नोएडा: प्रदूषण से निपटने के लिए मिले 56 करोड़, खर्च हुए महज 13%… RTI में आया पिछले 5 सालों का आंकड़ा

उत्तर प्रदेश में प्रदूषण को लेकर आरटीआई की मदद से चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है, जहां एनसीएपी को पिछले पांच सालों में प्रदूषण की समस्या के नियंत्रण के लिए 56 करोड़ रुपये की राशि दी गई, लेकिन उसमें से महज 7 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.

नोएडा में प्रदूषण Image Credit: ट्विटर

बारिश के मौसम के बाद दिल्ली एनसीआर और यूपी के नोएडा-गाजियाबाद जैसे क्षेत्रों में प्रदूषण का कहर आमतौर पर देखने को मिलता है. यहां रहने वाले लोगों को साफ हवा में सांस लेना भी मुश्किल हो गया है. ऐसे में सरकार की तरफ से ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. मगर जब प्रदूषण के कामकाज को लेकर आरटीआई पड़ी तो चौंकाने वाली बात सामने आई है. यहीं के रहने वाले अमित गुप्ता नाम के शख्स ने RTI के जरिए पता लगाया कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) के तहत नोएडा में प्रदूषण के लेवल को कम करने के लिए करोड़ों रुपये मिले, लेकिन उनमें से महज 13 प्रतिशत पैसे खर्च किए गए.

56 करोड़ रुपये का मिला बजट

नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत नोएडा में प्रदूषण को कम करने के लिए 56 करोड़ रुपये का बजट दिया गया. लेकिन, काम में ढिलाई करते हुए इस बजट का महज 13 प्रतिशत हिस्सा ही खर्च किया गया. यानी 56 करोड़ रुपये से महज 7 करोड़ रुपये ही खर्च हुए.

नोएडा प्राधिकरण के जवाब के मुताबिक, पांच साल में हवा में PM10 (प्रदूषण के कण) का स्तर सिर्फ 14.2% कम हुआ, यानी 2019-20 में 213 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 2023-24 में 182.7 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर. यह सुधार थोड़ा-सा है, लेकिन NCAP के लक्ष्यों से बहुत पीछे है.

कब कितने रुपये मिले?

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, RTI से मिली जानकारी के अनुसार, प्राधिकरण को हर साल अलग-अलग राशि मिली, जिसमें 2021-22 में 6.7 करोड़ रुपये, 2022-23 में 15.3 करोड़ रुपये,2023-24 में 8.9 करोड़ रुपये,2024-25 में 25 करोड़ रुपये मिले. समय के साथ इसके लिए बजट तो बढ़ा,लेकिन काम में कुछ बड़ा बदलाव सामने नहीं आया.

हालांकि, नोएडा प्राधिकरण की तरफ से रुपयों को खर्च करने दावा किया गया. उनके मुताबिक, 2021-22 से 2023-24 तक के लिए उपयोग प्रमाण पत्र (Utilisation Certificates – UCs) सरकार के PRANA पोर्टल पर अपलोड किए. यह पोर्टल केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की तरफ से चलाए जाते हैं, जो कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) के प्रोजेक्ट्स की खर्चों और यहां पर होने वाले भौतिक बदलावों पर नजर रखता है. दूसरे शब्दों में, प्राधिकरण का कहना है कि उसने NCAP फंड्स के उपयोग का हिसाब-किताब सरकार को दे दिया है, जैसा कि नियमों के तहत जरूरी है.