BJP का प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण या कुर्मी? अगले 24 घंटे में हो जाएगा तय

यूपी बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा इन अटकलों पर 13 दिसंबर को विराम लगने जा रहा है. इस बार जो अध्यक्ष होगा उसी के नेतृत्व में 2027 विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा. लिहाजा अध्यक्ष पद पर बैठने वाला उन तमाम शर्तों को पूरा करता हो जिससे पार्टी की राह आसान बने और वोट बैंक में 2024 लोकसभा चुनाव की तरह बिखराव ना हो.

कौन बनेगा यूपी बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष? Image Credit:

यूपी में बीजेपी ने नया प्रदेश अध्यक्ष बनाने की कवायद तेज कर दी है. हाल ही में यूपी में बीजेपी ने अपने संगठनात्मक 84 जिलों की 327 प्रदेश परिषद सदस्यों की सूची घोषित कर दी है. अब नज़रें लखनऊ पर हैं जब 13 दिसंबर को दोपहर एक प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए नामांकन होगा.

13 दिसंबर को वह सारी अटकलें साफ हो जाएंगी. यह पता लग जाएगा कि वो कौन सा एक नाम है जिसके लिए महीनों माथापच्ची हुई है. या कहें जिसके लिए बीजेपी में दिल्ली-लखनऊ एक कर दिया गया. किस नाम के लिए पिछले कुछ महीने में संघ-बीजेपी के बीच कभी तल्ख तो कभी सामूहिकता की भावना दिखी और सरकार और संगठन के बीच सर्वोच्चता के दावे हुए. ये अध्यक्ष अगड़ा-पिछड़ा-दलित होगा या फिर महिला या पुरुष. सभी तरह के अटकलों पर अगले 24 घंटे में विराम लग जाएगा.

किसका नाम होगा तय?

यूपी बीजेपी अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे ने पीयूष गोयल को मुख्य चुनाव अधिकारी और विनोद तावड़े को मुख्य चुनाव पर्यवेक्षक की हैसियत से ये चुनाव कराने की जिम्मेदारी दी है. लेकिन सबको पता है कि नाम दिल्ली से तय हो गया है. कहा जा ये सिर्फ औपचारिकता है. लेकिन किसका नाम तय हुआ है इसपर सियासी पंडित गुणा गणित में लगे हुए हैं.

इन शर्तों के आधार पर तय होगा प्रदेश अध्यक्ष

यूपी का प्रदेश अध्यक्ष जो भी होगा उसी के नेतृत्व में संगठन विधानसभा चुनाव में जाएगी. लिहाजा अध्यक्ष पद पर बैठने वाला उन तमाम शर्तों को पूरा करता हो जिससे पार्टी की राह आसान बने. 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी में ओबीसी ख़ासकर कुर्मी वोटरों में बिखराव हुआ था. इसकी कीमत बीजेपी को चुकानी पड़ी. यूपी में पार्टी को 30 सीटों का नुकसान हुआ. ये लगभग उतनी ही सीटें थीं जितने से पार्टी बहुमत से दूर रही. ऐसे में इस बात की संभावना बढ़ गई है कि नया अध्यक्ष कुर्मी समाज से हो सकता है. एक दूसरा तर्क ये दिया जा रहा है कि यूपी में ब्राह्मण नाराज़ चल रहे हैं और लम्बे समय से कोई ब्राह्मण प्रदेश अध्यक्ष नही बना है तो हो सकता है इस बार ये पद किसी ब्राह्मण नेता के हाथ लग जाए.

कुर्मी बिरादरी को साधने की तैयारी में है बीजेपी!

यूपी में 2017 और 2022 दोनों ही चुनाव में संगठन कुर्मी समाज के पास था. इससे बीजेपी को दोनों ही चुनाव में ऐतिहासिक सफलता मिली थी. ये मानने से किसी को गुरेज नही होना चाहिए कि यूपी में लोकसभा चुनाव में विपक्ष के पीडीए समीकरण से बीजेपी चारों खाने चित हो गई थी. इसमें सबसे बड़ा रोल कुर्मी समाज का था. सपा के सात सांसद इसी बिरादरी से बने.

