जुलूस देखा और बना लिया सिपहसालार, पूर्व PM चंद्रशेखर के सबसे भरोसेमंद साथी रामगोविंद चौधरी की कहानी
पूर्व मंत्री और समाजवादी नेता राम गोंविद चौधरी की कहानी काफी इंट्रेस्टिंग है. 1977 के लोकसभा चुनाव के दौरान, जब पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर नामांकन करने जा रहे थे, उसी समय जेल से राम गोविंद चौधरी की रिहाई हुई. उन्हें रिहा कराने के लिए सैकड़ों की संख्या में छात्र जेल पहुंचे हुए थे. इस काफिले को देखकर चंद्रशेखर इस कदर प्रभावित हुए कि उन्हें बुलाकर अपना साथी बना लिया था. राम गोविंद चौधरी, एक प्रखर छात्र नेता रहे हैं और उन्होंने इमरजेंसी के दौरान संपूर्ण आजादी के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था.

1977 के लोकसभा चुनाव में उतरे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर अपने काफिले के साथ नामांकन भरने के लिए बलिया कचहरी जा रहे थे. ठीक उसी समय जेल की ओर से एक काफिला निकला. यह काफिला चंद्रशेखर के काफिले से भी लंबा था. काफिले में शामिल सभी छात्र थे. इसे देखकर चंद्रशेखर के पांव भी ठिठक गए. उन्होंने अपने किसी साथी से पूछा कि ये किसका काफिला जा रहा है, जवाब मिला कि छात्र नेता राम गोविंद चौधरी का, वो अभी जेल से छूटे हैं. यह सुनकर चंद्रशेखकर बड़े प्रभावित हुए.
उन्होंने तुरंत एक आदमी को भेजकर रामगोविंद चौधरी को बुलाया और बात की. उस समय चंद्रशेखर का सानिध्य रामगोविंद चौधरी को इतना अच्छा लगा कि वह एक पल में ही चंद्रशेखर के लिए समर्पित हो गए. इसके बाद रामगोविंद चौधरी चंद्रशेखर के जीवन भर उनके भरोसेमंद साथी रहे. चंद्रशेखर से रामगोविंद चौधरी की यह पहली मुलाकात ऐसी थी कि उनका जो काफिला जेल से टीडी कॉलेज चौराहा और चित्तू पांडेय चौराहा होते हुए पूरे शहर में घूमने वाला था, एक झटके में चंद्रशेखर के काफिले में मर्ज हो गया.
छात्र जीवन से ही रहे प्रखर वक्ता
बलिया में सिकंदरपुर के पास घाघरा नदी के किनारे गोसाईंपुर गांव में रहने वाले स्व. द्वारिका चौधरी और तिलेश्वरी देवी के घर में 9 जुलाई 1954 को पैदा हुए राम गोविंद चौधरी ने टीडी कॉलेज बलिया से पोस्ट ग्रेजुएशन किया और फिर एलएलबी की पढ़ाई भी की. चूंकि वह छात्र जीवन से ही प्रखर वक्ता रहे हैं, ऐसे में चंद्रशेखर के सानिध्य ने उन्हें और निखार दिया. वह 1972-73 में वह टीडी कॉलेज छात्रसंघ के महामंत्री बने. संयोग से अगले ही साल यानी 1974 में देश में इमरजेंसी लगी तो वह लोकनायक जयप्रकाश की अगुवाई में उन्होंने बलिया में छात्र युवा मोर्चा की जिम्मेदारी संभाली और संपूर्ण क्रांति में शामिल हो गए.
छह महीने देरी से हुई रिहाई
उस समय बलिया पुलिस ने उनके दमन की खूब कोशिश की, 5000 रुपये का इनाम भी घोषित किया और फिर अरेस्ट कर जेल भेज दिया. उस समय इमरजेंसी के दौरान बलिया के सभी बागी 19 महीने बाद ही रिहा हो गए थे, लेकिन राम गोविंद चौधरी की रिहाई 25 महीने बाद हुई. पूर्व पीएम चंद्रशेखर भी यह सुनकर हैरान रह गए थे कि बलिया में ऐसा कौन बागी पैदा हुआ, जिसको रिहा करने में सरकार को छह महीने एक्सट्रा समय लग गया. इसी इमरजेंसी के बाद हुए विधान सभा चुनाव में राम गोविंद चौधरी जनता पार्टी के टिकट पर चिलकहर विधानसभा सीट से मैदान में उतरे और जीते. उन्होंने इसी सीट से अपनी जीत लगातार पांच बार बनाए रखी.
1990 में बने मंत्री
रामगोविंद चौधरी को साल 1990 में मुलायम सिंह यादव ने अपने मंत् मंडल में शामिल किया था. फिर 1999 में चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली सजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने. 2002 के विधानसभा चुनाव में सजपा उम्मीदवार के रूप में वह बांसडीह विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और विधायक बने. 2007 के चुनाव में वह फिर मैदान में उतरे, लेकिन हार गए. हालांकि साल 2012 और 2017 में उन्होंने फिर से बांसडीह विधानसभा सीट की जनता ने विधानसभा पहुंचाया. वह 2012 में अखिलेश यादव मंत्रिमंडल में भी कैबिनेत्री बने और फिर 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता विरोधी दल बने.हालांकि साल 2022 में बांसडीह विधानसभा से उन्हें बीजेपी विधायक केतकी सिंह ने शिकस्त दी थी.