लक्ष्मण रेखा से घिरा है UP का ये मठ, मठाधीश नहीं देख पाते बाहर की दुनिया; हैरान कर देगी वजह
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में एक रहस्यमयी मठ है. मून बाबा की कुटिया के नाम से पहचान वाले इस मठ को लेकर मान्यता है कि इसके चारों ओर एक अदृश्य लक्ष्मण रेखा खिंची है. कोई भी मठाधीश पीढ़ियों से इस रेखा को पार नहीं करते, क्योंकि ऐसा करने पर अनिष्ट होने की आशंका रहती है. यह परंपरा बाबा कपिलमुनि पांडेय के समय से चली आ रही है.
वैसे तो देश में बड़ी संख्या में रहस्यमयी मठ और मंदिर हैं. इन मठों और मंदिरों से जुड़ी तमाम कहानियां भी हैं. ऐसा ही एक रहस्यमयी मठ उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में है. इस मठ को लेकर ऐसी मान्यता है कि यह चारों ओर से एक अदृश्य लक्ष्मण रेखा से घिरा है. इस लक्ष्मण रेखा को पार करने की हिम्मत इस मठ के महंत भी नहीं कर पाते. जिस किसी ने ऐसा करने की कोशिश की, उसके साथ अनिष्ट हुआ है. जी हां, हम बात कर रहे हैं बलिया के बैरिया थाना क्षेत्र के गांव रकबा टोला स्थित मून बाबा की कुटिया की. यह रहस्यमयी कहानी आपको अटपटी लग सकती है, लेकिन इसकी दहशत ऐसी है कि महंत मठ के दायरे से बाहर निकलने की बात भर से कांप जाते हैं.
इस मठ की कहानियां आसपास के इलाके में खूब प्रचलित हैं. कहा जाता है कि इस मठ में खुद कपिलमुनि पांडेय ने की थी. इश्वर की आराधना के लिए उन्हें एक ऐसे स्थान की तलाश थी, जहां उन्हें कोई व्यवधान ना हो. इसके बाद उन्होंने इस स्थान पर कुटी बनाई और यहां एक लक्ष्मण रेखा खींच दी. इस लक्ष्मण रेखा की मर्यादा है कि यहां तप करने वाला व्यक्ति इस रेखा के बाहर नहीं जा सकता. इसके बाद वह तपस्या करने बैठ गए. वह कहते थे कि भगवान को खुद मठ के दायरे में आकर उन्हें दर्शन देना होगा.
मठ में ही छोड़ते हैं प्राण
उनकी तपस्या और जिद से प्रभावित होकर भगवान से उनका साक्षात्कार भी हुआ, लेकिन इसी मठ के अंदर उन्होंने प्राण भी त्याग दिया. उसी समय से यह परंपरा शुरू हो गई कि जो भी व्यक्ति इस मठ में तपस्या करेगा, वह बाहर नहीं निकल सकेगा. बाद के कुछ संतों ने मठ के दायरे से बाहर निकलने की कोशिश भी की, लेकिन उनके साथ ऐसा अनिष्ठ हुआ कि उनके बाद कोई भी संत ने एक बार यहां गद्दी पर बैठने के बाद बाहर निकलने की हिम्मत भी नहीं दिखा सके. इस प्रकार मठ की गद्दी संभालने वाले महंत की मठ में प्राण छूट जाते हैं.
मठाधीश नहीं देख पाते बाहर की दुनिया
इस मठ के मौजूदा मठाधीश जयनारायण पांडेय कहते हैं कि वह इस परंपरा की आठवीं पीढ़ी के महंत हैं. उन्होंने बताया कि इस मठ की स्थापना बाबा कपिलमुनि पांडेय उर्फ मून बाबा ने की थी. यह स्थान उनकी तपोस्थली है. वह कहते हैं बाबा कपिल मुनि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें साक्षात दर्शन दिया था. उन्हें वरदान मांगने को भी कहा था, लेकिन बाबा ने वरदान लेने से मना कर दिया. फिर उन्होंने उसी रेखा के भीतर प्राण त्याग दिया. वह कहते हैं कि उस घटना के बाद से इस मठ की गद्दी पर बैठने वाले मठाधीश बाहर की दुनिया नहीं देख पाते.
मठ से जुड़ी हैं ये कहानियां
मठाधीश जयनारायण पांडेय के मुताबिक वैसे तो इस मठ से जुड़ी बहुत कहानियां हैं, लेकिन कुछ कहानियां ऐसी हैं, जिनकी वजह से कोई भी मठाधीश लक्ष्मण रेखा के बाहर नहीं जाता. उन्होंने बताया कि पूर्व में यहां घरभरन बाबा मठाधीश हुआ करते थे. एक बार वह लोगों की जिद के आगे झुकते हुए एक बेटी के कन्यादान के लिए पालकी में बैठकर सीमा से बाहर निकले थे. उस समय उन्हें एक काले नाग ने डंस लिया था. उसी समय वह बेटी भी विधवा हो गई थी. इसके अलावा एक और महंत मठ में लगे पेड़ से आम तोड़ रहे थे. इस दौरान उनका एक पैर सीमा से बाहर निकल गया. परिणाम यह हुआ कि उनका वही पैर जल गया और उन्हें महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहना पड़ा था.