बीजेपी में कुर्मी बिरादरी के दो नेताओं पर सबकी निगाहें बनी हुई हैं. महाराजगंज से सात बार के सांसद और केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी. दूसरे योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह. पंकज चौधरी पूर्वांचल से आते हैं. अनुभवी नेता हैं. लेकिन उनका स्वास्थ्य और सीएम योगी से उनके असहज राजनैतिक संबंध एक बड़ा रोड़ा है. साथ ही सीएम गोरखपुर से और प्रदेश अध्यक्ष भी उसी इलाके से ये क्षेत्रीय राजनीति को बढ़ावा देने वाला निर्णय बीजेपी में मुश्किल है.

स्वतंत्र देव सिंह स्वच्छ छवि के नेता हैं और पूर्व में प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. लेकिन वो सीएम योगी के बेहद करीबी हैं और ये बात उनके ख़िलाफ जा सकती है. दूसरे ओबीसी नेताओं में जिन लोगों के नाम लिए जा रहे हैं उनमें बीएल वर्मा का नाम सबसे आगे है. लेकिन बीएल वर्मा जिस लोधि जाति से आते हैं वो बीजेपी के साथ मजबूती से खड़े हैं.ओबीसी समाज के दो और नेताओं की भी चर्चा है .साध्वी निरंजन ज्योति और योगी सरकार में मंत्री धर्मपाल सिंह का भी नाम प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चल रहा है. लेकिन यूपी में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर इन नामों पर मुहर लगेगी ये मानना मुश्किल है.

किसी OBC नेता का भी नाम आ सकता है सामने

बीजेपी की कार्यशैली समझने वाले एक्सपर्ट मान रहे हैं कि कोई ऐसा ओबीसी नेता सामने आ सकता है जिसका मीडिया में दूर दूर तक कोई नाम नही है. फिलहाल ये माना जा रहा कि पीडीए की काट के तौर पर बीजेपी एक बार फिर 2017 की रणनीति पर चलते हुए गैर यादव ओबीसी-ईबीसी फॉर्मूले पर चुनाव लड़ सकती है.

ब्राह्मण चेहरे पर पार्टी लगा सकती है दांव!

यूपी में बीजेपी को लोकसभा के चुनाव में पहली बार ऐतिहासिक सफलता दिलाने में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी की बड़ी भूमिका थी. और पिछले करीब सात सालों से ब्राह्मण बिरादरी प्रदेश अध्यक्ष पद से दूर ही है. महेंद्र नाथ पाण्डेय के जुलाई 2019 में हटने के बाद से कोई ब्राह्मण नेता इस पद पर नही बैठा है. ब्राह्मण वोट बैंक प्रदेश में काफी अहम माना जाता है. ब्राह्मण, भूमिहार, त्यागी समाज मिलाकर 14% से अधिक आबादी है. ऐसे में ब्राह्मण कार्ड पर भी बीजेपी को फोकस हो सकता है.

हरीश द्विवेदी का नाम इस बिरादरी में सबसे ऊपर है. असम बीजेपी के प्रभारी हरीश द्विवेदी पार्टी में राष्ट्रीय सचिव हैं. युवा मोर्चा की जिम्मेदारी संभाल चुके हरीश द्विवेदी बस्ती से बीजेपी के सांसद रह चुके हैं. संगठन की बारीकीयों को समझने वाले हरीश द्विवेदी आरएसएस के भी बेहद करीबी हैं. बीजेपी में इनको अमित शाह कैम्प का माना जाता है. ब्राह्मण बिरादरी से इस बार पार्टी का अध्यक्ष बनता है तो हरीश द्विवेदी की लॉटरी निकल सकती है.

बीजेपी के एक और बड़े ब्राह्मण नेता के नाम की भी चर्चा

बीजेपी के एक और बड़े ब्राह्मण नेता और सरकार में मंत्री भी इस रेस में डार्क हॉर्स साबित हो सकते हैं. लेकिन सीएम ठाकुर बिरादरी से और प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण समाज से ये मानना थोड़ा मुश्किल है. लेकिन यदि ऐसा हो रहा है तो इसका मतलब है कि सीएम फेस पर भी विचार चल रहा है. इस लिहाज से ये अध्यक्ष पद से भी बड़ी ख़बर है.