पीड़िता ने बताया था कि शशि सिंह नामक महिला उसे नौकरी दिलाने के बहाने विधायक के पास ले गई थी, जहां उसके साथ रेप हुआ था. पीड़िता ने इस संबंध में पुलिस में शिकायत भी दी, लेकिन विधायक के रसूख की वजह से पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया.
विधायक द्वारा धमकाने का भी है आरोप
पुलिस में शिकायत के दो दिन बाद ही पीड़िता लापता हो गई, परिवार ने पुलिस में उसे फिर अगवा करने की शिकायत दी, लेकिन एक हफ्ते बाद वह औरैया जिले के एक गांव में मिल गई थी. उसने आरोप लगाया कि विधायक के लोग उसे धमका रहे हैं और शिकायत वापस लेने का दबाव बना रहे हैं. इसी बीच 3 जुलाई 2017 को पीड़िता ने सीएम योगी के जनता दरबार में पहुंचकर शिकायत दी. शिकायत की यह कॉपी मीडिया में लीक भी हुई थी. हालांकि पुलिस ने इसमें कोई कार्रवाई नहीं की. उन्नाव में माखी थाने के तत्कालीन एसएचओ अशोक भदौरिया ने तर्क दिया था कि पीड़िता के बयान में बहुत झोल था. इसी प्रकार विधायक की लोकेशन वारदात के वक्त घटना स्थल से करीब 100 किमी दूर थी.
पीड़िता ने की आत्मदाह की कोशिश
चूंकि वारदात के 10 महीने बाद भी पुलिस कोई एक्शन नहीं ले रही थी, ऐसे में पीड़िता ने भी न्याय के लिए उन्नाव से लखनऊ दिल्ली एक कर दिया. इससे पुलिस और विधायक पर दबाव काफी बढ़ गया था. इसी बीच आरोप लगा कि 3 अप्रैल 2018 को विधायक के भाई अतुल सिंह ने पीड़िता के पिता को उठवा लिया और बुरी तरह मारपीट करने के बाद पुलिस को सौंप दिया. वहीं पुलिस ने भी विधायक के दबाव में साल 2004 के एक मुकदमे में पीड़िता के पिता को अरेस्ट कर जेल भेज दिया. पीड़िता और उसके परिवार ने अपने पिता को छुड़ाने की खूब कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी तो पीड़िता ने 8 अप्रैल 2018 को लखनऊ में मुख्यमंत्री कार्यालय के बाहर आत्मदाह की कोशिश की.
ऐसे दर्ज हुआ गैंगरेप का केस
आज के डीजीपी राजीव कृष्ण उस समय लखनऊ में एडीजी थे. उन्होंने खुद पीड़िता से मुलाकात की और उचित कार्रवाई का भरोसा दिया. इसके बाद पीड़िता के घर पहुंचने से पहले ही पुलिस ने ना केवल एफआईआर दर्ज कर लिया, बल्कि शुभम और नरेश को अरेस्ट कर लिया. हालांकि पुलिस ने इस एफआईआर में से विधायक का नाम हटा दिया था. इतने में अगले दिन खबर आई के पीड़िता के पिता की कस्टडी में ही मौत हो गई है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उनके शरीर पर चोट के 14 गहरे निशान थे, वहीं अंतड़ियां तक फट गई थी. इस घटना के बाद उन्नाव रेप कांड राष्ट्रीय सुर्खियां बन गया.
सरकार के लिए गले की फांस बना मामला
इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस और सरकार की इतनी किरकिरी हुई कि आनन फानन में एसएचओ अशोक भदौरिया समेत 6 पुलिस वालों को सस्पेंड कर दिया गया. चूंकि पीड़िता का परिवार पहले से मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग कर रहा था, इसलिए सरकार ने तत्काल मामला सीबीआई को हैंडओवर कर दिया. फिर 10 अप्रैल 2018 को मामला हाथ में लेने के बाद सीबीआई ने अंतरिम चार्जशीट दाखिल किया था. इसके बाद कोर्ट के आदेश पर मुकदमे में ना केवल विधायक का नाम जोड़ा गया, बल्कि कोर्ट के आदेश पर 13 अप्रैल 2018 को ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया. फिर कुछ ही दिन बाद सीबीआई ने जांच पूरी कर चार्जशीट दाखिल कर दी.
फिर शुरू हो गया मौत का सिलसिला
इस चार्जशीट से पहले केवल पीड़िता के पिता की मौत हुई थी, लेकिन चार्जशीट दाखिल होने के बाद जब विधायक और उनसे जुड़े लोग पूरी घिरने लगे तो कई लोगों की जान गई.पहले पुलिस ने साल 2004 में हुए झगड़े के मामले में पीड़िता के चाचा को अरेस्ट कर जेल भेजा, वहीं जब पीड़िता अपनी चाची, मौसी और वकील के साथ 28 जुलाई 2019 को उनसे मिलने के लिए रायबरेली की जेल जा रही थी, उसकी कार को ट्रक ने उड़ा दिया. इस घटना में पीड़िता की चाची, मौसी और वकील की मौत हो गई. वहीं खुद पीड़िता भी गंभीर रूप से घायल होकर 5 महीने तक एम्स में रही थी. इस मामले में भी कुलदीप सेंगर के खिलाफ नया केस दर्ज हुआ था.
