आखिर क्यों भड़क गए बीजेपी MLC देवेंद्र प्रताप सिंह? बोले- ये सदन की अवमानना

17 नवंबर को प्रमुख सचिव संसदीय कार्य ने दोनों सदनों (विधानसभा व विधान परिषद) को एक पत्र लिखा. इस पत्र में उन्होंने समिति की बैठकों में पेश होने को लेकर कुछ ऐसे फैसले की जानकारी दी, जिससे एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह नाराज हो गए हैं. उन्होंने इसे सदन की अवमानना करार दिया है.

एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह Image Credit:

उत्तर प्रदेश विधानमंडल की समितियों के सामने पेश होने के लिए अब अपर मुख्य सचिव और प्रमुख सचिवों की जगह विशेष सचिव भेजने के सरकारी फैसले ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है. विधान परिषद सदस्य देवेंद्र प्रताप सिंह ने इसे सीधे-सीधे सदन की अवमानना करार देते हुए कहा कि सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह को पत्र लिखकर प्रमुख सचिव (संसदीय कार्य) के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की है.

विवाद की जड़ 17 नवंबर का वह पत्र है. इसमें प्रमुख सचिव संसदीय कार्य ने दोनों सदनों (विधानसभा व विधान परिषद) को बताया था कि अब समितियों की बैठकों में विभागीय साक्ष्य के लिए विशेष सचिव उपस्थित रहेंगे. वहीं, अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव जरूरत पड़ने पर केवल ऑनलाइन जुड़ेंगे.

सदन की परंपरा का अपमान-एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह

बीजेपी एमएलसी देवेंद्र सिंह ने सभापति को लिखते हुए कहा कि यह परंपरा का अपमान है. संसदीय इतिहास में सदैव अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और विभागाध्यक्ष ही व्यक्तिगत रूप से समितियों के समक्ष उपस्थित होकर साक्ष्य देते आए हैं. यह नया फरमान कार्यपालिका का विधायिका के प्रति बढ़ता अहंकार दर्शाता है. नौकरशाही अब विधायी संस्थाओं के प्रति सम्मान खो चुकी है और समितियों में आने से कतराने लगी है. यह पत्र जानबूझकर समितियों को पंगु बनाने की साजिश है.

विधान परिषद से कार्रवाई करने की मांग

उन्होंने विधान परिषद की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली तथा संविधान के अनुच्छेद 194 का हवाला देते हुए सभापति से मांग की है कि प्रमुख सचिव के खिलाफ तत्काल कठोर कार्रवाई हो. साथ ही ऐसा आदेश जारी हो जिससे भविष्य में कार्यपालिका विधायिका की अवमानना करने की हिम्मत न कर सके.

पूर्व MLC दीपक सिंह बोले- ये लोकतंत्र पर हमला

वहीं, कांग्रेस नेता पूर्व एमएलसी दीपक सिंह बोले कि यह लोकतंत्र पर हमला है. यह सिर्फ प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं, बल्कि विधायकों-एमएलसी की गरिमा पर सीधा प्रहार है. समितियां विधानमंडल की आंख-कान हैं. अगर वरिष्ठ अधिकारी ही नहीं आएंगे तो जवाबदेही कैसे तय होगी? यह योगी सरकार की तानाशाही का नया रूप है.

अधिकारियों ने गिनाए फैसले के फायदे

हालांकि संसदीय कार्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कई वरिष्ठ अधिकारी एक साथ कई महत्वपूर्ण फाइलों और बैठकों में व्यस्त रहते हैं, इसलिए विशेष सचिव को भेजने करने का फैसला लिया गया है. उनका दावा है कि इससे काम में तेजी आएगी, न कि विधानमंडल की गरिमा कम होगी.

अब सभापति के पाले में गेंद

अब फैसला सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह के पाले में है. फैसला उन्हीं को लेना है. यदि वे एमएलसी देवेंद्र सिंह की शिकायत पर कार्रवाई करते हैं तो यह उत्तर प्रदेश में पहला मौका होगा जब किसी प्रमुख सचिव के खिलाफ विधान परिषद अवमानना की कार्रवाई करेगी. विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बनाने की पूरी तैयारी में है. आने वाले दिनों में सदन में हंगामा तय माना जा रहा है.