दस्तावेज से बड़ी है पत्नी की परिभाषा… इलाहाबाद HC से महिला के लिए भरण पोषण का आदेश, जानें क्या है मामला
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि पत्नी की परिभाषा किसी भी दस्तावेज़ से बड़ी है. इसी के साथ कोर्ट ने एक महिला की अर्जी स्वीकार करते हुए उसे 8000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का आदेश दिया है. इस मामले में महिला ने अपने पति की मौत के बाद देवर से दूसरी शादी की थी. बाद में दहेज की मांग करते हुए देवर ने महिला को छोड़ कर दूसरी शादी रचा ली थी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक पारिवारिक विवाद में बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा कि की जब एक महिला और एक पुरुष लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह रहें तो इसके लिए किसी दस्तावेज की जरूरत नहीं. वहीं, यदि पति द्वारा महिला को अलग किया जाता है तो महिला भरण-पोषण पाने का पूरा हक है. कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि पत्नी की परिभाषा किसी भी दस्तावेज से बड़ी है. इसी के साथ कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामले में भरण-पोषण पाने के लिए विवाह को साबित करना जरूरी नहीं है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महिला की ओर से दाखिल पुर्नरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है. कोर्ट ने मामले का निस्तारण होने तक पीड़ित महिला के लिए 8000 रुपये प्रति माह के हिसाब से भरण पोषण देने का अंतरिम आदेश पारित किया है. कहा कि कानून का उद्देश्य लोगों को न्याय दिलान है. न कि इस तरह की बातें बताकर रिश्तों को ही खारिज कर देना. मामला उत्तर प्रदेश के देवरिया में रहने वाली एक महिला का है. मामले की सुनवाई जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की कोर्ट में हुई.
पति की मौत के बाद देवर से हुई थी शादी
कोर्ट ने पीड़ित महिला की पुर्नरीक्षण अर्जी स्वीकार करते हुए पारिवारिक न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया. साथ ही इस मामले की नए सिरे से सुनवाई करने के लिए वापस भेज दिया है. अपनी अर्जी ने पीड़ित महिला ने कहा था कि 2017 में उसके पति की मौत हो गई थी. इसके बाद परिवार ने उसकी शादी देवर से करा दी. आरोप है कि इस शादी के कुछ दिन बाद ही उसका देवर दहेज की मांग करने लगा. वहीं मांग पूरा ना होने पर उसने ना केवल घर से निकाल दिया, बल्कि दूसरी शादी भी कर ली. जबकि, महिला के देवर ने कहा कि महिला से उसने कोई शादी नहीं की.
प्रमाण के अभाव में खारिज हुई थी अर्जी
मामले की पहली सुनवाई देवरिया के पारिवारिक न्यायालय में हुई. यहां पीड़ित महिला की अर्जी यह कहते हुए खारिज हो गई कि उसके पास देवर से शादी के वैध प्रमाण पत्र नहीं थे. ऐसे में पीड़िता हाईकोर्ट पहुंची और न्याय की गुहार करते हुए आधार कार्ड, बैंक रिकॉर्ड और गवाहों के बयान पेश करते हुए दावा किया कि वह लंबे समय तक अपने देवर के साथ पति-पत्नी की तरह रही है. उसने बताया कि उसका दूसरा पति यानी देवर यूपी पुलिस में कांस्टेबल है. वेतन के अलावा उसे खेती से भी आमदनी है. वहीं पीड़िता बेसहारा है. उसकी अर्जी स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह का प्रमाण ना होना तकनीकी खामी है और इस आधार पर अर्जी खारिज नहीं की जा सकती.