सुप्रीम कोर्ट को देना पड़ा दखल
चूंकि मामले में लगातार मौतें हो रहीं थी, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त 2019 को इसमें हस्तक्षेप करते हुए मामले को यूपी से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया. इसी के साथ शीर्ष कोर्ट ने पीड़िता को सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश देते हुए दिल्ली की अदालत को 45 दिन में सुनवाई पूरी करने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट की इस सख्ती को देखते हुए 11 सितंबर 2019 को AIIMS में ही अस्थायी अदालत लगी और मामले की सुनवाई पूरी करते हुए अदालत ने 20 दिसंबर 2019 को सेंगर को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई. साथ ही 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था. हालांकि छह साल बाद सेंगर की अपील पर दिल्ली हाईकोर्ट ने इस सजा को सस्पेंड करते हुए जमानत दे दी. चूंकि इस बीच पीड़िता के पिता की हत्या में सेंगर को 10 साल की सजा हो चुकी थी. इसलिए हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद भी वह बाहर नहीं आ सका. वहीं सीबीआई भी हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. जहां से हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया गया है.
सेंगर की बेटियों ने दी ये दलील
सेंगर के बचाव में उनकी दोनों ऐश्वर्या और इशिता ने घटनाक्रम का जिक्र करते हुए गंभीर सवाल उठाए हैं. आरोप लगाया है कि ये सभी सवाल सीबीआई की चार्जशीट में भी सामने आ चुके हैं. इन्हीं सवालों के बिनाह पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सजा सस्पेंड भी की थी. कहा कि घटना के समय उनके पिता वहां पर थे ही नहीं. CDR (कॉल डिटेल रिकॉर्ड) से भी साफ हो गया कि सेंगर वहां से 17 किमी दूर थे. यही नहीं, जिस वक्त की घटना लड़की ने बताई है, उस समय वह खुद किसी से फोन पर बात कर रही थी. कहा कि पीड़िता ने अपने हर बयान में अपनी अलग अलग उम्र बताई है. खुद को नाबालिग बताने के लिए उसने जो टीसी पेश किया, उसकी हकीकत एम्स की रिपोर्ट में सामने आ चुकी है. इसमें साफ हो चुका है कि वो 18 साल के ऊपर थी. यहां तक कि जब उनके पिता ने अपने नार्को और पॉलीग्राफी टेस्ट के लिए कहा तो पीड़ित पक्ष ने मना कर दिया.
यहां से शुरू हुई दोनों परिवारों में रंजिश
उन्नाव के माखी गांव का रहने वाला कुलदीप सेंगर वैसे तो एक सामान्य परिवार में पैदा हुआ था. साल 2000 से पहले कोई खास हैसियत भी नहीं थी, लेकिन उन्हीं दिनों गांव में प्रधानी का चुनाव हो रहा था. गांव में पंचायत बैठी और एक राय होकर कुलदीप को प्रधान बनाने का फैसला ले लिया गया. इस फैसले में बड़ी भूमिका पीड़िता के परिवार की थी. संयोग से चुनाव से दो या तीन दिन पहले किसी बात को लेकर विधायक के भाई और पीड़िता के चाचा के बीच मारपीट हो गई. इसमें कुलदीप ने पीड़िता के पिता और चाचा के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया था. हालांकि यह मामला करीब 15 साल तक दबा रहा. वहीं जब गैंगरेप कांड तूल पकड़ने लगा तो विधायक इस दबी हुई फाइल को खुलवा दी.
ऐसे बनाया राजनीतिक रसूख
ग्राम प्रधान बनने के बाद कुलदीप सिंह सेंगर को राजनीति का चश्का लग गया. उन दिनों उत्तर प्रदेश में बसपा का परचम लहरा रहा था. इसलिए इसने मौका देखा और मायावती से मिलकर साल 2004 में बांगरमऊ विधानसभा सीट से टिकट ले लिया. इस चुनाव में जीतने के बाद उसने अपना बाहुबल बढ़ा लिया और अगले चुनाव यानी 2007 में सपा के टिकट से विधायक बना. फिर 2012 में भी सपा के ही टिकट से विधायक बना और सांसद बनने का ख्वाब देखने लगा. जब सपा ने लोकसभा का टिकट नहीं दिया तो इसने सपा को छोड़ बीजेपी के टिकट पर 2017 का चुनाव उसी सीट से जीतकर चौथी बार विधायक बन गया. तब तक इसके काले कारनामे खुल गए तो उसे विधायकी से तो हाथ धोना ही पड़ा, बीजेपी ने भी पार्टी से निकाल बाहर किया और अब वह छह साल से तिहाड़ जेल में बंद है.
