आगरा के ‘बड़े मियां-छोटे मियां’: फर्जीवाड़ा कर 2 भाई बने पुलिस अफसर, 27 साल तक विभाग को नहीं लगी भनक
आगरा में दो भाइयों ने मृतक आश्रित कोटे के फर्जी दस्तावेजों से 27 साल तक पुलिस में नौकरी की. बड़ा भाई सीओ पद से रिटायर हुआ, जबकि छोटा भाई इंस्पेक्टर है. एक गुप्त शिकायत के बाद जांच में इस फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है. फिलहाल दोनों की वेतन, पेंशन आदि सुविधाएं रोक दी गई हैं. पुलिस कमिश्नर ने विभागीय जांच के आदेश दिए हैं.

उत्तर प्रदेश में दो भाइयों ने मृतक आश्रित के फर्जी दस्तावेज बनवाकर पुलिस महकमे में दरोगा की नौकरी हासिल कर ली. समय समय पर इनकी ट्रांसफर-पोस्टिंग हुई और दोनों को प्रमोशन भी मिला. बड़ा भाई सीओ से रिटायर हुआ तो छोटा भाई भी इंस्पेक्टर की कुर्सी तक पहुंच गया. बावजूद इसके, 27 साल तक महकमे को भनक तक नहीं लगी. इसी बीच पुलिस हेडक्वार्टर में गुमनाम चिट्ठी आई. इसकी जांच कराई गई तो अधिकारियों को होश ही उड़ गए.
शुरुआती जांच और आरोप:
पुलिस हेडर्क्वाटर के निर्देश पर आगरा के डीसीपी ट्रैफिक अभिषेक अग्रवाल ने मामले की शुरुआती जांच की. इस दौरान पता चला कि इंस्पेक्टर योगेंद्र लांबा ने अनुकंपा के तहत मृतक आश्रित कोटे से नौकरी पायी है. जब उनके मृतक आश्रित के दस्तावेज चेक किए गए तो वह फर्जी निकला. डीसीपी ट्रैफिक को शक हुआ तो उन्होंने योगेंद्र लांबा के बड़े भाई रिटायर्ड सीओ नागमेंद्र लांबा की नियुक्ति की भी जांच की. उसमें भी यही स्थिति मिली. इसके बाद उन्होंने दोनों भाइयों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया. उनके जवाब देखने के बाद पुलिस महकमे ने रिटायर्ड सीओ नागमेंद्र लांबा की पेंशन और अन्य लाभ रोकने के आदेश दिए हैं. वहीं इंस्पेक्टर योगेंद्र लांबा का भी वेतन रोक दिया गया है.
गोपनीय पत्र से हुआ खुलासा
पुलिस सूत्रों के मुताबिक नागमेंद्र लांबा डिप्टी एसपी के पद से रिटायर हो चुके हैं. वहीं इंस्पेक्टर योगेंद्र लांबा फिलहाल पुलिस लाइन में तैनात हैं. बताया जा रहा है कि पिछले दिनों योगेंद्र लांबा की नियुक्ति को लेकर डीजी मुख्यालय में एक गोपनीय शिकायत मिली थी. इस शिकायत में आरोप था कि इन्होंने ने मृतक आश्रित कोटे में नौकरी हासिल की है. बताया गया कि यह दोनों भाई पिछले तीन साल से आगरा में एक साथ तैनात थे. नागमेंद्र लांबा अकाउंट सेक्शन में थे और वे अपने भाई योगेंद्र का भी वेतन तैयार करते थे.
फर्जी भर्ती की सच्ची कहानी
पुलिस की जांच में पता चला कि नागमेंद्र लांबा 1986 में हल्द्वानी (तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा) से पुलिस में भर्ती हुए थे. वहीं उनके भाई योगेंद्र लांबा 1997 में मेरठ से भर्ती हुए. वर्तमान नियमों के अनुसार, मृतक आश्रित कोटे में आवेदन की समय सीमा पांच साल है. 1997 में डिजिटल रिकॉर्ड नहीं थे, इसलिए जांच अधिकारी उस समय के मैनुअल रिकॉर्ड्स की पड़ताल करेंगे. इस दौरान यह भी देखा जाएगा कि योगेंद्र की भर्ती के समय किसने शपथ पत्र दिया कि वह परिवार के पहले और इकलौते मृतक आश्रित हैं.
विभागीय जांच शुरू
पुलिस आयुक्त दीपक कुमार के मुताबिक मामले की विभागीय जांच कराई जा रही है. यह एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें प्रारंभिक जांच करने वाले अधिकारियों के भी बयान दर्ज किए जाएंगे. इसमें जो भी तथ्य आएंगे, उसके मुताबिक आगे की कार्रवाई होगी. पुलिस महकमे में चर्चा है कि यह गोपनीय शिकायत किसी ऐसे पुलिसकर्मी ने की है, जिसे दोनों भाइयों के बारे में पूरी जानकारी थी. माना जा रहा है कि यह शिकायत किसी ऐसे व्यक्ति ने की होगी जो नागमेंद्र लांबा से बिलों के भुगतान को लेकर परेशान था.